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22 अगस्त 2011

राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालयःशोध पड़ा है बेसुध

विश्वविद्यालयों में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए बातें तो कई होती है किन्तु जमीनी हकीकत कुछ और ही है।

भले ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग समेत कई केन्द्रीय संस्थाएं अनुसंधान के लिए करोड़ों रुपये का अनुदान दे रही हैं, लेकिन उसका लाभ शोधार्थियों को कितना मिल रहा है इसका अंदाजा राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय में आचार्य उपाधि के लिए पंजीयन कराने वाले और उपाधि पाने वालों की संख्या को देखकर लगाया जा सकता है।

इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि पिछले कई वर्षो से विवि प्रशासन का ठंडा रूख है। विवि के इस रूख के कारण उन दाताओं की राशि भी बैंक के लॉकरों में बंद है। यह राशि दानदाताओं ने विवि में शोध करने वाले शोधार्थियों को प्रोत्साहन और आर्थिक सहायता देने के लिए दी थी।

भास्कर को मिली जानकारी के मुताबिक कई ऐसे दानदाता हैं, जिन्होंने यह राशि विवि को 50 वर्ष पूर्व दी थी। खास बात यह है कि विवि प्रशासन को भी इसकी जानकारी नहीं है कि ऐसे कितने दानदाता हैं जिन्होंने अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए दानराशि विवि को दी थी।

विवि के विकास विभाग में धूल खाती फाइलों में बंद सूची के मुताबिक कुल 60 दानदाताओं ने विद्यार्थियों को आर्थिक सहायता देने के लिए विवि को राशि दान की थी। इनमें से 22 ऐसे दानदाता हैं, जिन्होंने आचार्य उपाधि के लिए पंजीयन कराने शोधार्थियों को आार्थिक सहायता देने के लिए राशि दी थी।


घोषणा के बाद भी लागू नहीं हुई योजना

विवि की ओर से विद्यार्थियों को शोध के प्रति प्रोत्साहन और उन्हें आर्थिक रूप से सहायता देने के लिए राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज फेलोशिप योजना शुरू की थी। इसके लिए बजट में 20 लाख रुपये का प्रावधान किया गया था। 

वर्ष 2010 में योजना लागू करने की घोषणा हुई थी। किन्तु पिछले दो वर्षों से विद्यार्थियों को इससे वंचित रखा जा रहा है। योजना को विवि ने विकास विभाग के माध्यम से लागू करने की बात कही थी। 

पिछले दस वर्षो का रिकार्ड

विवि में पिछले 10 वर्षो से पंजीयन कराने वाले शोधार्थी और शोध पूरा करने वाले विद्यार्थियों की संख्या में जमीन आसमान का अंतर है। पिछले 10 वर्षो में विवि में कुल 10 हजार से अधिक विद्यार्थियों ने आवेदन किया था। 

इनमें से 2 हजार 365 शोधार्थी जुलाई 2010 से जनवरी 2011 के बीच आरआरसी की बैठक नहीं होने के कारण पंजीयन नहीं करा सके। जबकि वर्ष 2001 से जनवरी 2010 के बीच 7 हजार शोधार्थियों ने अपना पंजीयन कराया था। 

इनमें से 2 हजार शोधार्थियों ने शोध को पूरा किया। एक हजार 600 शोधार्थियों को विवि की ओर से आचार्य की उपाधि जारी हो गई है। जबकि वर्ष 2010 तथा वर्ष 2011 में विवि का दीक्षांत समारोह नहीं हो पाया है। जिससे करीब साढ़े 3 सौ शोधार्थियों को पीएचडी की डिग्री घोषित नहीं हो पाई है। 

विवि की अपनी दलील: 

विवि प्रशासन की मानें तो कई विद्यार्थी पीएचडी के लिए पंजीयन करा तो लेते हैं, किन्तु वे उसे पूरा नहीं कर पाते। हर शोधार्थी को पंजीयन कराने के बाद शोध प्रबंध जमा करने के लिए 5 साल का समय मिलता है। 

कोई पारिवारिक कारणों से तो कोई शोध करने में आने वाली दिक्कतों के कारण शोध प्रबंध पूरा नहीं कर पाते हैं। विवि प्रशासन ने यह भी माना कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि धनाभाव में भी कुछ विद्यार्थी पीएचडी नहीं कर पाते हैं।

विषय है लेकिन गाइड नहीं: विवि में कोई भी विद्यार्थी किसी भी विषय में पीएचडी के पंजीयन करा सकता है। कई ऐसे विद्यार्थी हैं जिन्होंने पंजीयन तो करा लिया है लेकिन विवि के लिए उस विषय के लिए गाइड भी मौजूद नहीं है। 

विवि की सबसे बड़ी विद्याशाखा माने जाने वाली समाजविज्ञान विद्याशाखा के अंतर्गत आने वाले कई ऐसे विषय हैं, जिनके अंतर्गत विद्यार्थियों ने पीएचडी के पंजीयन कराया है लेकिन शोध कराने व विद्यार्थी को मार्गदर्शन देने के लिए गाइड ही मौजूद नहीं है। कई बार विवि प्रशासन से शिकायत की गई, लेकिन अभी तक ध्यान नहीं दिया गया है(आशीष दुबे,दैनिक भास्कर,नागपुर,22.8.11)।

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