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14 सितंबर 2011

मध्यप्रदेशःसाहित्य अकादमी के आयोजनों का विस्तार, स्तर पर सवाल

मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के भाजपा शासन के पिछले दस सालों के कामकाज को देखें तो दो अध्यक्षों के कार्यकाल में कार्यक्रमों का विस्तार तो हुआ लेकिन कमरों से कस्बों तक के इस विस्तार में आयोजन के स्तर पर सवाल उठ ख़ड़े हुए। साहित्यप्रेमी उन बहसों और तकरारों को याद करते हैं जिनके लिए साहित्य की चर्चाएं हमेशा प्रसिद्ध रही हैं। वर्तमान अध्यक्ष प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ला के सामने अकादमी के कामकाज को नियमित करने के साथ नए आयोजन को रचने का जिम्मा भी था। यह काम तो उन्होंने किया लेकिन उनके कार्यकाल में साहित्यकारों के बदले केवल शिक्षण से जु़ड़े लोगों को प्रोत्साहित करने का आरोप भी है।


मप्र साहित्य अकादमी द्वारा पुस्तकों के साथ-साथ मासिक पत्रिका साक्षात्कार का नियमित प्रकाशन किया जाता है और श्रेष्ठ साहित्यिक कृतियों के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। प्रख्यात लेखक शानी, गोविंद मिश्र, आग्नेय, पूर्णचन्द्र रथ जैसे दिग्गज साहित्यकार इसके प्रमुख रहे। भाजपा के सत्ता में आने के बाद साहित्यकार डॉ. देवेन्द्र दीपक को अध्यक्ष बनाया गया। डॉ. दीपक के दो कार्यकाल पूर्ण करने बाद जबलपुर विवि में हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ल को अकादमी का अध्यक्ष बनाया गया। लगभग दो साल के कार्यकाल में प्रो. शुक्ला ने डॉ. दीपक के कामकाज को आगे ब़ढ़ाया और अकादमी की गतिविधियों को पटरी पर लाने का काम किया। 

भाजपा शासनकाल में इतना जरूर हुआ कि अकादमी के आयोजनों को विस्तार मिला और आयोजनों का केंद्र केवल भोपाल न रहा। प्रो. शुक्ल गर्व से बतलाते हैं कि उन्होंने कमरों में होने वाले आयोजनों को प्रदेश के छोटे शहरों और कस्बों तक पहुंचाया। छोटी जगहों के साहित्यप्रेमियों और रचनाकारों को मंच दिया। अकादमी की मासिक पत्रिका "साक्षात्कार" में नए लेखकों को जगह दी। अगस्त, २०१० में भोपाल में अंतरारष्ट्रीय आयोजन "साहित्य संवाद" को भी अकादमी की उपलब्धि माना जा सकता है। इस आयोजन में ५ देशों के रचानाकारों ने शिरकत की।

हालांकि अकादमी की आलोचना भी हो रही है। साहित्यप्रेमी गर्मागर्म बहस और विचारोत्तेजक चर्चाओं की कमी महसूस करते हैं जिनके लिए कभी भोपाल बेहतर मंच था। अकादमी पर आरोप लग रहे हैं कि उसने लेखकों और आयोजनों के स्तर के साथ समझौता किया है। अब न तो पहले जैसे गंभीर आयोजन होते हैं और न नामवर लेखकों का जमाव़ड़ा होता है। आयोजन कस्बे तक पहुंचे तो उनका स्तर भी "कस्बाई" होकर रह गया। इसके अलावा "साक्षात्कार" पत्रिका पर सरकारों के मुखपत्र होने का आरोप कायम है। 

अकादमी के अध्यक्ष प्रो. त्रिभुवननाथ शुक्ल अकादमी पर बेपटरी होने और कमतर गतिविधियां करने के आरोप पर कहते हैं कि उन्होंने साहित्य आयोजनों को राजधानी के बंद कमरों से निकाल कर कस्बों और जनपद तक पहुंचाया। "साक्षात्कार" का प्रकाशन नियमित किया तथा ६ वर्षों से लंबित साहित्य अलंकरणों में से ३ वर्ष के अलंकरण प्रदान कर दिए। भविष्य की और योजनाओं के बारे में उन्होंने कहा कि देश में पहली बार प्रदेश के सभी जिले का "साहित्य गजेटियर" बनाया जा रहा है। सभी ५० जिलों के परिचय के साथ वहां के लेखन और लेखकों का ऐसा गजेटियर बना रहे हैं जो वहां की साहित्यिक इतिहास का अधिकृत दस्तावेज होगा। कार्यक्रमों के स्तर पर उठ रहे सवालों पर उन्होंने कहा कि सिर्फ आलोचना करने के लिए आलोचना हो तो उसके बारे में क्या कहा जा सकता है?(पंकज शुक्ल,नई दुनिया,दिल्ली,हिंदी दिवस,2011)

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