राज्य सरकार की ओर से जो कॉमन सिलेबस का फलसफा तैयार किया गया है, उससे चौ. चरण सिंह विवि के शिक्षाविद् सहमती नहीं रखते। विवि के कई प्रोफेसरों की नजर में मिनीमम कॉमन सिलेबस से परेशानी पैदा होगी और कोर्सो का पैनापन खत्म हो जाएगा। इसका असर राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगितामूलक परीक्षाओं के रिजल्ट पर पड़ेगा। बीए हिंदी की ही बात करें तो न्यूनतम साझा पाठ्यक्रम में तीन भागों में विभक्त कर दिया गया है। प्रयोजनमूलक हिंदी, हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य के अलग-अलग पाठ्यक्रम हैं। अब तक इन तीनों को संजोकर एक कॉमन सिलेबस का संचालन किया जा रहा था। शिक्षकों का कहना है कि तीन में से किसी एक को ही एडॉप्ट करना है। अगर एक को एडॉप्ट किया तो शेष दो की गूढ़ता से वंचित रहेंगे और जो पढ़ाई होगी, वह अधकचरी ही साबित होगी। इतना ही नहीं, नए सिलेबस के तहत परीक्षा 300 की बजाए 350 अंकों की हो जाएगी। यह भी नई चुनौती साबित होगी। इसी तरह की समस्या अन्य विषयों को लेकर भी देखी जा रही हैं। आदर्श पाठ्यक्रम के आगे नहीं टिकते बात केवल हिंदी की ही नहीं है। इसी तरह अंग्रेजी, बॉटनी और जूलॉजी सरीखे विषयों में भी जो न्यूनतम साझा पाठ्यक्रम आया है वह यूजीसी द्वारा वर्ष 2002 में जारी आदर्श पाठ्यक्रम के आगे कहीं नहीं ठहरता।
इनका कहना है
कोर्स में कमी से छात्रों को कोई परेशानी नहीं होने दी जाएगी। न्यूनतम मानक पाठ्यक्रम में और भी जरूरी पाठों को जोड़कर सशक्त कोर्स फ्रेमिंग का काम चल रहा है। - प्रो. एचसी गुप्ता, कुलपति(दैनिक जागरण,मेरठ,25.8.11)।
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