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09 अगस्त 2011

नौकरशाहों के तबादलों के लिए बोर्ड बनाएं सरकारें- सुप्रीम कोर्ट


सर्वोच्च न्यायालय ने नौकरशाही को राजनीतिक दखल-भ्रष्टाचार से बचाने का केंद्र और राज्य सरकारों से कहा है कि वह नौकरशाहों के तबादलों और नियुक्ति के बारे में फैसला लेने के लिए सशक्त संवैधानिक लोक सेवा बोर्ड गठित करें। शीर्ष अदालत ने सरकार को निर्देश दिया है कि वह चार सप्ताह के भीतर इस मामले में जवाब दाखिल करे। न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और दीपक वर्मा की पीठ ने 83 पूर्व नौकरशाहों की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर यह व्यवस्था दी। पीठ ने कहा, चार मार्च को भी इस बारे में निर्देश दिया था, लेकिन केंद्र और ज्यादातर राज्य सरकारों ने इस पर प्रतिक्रिया नहीं दी। यह बहुत गंभीर मामला है, हम इसे छह सप्ताह में निपटाना चाहते हैं। इसे टाला नहीं जा सकता, नहीं तो यह कभी खत्म नहीं होगा। कृपया गंभीरता दिखाइए। याचिका में नौकरशाही को राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार से बचाने के प्रयास के तहत यह बोर्ड गठित किए जाने की मांग की गई है। याचिका में यह भी कहा गया है कि नौकरशाहों के लिए किसी पद पर कम से कम तीन साल का कार्यकाल नियत कर दिया जाए, क्योंकि कार्यकाल नियत करने से वे राजनीतिक और दूसरे प्रभावों से बच सकेंगे। याचियों का कहना था कि नौकरशाही व्यवस्था को जिम्मेदार, संवेदनशील और उनके कामकाज को पारदर्शी बनाने के लिए बोर्ड गठन की जरूरत है। उनका कहना है कि वर्तमान समय में अफसरों के तबादले, नियुक्ति, प्रोन्नति, अनुशासनात्मक कार्रवाई समेत तमाम मामले राजनीतिक प्रेरित होते हैं। तबादला तो अफसरों को पुरस्कृत और दंडित करने का औजार बन गया है(दैनिक जागरण,दिल्ली,9.8.11)।

राष्ट्रीय सहारा की रिपोर्टः
उच्च सरकारी अफसरों की ट्रांसफर- पोस्टिंग को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केन्द्र सरकार से चार हफ्ते में जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह एक गंभीर मामला है है और सरकारों को जवाब दायर करने में देरी नहीं करनी चाहिए। देश के नामीगिरामी 83 रिटार्यड ब्यूरोक्रेट्स ने नौकरशाही को राजनीतिक हस्तक्षेप और भ्रष्टाचार के चंगुल से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए एक बोर्ड गठित करने का सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया गया है। याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और सभी राज्य सरकारों को पहले ही नोटिस जारी कर दिया था। जस्टिस दलवीर भंडारी और दीपक वर्मा की बेंच ने कैबिनेट सेक्रेटरी और राज्यों के मुख्य सचिवों से इस विषय पर जवाब मांगा है। याचिका में कहा गया है कि ट्रांसफर पोस्टिंग एक उद्योग बनकर रह गया है। केन्द्र या राज्य में सत्ता परिवर्तन होते ही सरकारी अफसरों को ईनाम के तौर पर पोस्टिंग दी जाती है, इससे भ्रष्टाचार का बढ़ावा मिल रहा है। पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यम तथा 82 अन्य रिटार्यड सरकारी अफसरों ने याचिका में कहा है कि एक बोर्ड का गठन करके ट्रांसफर की जिम्मेदारी उसे सौंपी जा सकती है। उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने जवाब में बोर्ड के गठन का विरोध किया है। राज्य की बसपा सरकार ने कहा है कि राज्य ने दिसम्बर 2010 में ट्रांसफर नीति तैयार की है। वरिष्ठ पुलिस अफसरों का दो साल का कार्यकाल तय है। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सिविल सर्विस बोर्ड गठित है जो अफसरों की ट्रांसफर पर निर्णय लेता है।

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