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16 अगस्त 2011

पूर्वांचल के पाठ्यक्रम से विद्या निवास मिश्र के निबंध गायब

‘आंगन का पंक्षी और बंजारा मन’, ‘मेरे राम का मुकुट भीग रहा है’ तथा ‘चितवन की छांव’ जैसे कालजयी निबंध गढ़ने वाले पद्म भूषण विद्या निवास मिश्र पूर्वांचल के पाठ्यक्रम से गायब हैं। बीते 11 अगस्त को विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल से अनुमोदित पाठ्यक्रम में विद्या निवास मिश्र का कहीं उल्लेख नहीं है। चर्चित कहानीकार मुंशी प्रेमचंद के साथ भी अन्याय हुआ। यूजी में उनका उपन्यास गबन अब नहीं पढ़ाया जाएगा। पीजी में मोहन राकेश का नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ भी हटा दिया गया है। यह दीगर कि पाठ्यक्रम के संपादक मंडल के कई सदस्यों की किताबें अनुमोदित ग्रंथ के रूप में स्वीकार कर ली गई हैं।

हाल ही जारी हिंदी के पाठ्यक्रम पर गौर करें तो यूजी प्रथम वर्ष के छात्र अब पहले प्रश्नपत्र में उपन्यास में डा. शिव प्रसाद सिंह का ‘गली आगे मुड़ती है’ डा. राम दरश मिश्र की ‘पानी के प्राचीर’ जैनेंद्र कुमार की ‘सुुनीता’ पढ़ेंगे। अभी तक मुंशी प्रेमचंद का गबन भी पढ़ाया जाता था। अब प्रेमचंद हटा दिए गए। हालांकि कहानी में वह शामिल हैं। उनके अलावा चंद्रधर शर्मा गुलेरी, जय शंकर प्रसाद, मोहन राकेश, कृष्णा सोबती, ऊ षा प्रियंवदा, अमरकांत भी शामिल हैं। इनमें से किसी की भी कहानी कालेज पढ़ा सकते हैं। निबंध के ताजा पाठ्यक्रम में बालकृष्ण भट्ट, महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, डा. हजारी प्रसाद द्विवेदी, कुबेरनाथ राय, शंकर पुणतांबेकर के निबंध शामिल किए गए हैं। विद्या निवास मिश्र के निबंध को पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया गया है। इस भाग का संपादन शिबली कालेज आजमगढ़ के हिंदी विभागाध्यक्ष डा. निजामुद्दीन अंसारी तथा गांधी स्मारक कालेज कोयलसा आजमगढ़ के विभागाध्यक्ष डा. ज्ञान स्वरूप लाल ने किया है। 
इसी तरह बीए तृतीय वर्ष के पहले पेपर के समकालीन काव्यधारा में पहली बार गोरखपुर के वरिष्ठ साहित्यकार परमानंद श्रीवास्तव, शलभ श्रीराम सिंह शामिल किए गए हैं। ये दोनों पहले पाठ्यक्रम में शामिल नहीं थे। जौनपुर के साहित्यकार श्रीपाल सिंह क्षेम के नवगीत भी पढ़ाए जाएंगे। पीजी प्रथम वर्ष के तृतीय प्रश्नपत्र से मोहन राकेश का नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ हटा दिया गया है। हजारी प्रसाद द्विवेदी का उपन्यास ‘पुनर्नवा’ भी पाठ्यक्रम से बाहर है। पीजी में मुंशी प्रेमचंद का उपन्यास गोदान और कोई एक कहानी पढ़ाई जाएगी। कमलेश्वर, डा. नामवर सिंह, डा. परमानंद श्रीवास्तव, डा. बच्चन सिंह, डा. विवेकी राय की कई किताबें पाठ्यक्रम में शामिल हैं। हालांकि जरूरी नहीं कि कालेज इन्हीं की किताबें पढ़ाएं। अनुमोदित ग्रंथों में संबंधित टॉपिक पर किसी की किताब लागू कर सकते हैं। यहां बता दें कि विद्या निवास मिश्र हिंदी के टॉप पांच निबंधकारों में गिने जाते हैं। देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में इनके निबंध आज भी पढ़ाए जा रहे हैं। टीडी पीजी कालेज के रीडर डा. सुनील विक्रम सिंह कहते हैं कि हिंदी निबंध की पहचान डा. विद्या निवास मिश्र से होती है। देश क्या दुनिया में जहां भी हिंदी पढ़ाई जाती है वहां विद्या निवास मिश्र पाठ्यक्रम में शामिल हैं। सिविल सर्विसेज में भी इनके निबंध पूछे जाते हैं। पद्म भूषण का पाठ्यक्रम से बाहर होना अफसोसजनक है। इसके खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चलाएंगे और राज्यपाल से हस्तक्षेप की मांग करेंगे।

संपादन में जौनपुर और आजमगढ़ का दबदबा
पूर्वांचल के पाठ्यक्रम तैयार करने में जौनपुर और पूर्वांचल के शिक्षकों का वर्चस्व रहा है। उसमें भी आजमगढ़ के शिबली कालेज का। यूजी के पाठ्यक्रम का संपादन 16 शिक्षकों ने किया। इनमें पांच आजमगढ़ के, आठ जौनपुर के, एक गाजीपुर तथा दो मऊ के शिक्षक शामिल थे। पीजी का संपादन 13 शिक्षकों ने किया। इनमें आजमगढ़ के आठ, जौनपुर, गाजीपुर, मऊ, हंडिया पीजी कालेज इलाहाबाद के एक-एक शिक्षक को शामिल किया गया था। वैसे नेशनल शिबली कालेज आजमगढ़ की अहम भूमिका रही। यहां के हिंदी विभागाध्यक्ष डा. निजामुद्दीन अंसारी, डा. परवीन निजाम अंसारी, डा. शम्स आलम खां, डा. अल्ताफ अहमद ने कई प्रश्नपत्रों का संपादन किया। एक कालेज से इतने शिक्षक संपादन मंडल में शामिल नहीं हैं।

तीन संपादकों की किताबें भी अनुमोदित
जौनपुर। पाठ्यक्रम संपादन में शामिल तीन वरिष्ठ शिक्षकों की चार किताबें पढ़ाने के लिए अनुमोदित की गई हैं। यह अलग बात कि कालेजों पर इनकी किताबें पढ़ाने का दबाव नहीं है। तीनों शिक्षक आजमगढ़ के ही हैं। इनमें नेशनल शिबली पीजी कालेज के विभागाध्यक्ष डा. निजामुद्दीन अंसारी की सूफी कवि जायसी का प्रेम निरूपण यूजी और पीजी में, साहित्य सिद्धांत और हिंदी आलोचना, शोध प्राविधि, डा. परवीन निजाम अंसारी की पीजी में पूर्वांचल के मुस्लिम गीत, श्रीकृष्ण गीता डिग्री कालेज के प्राचार्य डा. सत्येंद्र सिंह की साहित्य शास्त्र और हिंदी आलोचना अनुमोदित की गई है। ये सभी अनुमोदित ग्रंथ हैं। कालेज इसे पाठ्यक्रम में शामिल कर सकते हैं(अमर उजाला,जौनपुर,14.8.11)।

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