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14 सितंबर 2011

राजस्थानःबाबुओं के भरोसे साहित्यिक पुरस्कार

राजस्थान में हिंदी के प्रचार-प्रसार की न तो सरकारों को चिंता रही है ओर न ही लेखकों को। आमजन में गहरी पक़ड़ रखने वाले जनप्रतिनिधियों का भी हिंदी भाषा के प्रति अधिक लगाव नहीं है। राजस्थान विधानसभा में एक भी ऐसा जन प्रतिनिधि नहीं है जिसका साहित्यक रुझान हो।

राजस्थान में पिछले तीन साल से राजस्थान साहित्य अकादमी सहित प्रमुख अकादमियों के प्रमुखों के पद खाली प़ड़े हैं। अध्यक्ष नहीं होने के कारण इन अकादमियों में पुस्तकों का प्रकाशन और पुरस्कारों की घोषणा भी बाबुओं के भरोसे है। इसी का नतीजा है कि राजस्थान साहित्य अकादमी की ओर से पिछले दिनों एक नए लेखक को अकादमी का सर्वोच्च मीरा पुरस्कार दिए जाने के कारण साहित्यिक जगत में हंगामा मच गया था। साहित्यकारों ने लेखक को पुरस्कार के लिए अयोग्य माना था।

राजस्थान में हिंदी के प्रचार-प्रसार और प्रोत्साहन की जिम्मेदारी हिंदी ग्रंथ अकादमी, राजस्थान साहित्य अकादमी और राजभाषा विभाग के जिम्मे है लेकिन विडंबना यह है कि इन संस्थाओं में साहित्यिक गतिविधियों का आयोजन और राजभाषा प्रचार-प्रसार संबंधी गतिविधियां ठप प़ड़ी हैं। हिंदी ग्रंथ अकादमी की ओर से उच्च शिक्षा से जु़ड़े विभिन्न विषयों पर पुस्तकों का प्रकाशन किया जा रहा है लेकिन इनमें से ज्यादातर पुस्तकें निम्न स्तर की हैं। हिंदी ग्रंथ अकादमी की ओर से ज्यादातर किताबें ऐसे लेखकों की प्रकाशित हो रही हैं जो या तो कॉलेज अथवा विश्वविद्यालयों में प़ढ़ाते हैं अथवा राजकीय सेवा से सेवानिवृत्त हैं। पिछले कुछ वर्षों से हिंदी ग्रंथ अकादमी की ओर से पुस्तक पर्व जैसे आयोजन कर साहित्यिक गतिविधियों को ब़ढ़ावा दिया जा रहा है लेकिन इनका आयोजन सिर्फ संभाग मुख्यालयों तक ही सीमित है और जिले इससे अछूते हैं।


हिंदी ग्रंथ अकादमी की ओर से मार्च २०११ तक विभिन्न विषयों पर ५४७ मौलिक और ८८ अनुदित पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। इस साल अब तक अकादमी की ओर से २० मौलिक पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है। पिछले दस साल में राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी की ओर से लेखकों को उनकी किताबों की रॉयल्टी के रूप में करीब ७० लाख रुपए दिए गए हैं। इस समयावधि में हिंदी ग्रंथ अकादमी ने अपनी पुस्तकें बेचकर छह करो़ड़ २१ लाख रुपए की कमाई की है। वर्ष २०००-०१ में हिंदी ग्रंथ अकादमी को पुस्तकों की बिक्री से ४४ लाख रुपए की आमदनी थी जो अब ब़ढ़कर एक करो़ड़ रुपए के करीब पहुंच गई है। वर्ष २०१०-११ में अकादमी को पुस्तकों की बिक्री से ७३.४४ लाख रुपए की आमदनी हुई है। राज्य सरकार की ओर से अकादमी को हर साल एक करो़ड़ रुपए से अधिक अनुदान दिया जाता है। 

साहित्यकार राजाराम भादू का कहना है कि राजस्थान में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए कार्यरत संस्थाओं के पास बजट की कोई कमी नहीं है लेकिन इन संस्थाओं के मुखिया राजभाषा के प्रति समर्पित नहीं हैं। राज्य के राजभाषा विभाग के पास इस समय सबसे ज्यादा बजट है लेकिन हिंदी दिवस के अलावा यह विभाग और कोई गतिविधि नहीं चला रहा है। अंग्रेजी मानसिकता के कारण सरकारी विभागों में हिंदी में लिखने वाले कर्मचारियों को उपेक्षा का शिकार होना प़ड़ता है। राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी के निदेशक आर.डी. सैनी का मानना है कि अकादमियों में अध्यक्षों की नियुक्ति के लिए लेखक समुदाय को लोकतांत्रिक तरीके से अपनी आवाज उठाकर सरकार पर अपना दबाव बनाना चाहिए(आनंद चौधरी,नई दुनिया,दिल्ली,हिंदी दिवस,2011)।

2 टिप्‍पणियां:

  1. जानकारी वर्धक पोस्ट ....
    कभी समय मिले तो आएगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  2. उन्हीं से सेटिंघ बैठाते है फिर तो... :)

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