तकनीकी शिक्षा संचालनालय की ओर से आयोजित दो दौर की काउंसिलिंग के बावजूद राज्य के निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की 6528 सीटें खाली रह गई हैं। निजी कॉलेजों में मैनेजमेंट और ऑल इंडिया कोटे की भी आधे से ज्यादा सीटें नहीं भर पाई हैं। इन खाली सीटों ने इंजीनियरिंग कॉलेजों के संचालकों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
बड़े पैमाने पर कॉलेज चलाने का खर्चा नहीं निकलने की वजह से कॉलेजों के संचालकों के पसीने छूट गए हैं। आने वाले एक महीने में मैनेजमेंट कोटे की सीटें नहीं भरी तो प्रोफेसरों के वेतन के भी लाले पड़ जाएंगे। ऐसी स्थिति में प्रदेश के एक दर्जन से ज्यादा इंजीनियरिंग कॉलेज बंद होने की कगार पर आ जाएंगे। इस साल राजनांदगांव के एक इंजीनियरिंग कॉलेज ने काउंसिलिंग में भाग नहीं लिया।
प्रदेश के 50 प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजों में इस साल भी राज्य कोटे की लगभग 15 हजार 188 में 6528 सीटें खाली रह गई हैं। इसी तरह अन्य राज्यों के छात्रों के लिए उपलब्ध 2050 में 700 से ज्यादा सीटें खाली हैं। सबसे बुरी स्थिति मैनेजमेंट कोटे के सीटों की है। इस कोटे की लगभग 3000 सीटों में वर्तमान समय तक 1000 सीटें भी नहीं भर पाई हैं।
निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों का ज्यादातर खर्चा मैनेजमेंट कोटे की सीटों में प्रवेश लेने वाले छात्रों की फीस से ही चलता है। मैनेजमेंट कोटे की सीटें नहीं भरने की वजह से संचालकों के सामने कॉलेज चलाने के लिए फंड का इंतजाम करना मुश्किल हो रहा है। जानकारों का कहना है कि अगर यह स्थिति आने वाले साल में भी रही तो 2012 में एक साथ कई इंजीनियरिंग कॉलेज बंद हो जाएंगे।
दूसरे धंधे की वजह टिके हैं मैदान में :
छत्तीसगढ़ में ज्यादातर इंजीनियरिंग कॉलेजों के संचालक कंस्ट्रक्शन के व्यवसाय से जुड़े हैं। इसके अलावा कई संचालकों के अपने अलग से उद्योग हैं। यही वजह है कि इंजीनियरिंग कॉलेजों में करोड़ों रुपए का निवेश करने वाले डायरेक्टर आय कम व्यय ज्यादा होने के बाद भी इंजीनियरिंग कॉलेज संचालित कर रहे हैं।
एक इंजीनियरिंग कॉलेज को खोलने में दो करोड़ रुपए से ज्यादा का खर्च होता है। कॉलेज को हाईटेक करने के साथ अतिरिक्त सुविधा देने पर यह खर्च बढकर पांच करोड़ रुपए तक हो जाता है। ऐसे में करोड़ों रुपए निवेश करने के बाद भी कॉलेजों से प्रॉफिट नहीं मिलने पर संचालकों के होश उड़ गए हैं। ज्यादातर संचालकों ने मैनेजमेंट कोटे की सीटों को भरने के लिए कई तरह की योजनाओं को शुरू कर दिया है। इसमें छात्रों को रिझाने वाले प्लान सबसे ज्यादा हैं।
इनको अब भी इंतजार
दूसरे चरण की काउंसिलिंग में खाली रह गई सीटों के बावजूद सेकंड शिफ्ट वाले कॉलेज खुद को स्थापित करने के प्रयास में जुटे हुए हैं। एआईसीटीई से अनुमति लेने के बाद राज्य सरकार की आपत्ति को दूर करने के लिए कॉलेजों के संचालकों ने हाई कोर्ट में केस लगा दिया है। प्रकरण की सुनवाई खत्म हो गई है, लेकिन हाईकोर्ट के डबल बेंच ने फैसला सुरक्षित रखा है। ऐसे में हाईकोर्ट का फैसला संचालकों के पक्ष में आता है तो इन कॉलेजों की सीटों को कैसे भरा जाएगा यह बड़ा सवाल तकनीकी शिक्षा संचालनालय के अधिकारियों के सामने रह-रहकर खड़ा होगा।
किसका-कितना कोटा
-निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में राज्य का कोटा 75 फीसदी। (15188 सीटें)
-अन्य राज्यों के छात्रों का कोटा 10 फीसदी। (2050 सीटें)
-निजी कॉलेजों में मैनेजमेंट कोटा 15 फीसदी। (3012 सीटें)
फैक्ट फाइल
राज्य में कुल इंजीनियरिंग कॉलेज 57
निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों की संख्या 52
शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज 03
स्वशासी वित्तीय इंजीनियरिंग कॉलेज 02
(इनमें से 7 कॉलेज सेकंड शिफ्ट वाले कॉलेज हैं। इनकी सीटों को काउंसिलिंग में शामिल करने के मुद्दे पर उच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है। यानी वर्तमान काउंसिलिंग में 50 इंजीनियरिंग कॉलेजों की 20250 सीटों को शामिल किया गया है। )(असगर खान,दैनिक भास्कर,रायपुर,22.8.11)
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