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19 सितंबर 2011

मुस्लिम आरक्षण पर माया को केंद्र को आईना

केंद्र सरकार ने मुस्लिमों को आबादी के हिसाब से आरक्षण दिलाने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखने वाली मायावती को अपने आंकड़ों के जरिये आईना दिखा दिया है। केंद्र के आंकड़े बताते हैं कि तीन साल में पर्याप्त धन के बावजूद यूपी सरकार अल्पसंख्यकों का विकास नहीं कर सकी। कई ऐसी जगहों पर केंद्रीय परियोजनाओं की मंजूरी दे डाली, जहां अल्पसंख्यकों की पर्याप्त आबादी ही नहीं है। इन्हीं आंकड़ों के बूते अब केंद्र सरकार अल्पसंख्यक मोर्चे पर मायावती को घेर रही है। देश में सबसे ज्यादा 21 अल्पसंख्यक बहुल जिले यूपी में हैं। केंद्र के बहुक्षेत्रीय विकास कार्यक्रम के तहत उन जिलों में सड़क, पेयजल, स्कूल, आइटीआइ समेत दूसरे कार्य कराये जाते हैं। सूत्रों के मुताबिक, प्रदेश सरकार ने इस कार्यक्रम के तहत बीते तीन साल में मिले धन में से कभी पूरा नहीं खर्च किया। जून तक सरकार केंद्र से मिले धन में 356 करोड़ रुपये खर्च ही नहीं हुए। जिन जिलों में धन खर्च में ज्यादा कोताही हुई उसमें बहराइच, गाजियाबाद, मुरादाबाद, बहराइच, शाहजहांपुर, बागपत, मुजफ्फरनगर, मेरठ, बिजनौर, बरेली व बाराबंकी जैसे अल्पसंख्यक बहुल जिले शामिल हैं। अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में विकास कार्यो के लिए वहां कम से कम 25 फीसदी अल्पसंख्यक आबादी का होना जरूरी है। प्रदेश सरकार ने बरेली, जेपीनगर, बहराइच, सहारनपुर, बुलंदशहर, मेरठ, श्रावस्ती और मुजफ्फरनगर में कई ऐसे क्षेत्रों में राजकीय इंटर कालेज, पालिटेक्निक व हॉस्टल जैसी परियोजनाओं को मंजूरी दे दी, जहां मापदंड के लिहाज से अल्पसंख्यक आबादी नहीं थी। हालांकि केंद्र की आपत्ति के बाद राज्य सरकार ने स्पष्टीकरण दे दिया है। दरअसल अल्पसंख्यकों की बेहतरी के लिए चलाई जा रही सभी केंद्रीय योजनाओं की पीएमओ हर तिमाही समीक्षा करता है। अगस्त के अंतिम हफ्ते में हुई समीक्षा में यूपी में अल्पसंख्यक विकास के धीमे कामकाज पर सवाल उठा था। उसके बाद ही केंद्र ने अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के एक अधिकारी को हकीकत जानने उत्तर प्रदेश भेजा था। सूत्रों की मानें तो प्रदेश शासन में अल्पसंख्यक कार्य विभाग में नियमित सचिव या प्रमुख सचिव न होने से कामकाज पर असर पड़ता रहा है(राजकेश्वर सिंह,दैनिक जागरण,दिल्ली,19.8.11)।

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