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21 अक्तूबर 2011

चिकित्सा में शोध के लिए कहीं नहीं है डाटाबेस

देश का सबसे अधिक प्रतिष्ठित चिकित्सीय संस्थान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान(एम्स) से लेकर देश के किसी मेडिकल कॉलेज के पास चिकित्सीय शोध के लिए उच्च गुणवत्ता वाला डाटाबेस नहीं है। एम्स में कैंसर रोग के शोध के लिए दिल्ली कैंसर रजिस्ट्री की शुヒआत हुई, लेकिन आज तक उसके आधार पर दिल्ली या देश में कैंसर के उभरते ट्रेंड को लेकर कोई नया शोध नहीं हुआ है। देश के किसी मेडिकल संस्थान में शोध की कोई गतिविधि नहीं चल रही है, जिस कारण बीमारी और उससे निपटने के उपाय के लिए अमेरिका और यूरोप के डाटाबेस के आधार पर यहां का डाटाबेस बनाया जा रहा है।

केंद्रीय स्वास्य मंत्रालय के चिकित्सा शोध विभाग ने नॉलेज मैनेजमेंट पॉलिसी का ड्राफ्ट तैयार किया है। इसमें देश में उभरती बीमारी और उससे संबद्घ डाटा का बेस बनाने की बात कही गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी सरकार को फंड आवंटित किया है ताकि वह चिकित्सा शोध की डायरेक्टरी बना सके।


दिल्ली डायबिटीज रिसर्च सेंटर के निदेशक डॉ. एके झिंगन के अनुसार, दुनिया में भारत को और भारत में दिल्ली को मधुमेह की राजधानी कहा जाता है, लेकिन मधुमेह के मामले में सरकार स्तर पर कोई बड़ा शोध हो ही नहीं रहा है। यह जीवनशैली से जुड़ी बीमारी है। यदि इस पर सरकारी स्तर पर शोध किया जाए तो बहुत सारे तथ्य व ヒझान स्पष्ट होंगे और उसके अनुरूप इलाज के रास्ते खुलेंगे। जयपुर गोल्डन अस्पताल की स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. एसएन बासु की मानें तो गर्भ में पल रहे बच्चे पर बाहरी वातावरण, प्रदूषण आदि का अध्ययन यहां चल ही नहीं रहा है। ऐसा कोई डाटा ही नहीं है, जिससे इसके असर का आकलन हो सके। 

चिकित्सा शोध विभाग के एक वैज्ञानिक के अनुसार, चिकित्सा के क्षेत्र में ज्ञान सबसे महत्वपूर्ण है और इसकी प्राप्ति बीमारियों के बारे में मौजूद डाटा से ही हासिल होता है। देश के अधिकांश मेडिकल कॉलेज किसी तरह का शोध ही नहीं करते तो डाटा कहां से तैयार करेंगे! संचारी व असंचारी रोगों को लेकर इस समय जो डाटा मौजूद है वह आधा-अधूरा है। 

उसकी गुणवत्ता ऐसी नहीं है, जिसके आधार पर शोध किया जा सके। नॉलेज मैनेजमेंट पॉलिसी का ड्राफ्ट तैयार किया गया है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि इसके प्रति कोई भी गंभीर है। अगले २० साल भी देश में अमेरिका और यूरोप के डाटा के आधार पर बीमारियों का आकलन होता रहेगा और मरीज मरते रहेंगे(संदीप देव,नई दुनिया,दिल्ली,21.10.11)।

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