कॉमनवेल्थ मामले को लेकर पिछले दिनों आई रिपोर्ट के कारण कैग एक बार फिर से चर्चा में है।
भारत में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कम्पट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल - कैग) एक ऐसी संवैधानिक संस्था है जो केंद्र, राज्य सरकारों के विभागों और संघ एवं राज्य सरकारों द्वारा नियंत्रित संस्थानों के आय-व्यय की जांच करती है। यही संस्था सार्वजनिक धन की बरबादी के मामलों को समय-समय पर प्रकाश में लाती है।
कैग की नियुक्ति
कैग की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। कैग को उसके पद से तभी हटाया जा सकता है जब सिद्ध कदाचार या असमर्थता के आधार पर संसद के प्रत्येक सदन द्वारा उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा पारित समावेदन राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किए जाएं। कैग भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी और पद पर नहीं होगा। कैग का वेतन उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन के बराबर ही रखा गया है।
कैग की भूमिका
भारत में नियंत्रक-महालेखा परीक्षक संसद तथा राज्य विधान मंडलों की वित्तीय समितियों की कार्यप्रणाली में प्रमुख भूमिका निभाता है। कैग को उसके सांविधिक अधिकारों के दायरे तथा कामकाज के बारे में सलाह देने वाले नये 15 सदस्यीय लेखापरीक्षा सलाहकार बोर्ड का गठन हाल ही में किया गया है। भारत के कैग फिलहाल विनोद राय हैं। वह देश के 11वें कैग हैं। आजाद भारत के पहले कैग वी. नरहरि राव थे।
लेखापरीक्षा का स्वरूप
संवैधानिक दायित्वों को पूरा करते समय नियंत्रक-महालेखा परीक्षक सरकारी व्यय के विभिन्न पहलुओं की जांच करता है। केंद्रीय एवं राज्य सरकारों की प्राप्तियों की लेखापरीक्षा करते समय नियंत्रक-महालेखापरीक्षक यह भी पता लगाता है कि कि राजस्व का निर्धारण, संग्रहण एवं आबंटन कानून के अनुसार किए गए हैं अथवा नहीं तथा राजस्व, जो कानूनी तौर पर सरकार के पास आना चाहिए, की कोई हानि तो नहीं हुई है।
(रूबी प्रसाद,अमर उजाला,10.8.11)
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