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18 अगस्त 2011

OBC के लिए 10 फीसदी कम हो कटऑफः SC

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) श्रेणी में न्यूनतम योग्यता प्रतिशत सामान्य श्रेणी के छात्रों की तुलना में अधिक से अधिक 10 फीसदी कम होना चाहिए।

न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ओबीसी श्रेणी के छात्रों के लिए योग्यता मानदंड का फैसला सामान्य श्रेणी में दाखिला पाने वाले अंतिम उम्मीदवार के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने हालांकि स्पष्ट किया कि मौजूदा शैक्षणिक सत्र में विश्वविद्यालयों में जो दाखिले पहले ही हो चुके हैं उससे कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। शीर्ष अदालत का स्पष्टीकरण आईआईटी मद्रास के पूर्व प्रोफेसर पीवी इंद्रेसन की ओर से दायर याचिका पर आया है। उन्होंने विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी आरक्षण को लागू करने में अनियमितता के मद्देजनर शीर्ष अदालत से निर्देश देने को कहा था(हिंदुस्तान,दिल्ली,18.8.11)।

नवभारत टाइम्स की रिपोर्टः
सेंट्रल यूनिवर्सिटीज में रिजर्वेशन पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है। सेंट्रल यूनिवर्सिटीज ऐडमिशन में ओबीसी कटऑफ लिस्ट जनरल कटऑफ से 10 फीसदी से नीचे नहीं हो सकती।

जस्टिस आर वी रविन्द्रन की बेंच ने यह फैसला देते हुए कहा कि ओबीसी कैटिगरी के स्टूडेंट्स को एडमिशन देने का क्राइटीरिया यह नहीं होना चाहिए कि जनरल कैटिगरी के आखिरी कैंडिडेट के मार्क्स कितने थे।

इस बाबत उपरोक्त आदेश जारी करते हुए बेंच ने यह साफ कर दिया कि इस शैक्षणिक सत्र के लिए किए गए अब तक के एडमिशन्स पर इस फैसले का असर नहीं पड़ेगा। अदालत ने यह फैसला आईआईटी मद्रास के पूर्व प्रफेसर पी वी इंदरसेन द्वारा फाइल की गई पिटिशन पर दिया है। इंदरसेन ने यह पिटिशन दिल्ली हाई कोर्ट के जजमेंट को चैंलेंज करते हुए दायर की थी जिसमें कहा गया था कि ओबीसी कैटिगरी के लिए तय कट ऑफ जनरल कैटिगरी के लिए तय की गई आखिरी कट ऑफ से 10 परसेंट से कम होनी चाहिए।

याचिका में कहा गया कि दिल्ली यूनिवर्सिटीज और जेएनयू के पैमानों में काफी अंतर है। याचिका में कहा गया कि ओबीसी कोटा के तहत होने वाले एडमिशन्स में कुछ विसंगतियां हैं जिन्हे दुरुस्त किया जाना चाहिए।

दैनिक जागरण की रिपोर्टः
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग [ओबीसी] श्रेणी में न्यूनतम योग्यता प्रतिशत सामान्य श्रेणी के छात्रों की तुलना में अधिक से अधिक 10 फीसदी कम होना चाहिए।
न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि ओबीसी श्रेणी के छात्रों के लिए योग्यता मानदंड का फैसला सामान्य श्रेणी में दाखिला पाने वाले अंतिम उम्मीदवार के आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। पीठ ने हालाकि स्पष्ट किया कि मौजूदा शैक्षणिक सत्र में विश्वविद्यालयों में जो दाखिले पहले ही हो चुके हैं उससे कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी।
शीर्ष अदालत का स्पष्टीकरण आईआईटी मद्रास के पूर्व प्रोफेसर पीवी इंद्रेसन की ओर से दायर याचिका पर आया है। उन्होंने विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी आरक्षण को लागू करने में अनियमितता के मद्देजनर शीर्ष अदालत से निर्देश देने को कहा था।
इंद्रेसन ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें कहा गया था कि ओबीसी उम्मीदवारों के लिए कट ऑफ अंक सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम योग्यता अंकों से 10 फीसदी कम होना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा। इंद्रेसन ने अपनी याचिका में रेखाकित किया था कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी आरक्षण लागू करने में अनियमितताएं हो रही हैं। उन्होंने कहा था कि दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा अपनाए जा रहे मानदंड में ओबीसी छात्रों और सामान्य श्रेणी के छात्रों के बीच कट ऑफ अंकों में अंतर 10 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए, जबकि जेएनयू में न्यूनतम योग्यता मानदंड में 10 फीसदी की छूट देने का प्रचलन है।

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