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13 अगस्त 2011

उदयपुरःशिक्षक तलाशते रहते हैं,पर अभिभावक भी नहीं बता पाते कहां हैं बच्चे

गुजरात में बीटी कपास खेतों में काम करने जाने वाले अधिकांश बच्चे स्कूलों से ड्राप आउट हैं, लेकिन शिक्षा विभाग इससे बेखबर हैं। एकल शिक्षक वाले स्कूलों में शिक्षक बच्चों को गांव में तलाशते हैं, मगर उनका कोई पता नहीं मिलता। अभिभावक भी बच्चों के बारे में सही जानकारी नहीं दे पाते हैं।
मजदूरी से लौटने के बाद ये बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। ऐसे हजारों बच्चों को शिक्षा की सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। भास्कर संवाददाता ने जब इस बारे में झाड़ोल, फलासिया, पानरवा, मांडवा व कोटड़ा जाकर इसकी पड़ताल से सामने आया कि हजारों बच्चे स्कूल छोड़कर गुजरात में मजदूरी करने चले गए हैं।

पढ़ने लिखने व खेलने की उम्र में मासूम बच्चों को गुजरात के बीटी कपास के खेतों में मजदूरी करनी पड़ रही है। रासायनिक व कीटनाशी दवा के छिड़काव से जहरीले बन चुके कपास के पौधे इन मासूमों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं।
स्कूलों में विद्यार्थियों की उपस्थिति कम
कोटड़ा में मेडी पंचायत की सरपंच नापी बाई ने बताया कि पहली बरसात से ही कपास की बुवाई शुरू हो जाती है। इसके तहत आदिवासी इलाकों में शाम होते ही चार पहिया वाहन मांडवा, कोटड़ा, पानरवा, झाड़ोल, फलासिया के आसपास के गांव व फलों में लग जाती है। यही वजह है कि इन दिनों में क्षेत्र में स्थित अधिकांश स्कूलों में बच्चों की संख्या कम हो जाती है। इसके बाद कुछ बच्चे स्कूल आते हैं और कई स्कूल छोड़ देते हैं।
हादसा होने पर दबा देते हैं मामला
सूत्रों के अनुसार गुजरात बीटी कपास के खेतों के मालिक बहुत प्रभावशाली होते हैं। इनके खेत में काम करते अगर किसी बच्चे की मौत हो जाती है तो उसे चंद रुपए देकर दबा दिया जाता है(नरेंद्र पूर्बिया,दैनिक भास्कर,उदयपुर,13.8.11)।

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