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12 अगस्त 2011

उत्तराखंडःबच्चों को पीटा तो रद्द होगी विद्यालय की मान्यता


स्कूलों में प्रधानाचार्य या शिक्षकों ने बच्चों के संग मार-पिटाई की तो स्कूल की मान्यता रद्द कर दी जाएगी। प्रदेश सरकार ने शासनादेश जारी कर स्पष्ट किया है कि अगर कोई शिक्षक बच्चों की शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना का दोषी पाया जाता है तो उसके विरुद्ध सेवा नियमावली के तहत कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसी के साथ अगर स्कूल के प्रबंध तंत्र ने दोषी के विरुद्ध कार्रवाई नहीं की तो स्कूल की मान्यता भी रद कर दी जाएगी। बता दें कि 2009 में ‘सपोर्टिंग पॉजिटिव अल्टरनेटिव फॉर रेजिंग काइंडनेस इन एजुकेशन’ परियोजना के तहत शिक्षा विद भाजपा विधायक कैरन मेयर, बाल मनोविज्ञानी अपर्णा मैसी, अशोक मैसी और अर्चना मधवाल के ने उत्तराखंड, हिमाचल व दिल्ली के पब्लिक स्कूलों में शारीरिक दंड की स्थिति पर अध्ययन किया था। जिसमें यह निराशाजनक तथ्य सामने आया था कि स्कूलों के 64.4 फीसद बच्चे पिटते-पिटते, शिक्षकों से अपनी पिटाई को अपनी नियति मानने लगे हैं, यहां तक कि वे ये मानने लगे कि उनकी पिटाई उनके भले के लिए होती है। केवल 35.6 फीसद बच्चे ही स्कूल में शारीरिक प्रताड़ना का विरोध करते थे। अध्ययन में यह बात भी सामने आई थी कि सभी स्कूलों में विद्यार्थियों के छड़ी से पीटन, टेबल परखड़ा करना, मुर्गा बनाना, बेइज्जत करना, डस्टर फेंककर मारना, बाल खींचना, चिकोटी काटना, थप्पड़ मारना, स्कूल के मैदान के चक्कर लगाना, धूप में खड़ा करना जैसे शारीरिक व मानसिक दंड आम फहम हैं। पिछले दिनों प्रदेश में शिक्षकों द्वारा बच्चों के कान कतरने, दांत तोड़ देने, धूप में खड़ा कर देने जैसी घटनाएं सामने आई हैं। ऐसे में निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत सभी तरह के स्कूलों में शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना पर पाबंदी लगाने वाला यह शासनादेश काफी महत्वपूर्ण साबित होगा(राष्ट्रीय सहारा,देहरादून,12.8.11)।

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