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02 अगस्त 2011

संसदीय स्थायी समिति ने कहाःघटिया विदेशी शिक्षण संस्थानों को रोको

विदेशी शिक्षण संस्थानों के लिए देश के दरवाजे खोलने को लेकर सरकार का उत्साह अपनी जगह पर है, लेकिन उसके लिए पेश विधेयक की कई बातें संसदीय स्थायी समिति के गले नहीं उतर रही हैं। उसकी चिंता खासतौर से घटिया विदेशी शिक्षण संस्थानों को यहां आने और देश में योग्य शिक्षकों की कमी के और बढ़ने को लेकर है। लिहाजा उसने बेहतरीन विदेशी शिक्षण संस्थानों को ही यहां आने की इजाजत देने की पैरवी की है। विदेशी शिक्षण संस्थान (प्रवेश एवं संचालन विनियमन) विधेयक-2010 पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय की संसदीय स्थायी समिति ने सोमवार को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में सरकार को कई मामलों में आगाह किया है। शिक्षा से जुड़े तमाम पक्षकारों से मशविरे के बाद समिति की राय है कि सिर्फ दुनिया की सर्वश्रेष्ठ संस्थाओं को ही भारत में आने की इजाजत मिलनी चाहिए। उन संस्थाओं को सरकार खुद न्योता देकर बुला सकती है। समिति का तर्क है कि पड़ोसी चीन और मलेशिया जैसे देश भी अपने यहां इसी फार्मूले को अख्तियार करते हैं। समिति ने देश में बेहतरीन शिक्षकों की कमी के सवाल को गंभीरता से लिया है। उसका कहना है कि प्रतिभाशाली छात्रों को शिक्षक बनने के लिए आकर्षितकरने में सरकार नाकाम रही है। जबकि विदेशी शिक्षण संस्थान यहां आने पर योग्य शिक्षकों को अपने साथ ले सकते हैं। समिति का मानना है कि इस स्थिति से बचने के लिए यह प्रावधान किया जाना जरूरी है कि विदेशी शिक्षण संस्थान एक निश्चित प्रतिशत तक शिक्षक अपने यहां से ही लाएं। भारतीय एवं विदेशी शिक्षकों के इस साझा प्रयास के छात्रों व शिक्षकों, दोनों लिहाज से सकारात्मक नतीजे आएंगे। इसके अलावा समिति ने विदेशी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण लागू न करने के सरकार के फैसले पर सहमति जताई है, लेकिन यह भी कहा है कि विदेशी संस्थानों में आरक्षण तब लागू हो सकता है, जब भारतीय निजी शिक्षण संस्थानों के लिए भी सरकार ऐसा कोई प्रावधान कर दे(दैनिक जागरण,भोपाल संस्करण,2.8.11 में दिल्ली की रिपोर्ट)।

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