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21 सितंबर 2011

स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में करिअर

खेल अब सिर्फ खेलने तक ही सीमित नहीं रहे हैं। ये कमाई का भी एक बहुत बड़ा जरिया बन गए हैं। खेल के आयोजन, खिलाड़ियों के प्रमोशन आदि में करोड़ों रुपयों का बिजनेस होता है। इतने बड़े बिजनेस को मैनेज करने के लिए जरूरी हैं स्पोर्ट्स मैनेजर। आप भी बन सकते हैं स्पोर्ट्स मैनेजर। 

भारत में किक्रेट को धर्म के रूप में देखा जाने लगा है और इसके खिलाड़ी को ईश्वर सरीखा। धर्म का यह उत्सव अब पूरे साल चलता है, कभी आईपीएल तो कभी वनडे और टेस्ट रूप में। इन उत्सवों में धन की भी बारिश खूब हो रही है। क्रिकेट वर्ल्ड की बादशाहत मिलने और चैंपियनों पर धनवर्षा होने के बाद यह समझा जाने लगा कि खेल और उससे जुड़े दूसरे कामों में भी बेहतर करियर बनाया जा सकता है। बात सिर्फ क्रिकेट तक सीमित नहीं है, इसके अलावा भारत अन्य खेलों में भी अब नई उपलब्धियां हासिल कर रहा है। चाहे कुश्ती में सुशील कुमार का विश्व चैंपियन बनने का मामला हो या विजेन्दर कुमार का बॉक्सिंग में मेडल जीतने का, गगन नारंग का शूटिंग में गोल्ड जीतने का हो या आशीष कुमार का जिम्नास्टिक में मेडल हासिल करके लाइमलाइट में आने का। ऐसे माहौल में खेल को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए बढ़िया स्पोर्ट्स मैनेजमेंट की जरूरत है।
यह मैनेजमेंट भारत में नया है, लेकिन इसकी मांग बढ़ रही है। अब खेलकूद में जहां लाखों का निवेश करके करोड़ों का मुनाफा कमाया जा रहा है तो मैदान के अंदर और बाहर भी करियर के तरह-तरह के विकल्प सामने आ रहे हैं। खेल का आयोजन और उसका प्रबंधन उन नौजवानों के लिए भी एक बढ़िया विकल्प है, जो खेल में रुचि तो रखते ही हैं, साथ ही इसके आयोजन में बेहतर प्रबंधन का हुनर भी जानते हैं।

क्या है कोर्स
स्पोर्ट्स मैनेजमेंट कोर्स खेल खेलने से हट कर एक मैच या कार्यक्रम के आयोजन से जुड़ी हर छोटी-बड़ी चीज का प्रबंधन सिखाता है। इसका मकसद मनोरंजन के साथ-साथ बाजार के हिसाब से खेल को भुनाना है। आयोजन दर्शकों को अपनी ओर खींचे और इसमें ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाया जाए, इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाता है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कॉलेज में स्पोर्ट्स इकोनॉमिक्स एंड मार्केटिंग की कॉर्डिनेटर डॉ. स्मिता मिश्र कहती हैं, स्पोर्ट्स मैनेजमेंट प्रबंधन का एक विशेष क्षेत्र है, जहां छात्र खेलों में मार्केटिंग की भूमिका की पहचान करते हैं। स्पोर्ट्स की एंटरटेनमेंट वैल्यू क्या है और इसके विविध पहलू क्या हैं, इन सबसे वे रूबरू होते हैं। 

इसमें ईवेंट मैनेजमेंट भी शामिल है। स्पोर्ट्स ईवेंट का प्रबंधन कैसे करना है और इससे जुड़ी कई चीजें जैसे हेल्थ केयर, उपकरण, तकनीक, नैतिक मुद्दे जैसे डोपिंग, पर्यावरण और कानून का अध्ययन करना होता है। स्पोर्ट्स के साथ पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप, मीडिया और ब्रांड मैनेजमेंट का हुनर सिखाया जाता है। स्पोर्ट्स मैनेजमेंट के तहत ब्रांड इंडोर्समेंट, स्पोर्ट्स गुड्स प्रमोशन, फैशन गैजेट प्रमोशन, ग्राउंड प्रबंधन, सिलेब्रिटी मैनेजमेंट, स्पोर्ट्स एजेंट और स्पोर्ट्स टूरिज्म जैसे कई एरिया हैं, जहां युवाओं को कार्य करना होता है। 
पाठय़क्रम में कोचिंग स्पोर्ट, प्रबंधन के सिद्धांत, स्पोर्ट्स पब्लिक रिलेशन, स्पोर्ट्स जर्नलिज्म, वॉलंटियर मैनेजमेंट, स्पोर्ट्स प्रमोशन, स्पोर्ट्स मार्केटिंग, स्पोर्ट्स लॉ, बिजनेस प्लानिंग, स्पोर्ट्स ईवेंट मैनेजमेंट, स्पोर्ट्स फाइनेंस, मैनेजमेंट ऑफ स्पोर्ट्स, स्पोर्ट्स मीडिया, ऑपरेशंस मैनेजमेंट, प्लेयर कांट्रेक्ट्स, ग्लोबल इकोनॉमिक्स ऑफ स्पोर्ट्स, स्पॉन्सरशिप, स्पोर्ट्स विज्ञापन, ब्रांड मैनेजमेंट और अंतरराष्ट्रीय स्पोर्ट्स मैनेजमेंट जैसे सभी एरिया के बारे में जानकारी दी जाती है, जिसमें निपुण होकर छात्र एक हुनरमंद प्रबंधक की तरह काम करता है। वह कम निवेश में ज्यादा से ज्यादा लाभ कमाने की कोशिश करता है।
डॉ. मिश्र के मुताबिक यही उसकी विशेषता होनी चाहिए और इसी चुनौती का सामना करने में उसकी पहचान होती है। अगर कोई खिलाड़ी मैदान में अपना प्रदर्शन दिखाता है तो उस खिलाड़ी के खाने-पीने, पहनने- ओढ़ने और जीवन शैली के प्रमोशन से बाजार में अच्छा-खासा मुनाफा कमाया जा सकता है। खेल के दीवानों और आम दर्शकों का मनोरंजन करके कैसे ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाया जाए, इस पर स्पोर्ट्स मैनेजर पूरी नजर 
रखते हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक एक खेल का आयोजन अपने साथ आंख, नाक, कान, त्वचा और जिह्वा यानी पांच इंद्रियों से जुड़ा बिजनेस भी साथ लाता है। आंख यानी मीडिया के जरिए लाखों दर्शकों के बीच प्रसारण। इसमें टीवी, मोबाइल, इंटरनेट और प्रिंट सब कुछ शामिल है। इसके एवज में अच्छा-खासा विज्ञापन हासिल होता है। 
नाक यानी खेल के आयोजन के दौरान आगंतुकों के बीच तरह-तरह के इत्र का बिजनेस। त्वचा यानी मसाज से जुड़े व्यवसाय और कान यानी रेडियो से खेल का प्रसारण। जिह्वा यानी जीभ की संतुष्टि को भोजन व्यवसाय से जोड़ा जाता है।
अगर कोई खेल हो रहा है तो वहां आसपास लाखों लोग जुटते हैं। इनके खाने-पीने का इंतजाम भी एक व्यवसाय देता है। आयोजक खेल के साथ इन व्यवसायों का प्रबंधन भी करता है।

संस्थान 
नेताजी सुभाष नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ स्पोर्ट्स, पटियाला।
लक्ष्मीबाई नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ फिजिकल एजुकेशन, ग्वालियर
एसजीटीबी खालसा कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
आईआईएसडब्लूबीएम, कोलकाता
अलगप्पा यूनिवर्सिटी, तमिलनाडु
इंटरनेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ मैनेजमेंट, मुम्बई

एक्सपर्ट व्यू
इस क्षेत्र में पैसा बहुत है
डॉ. एसके लौ
एसोसिएट प्रोफेसर, फिजिकल एजुकेशन, सत्यवती कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
खेल के क्षेत्र में भी प्रबंधन की भूमिका बहुत जरूरी हो गई है। बाजार के प्रवेश ने स्पोर्ट्स में मैनेजमेंट को एक अनिवार्य अंग बना दिया है।
स्पोर्ट्स मैनेजमेंट की भूमिका देश में किस रूप में देखते हैं?
मैनेजमेंट के बिना किसी भी संस्थान या कंपनी की सफलता संभव नहीं है। चाहे वह होटल सेक्टर हो या आईटी सेक्टर या फिर बहुराष्ट्रीय कंपनियां। खेल के क्षेत्र में भी प्रबंधन की भूमिका बहुत जरूरी हो गई है। ऐसा इसलिए, क्योंकि आज इस क्षेत्र में पैसा बहुत ज्यादा आ रहा है। बीसीसीआई के पास ही करोड़ों रुपए हैं। बाजार के प्रवेश ने स्पोर्ट्स में मैनेजमेंट को अनिवार्य बना दिया है।
इसमें किस तरह के हुनर की जरूरत है?
आज स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में आने वाले युवा को तकनीक और प्रबंधन, दोनों का ज्ञान जरूरी है। मीडिया को कैसे हैंडल करना है, तकनीक के इस्तेमाल और फिर प्रबंधन के साथ किसी ईवेंट को कैसे सफल बनाना है, इसकी कला आनी चाहिए। अगर प्रबंधन न हो तो कोई बड़ी कंपनी पैसा लगाने को तैयार नहीं होती।
किस तरह के कोर्स चलाए जा रहे हैं?
स्पोर्ट्स मैनेजमेंट के लिए अभी देश में एडऑन, सर्टिफिकेट या डिप्लोमा कोर्स शुरू किए गए हैं। कोलकाता में इससे संबंधित एमबीए का कोर्स शुरू किया गया है। कोर्स छात्रों को इससे जुड़े विभिन्न पहलुओं की ट्रेनिंग देता है।
इसमें किस तरह का करियर सामने आ रहा है?
इस फील्ड के लोगों को कॉरपोरेट हाउस विशेष तौर पर अवसर मुहैया करा रहा है। खेलों के आयोजन के अलावा ऐसे क्षेत्र भी हैं, जहां स्पोर्ट्स मैनेजमेंट से जुड़े युवा बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं, जैसे जिम एंड हेल्थ सेंटर।
यह करोड़ों रुपए का असंगठित क्षेत्र है। इसमें आने वाले युवाओं को काफी मुनाफा हो रहा है। एडवेंचर स्पोर्ट्स से जुड़ी इंडस्ट्री को भी मैनेजमेंट के लोगों की जरूरत पड़ रही है।

कोर्स वॉच
पीडियट्रिशन बच्चों का डॉक्टर
पीडियट्रिशन एक डॉक्टर या सर्जन होता है, जो 14 साल तक के बच्चों का इलाज करता है। पीडियट्रिशन का काम ऑपरेशन थियेटर से परे भी होता है, जैसे मरीजों की मन:स्थिति को समझना, उनका विश्वास जीतना, उन्हें यह समझाना कि वे क्यों अस्वस्थ हैं और उन्हें बीमारियों के लक्षण बताने के लिए प्रेरित करना। वास्तव में पीडिएट्रिक सर्जरी सुपर स्पेशिएलिटी हासिल करना है और इसमें अत्यधिक योग्यता की जरूरत होती हैं, क्योंकि मरीज नवजात शिशु भी हो सकता है। एक योग्य डॉक्टर सरकारी या निजी अस्पताल में काम कर सकता है या फिर अपना क्लिनिक खोल सकता है।
वेतन
गवर्नमेंट सेक्टर में, शुरुआत में प्रतिमाह तनख्वाह लगभग 50,000 रुपए मिल सकती है। कुछ समय बाद तनख्वाह 60,000 रुपए प्रतिमाह हो सकती है और यदि आप सीनियर हैं तो आप एक लाख रुपए प्रतिमाह तक कमा सकते हैं। निजी क्षेत्र में शुरुआत में पैकेज 35 से 40 हजार रुपए, कुछ समय बाद 40-60 हजार और इसके बाद एक से पांच लाख रुपए प्रतिमाह तक हो सकता है।
कैसे बनें पीडियट्रिशन
12वीं कक्षा में साइंस के साथ बायोलॉजी लें। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद एमबीबीएस की लिखित प्रवेश परीक्षा में बैठें। कुछ निश्चित विदेशी कॉलेज भी इसके लिए अच्छे माने जाते हैं। पीडियट्रिक सर्जन बनने का अर्थ है, सामान्य सर्जन बनने के बाद तीन साल का अतिरिक्त प्रशिक्षण। यानी एमबीबीएस के बाद छह साल अतिरिक्त।
इंस्टीटय़ूट
ऑल इंडिया इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल साइंसेस, दिल्ली
वेबसाइट: www.aiims.edu
मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, दिल्ली, वेबसाइट: www.mamc.ac.in
लेडी हार्डिग मेडिकल कॉलेज, दिल्ली, वेबसाइट: www.du.ac.in
प्रस्तुति : अनुराधा गोयल
फैक्ट फाइल
कोर्स के रंग
भारत में इसको लेकर फिलहाल निजी संस्थानों में शॉर्ट टर्म या सर्टिफिकेट कोर्स चलाए जा रहे हैं। सरकारी संस्थान इस क्षेत्र में कम ही आए हैं। लक्ष्मीबाई नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ फिजिकल एजुकेशन एक साल का पीजी डिप्लोमा कोर्स करा रही है। कोलकाता विश्वविद्यालय में भी इसको लेकर कोर्स कराया जा रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय का एसजीटीबी खालसा कॉलेज स्पोर्ट्स इकोनॉमिक्स एंड मार्केटिंग का कोर्स करा रहा है। कोलकाता स्थित आईआईएस संस्थान भी इसमें एमबीए कोर्स करा रहा है। विदेशों में एमएससी इन स्पोर्ट्स मैनेजमेंट या एमबीए इन स्पोर्ट्स मैनेजमेंट का कोर्स प्रचलन में है।
फीस
इस कोर्स की फीस विभिन्न संस्थानों में अलग-अलग है। कहीं दस हजार तो कहीं बीस हजार रुपए तक हैं। विदेशों से एमबीए और एमएससी करने पर फीस लाखों रुपए हैं।
अवसर कहां
स्पोर्ट्स मैनेजमेंट के विशेषज्ञ की मांग आज स्पोर्ट्स मैनेजमेंट कंपनी हो या रियल एस्टेट कंपनी, सभी जगह है। विभिन्न निजी कंपनियों में, जो स्पोर्ट्स मैनेजमेंट के क्षेत्र में आई हैं, ब्रांड मैनेजमेंट संभालने के लिए ऐसे लोगों की जरूरत पड़ती है। तमाम स्पोर्ट्स फेडरेशन्स ने अपने यहां अलग से मैनेजमेंट सेक्शन खोल रहा है, जहां इसके विशेषज्ञों की जरूरत है। रियल एस्टेट अपने व्यवसाय के प्रचार के लिए खिलाड़ियों को ब्रांड एम्बेसेडर बनाता है। इसका चुनाव और प्रचार का प्रबंधन एक स्पोर्ट्स मैनेजर ही बेहतर तरीके से कराता है। रियल एस्टेट के अलावा इंश्योरेंस कंपनी या अन्य बिजनेस संस्थान अपने व्यवसाय के प्रचार-प्रसार के लिए खिलाड़ियों को एक ब्रांड के रूप में चुनता है। कॉरपोरेट हाउस भी ब्रांड एम्बेसेडर के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी को तवज्जो देते हैं। इस कार्य में भी मैनेजमेंट की भूमिका होती है।
स्पोर्ट्स मैनजमेंट के छात्र की शुरुआती सैलरी 25 से 30 हजार के बीच है, लेकिन अनुभव और जोखिम के साथ इससे कमाई बढ़ती जाती है। असिस्टेंट या सीनियर मैनेजर के रूप में वेतनमान 50 हजार से लाख रुपए तक है(प्रियंका कुमारी,हिंदुस्तान,दिल्ली,20.9.11)।

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