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17 अक्तूबर 2011

छत्तीसगढ़ के इंजीनियरिंग कॉलेजःलुभावने करियर का यह है एक डरावना सच

एनआईटी समेत राज्य के इंजीनियरिंग कॉलेजों का प्रबंधन छात्रों में बढ़ती हताशा से हैरान है। चार दिनों के अंदर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी (एनआईटी) समेत दो इंजीनियरिंग संस्थानों के दो छात्र आत्महत्या कर चुके हैं।

राज्य की बात करें तो डेढ़ बरस में यह आंकड़ा दर्जन भर इंजीनियरिंग छात्रों का है। आत्महत्याओं से परेशान एनआईटी प्रबंधन ने काउंसिलिंग के इंतजामों को सुधारने पर नए सिरे से मंथन शुरू कर दिया है। जानकारों का कहना है कि नौकरी पाने में बढ़ती स्पर्धा के चलते विद्यार्थियों में निराशा बढ़ती जा रही है। पढ़ाई में भारी रकम खर्च चुके घर वालों को निराश करने की भावना उन्हें खुदकुशी की ओर ले जा रही है।


दैनिक भास्कर ने एक के बाद एक होने वाली इंजीनियरिंग छात्रों की मौतों की पड़ताल की तो पता चला कि वे पढ़ाई के बोझ और डिप्रेशन के शिकार थे। शुक्रवार की रात एनआईटी हॉस्टल में बस्तर के पंकज ने फांसी लगा कर जान दे दी थी। इसके बाद से प्रबंधन छात्रों की मानसिक स्थिति पर मंथन कर रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि आज के हालात में छात्रों के लिए काउंसिलिंग की स्थायी व्यवस्था जरूरी हो गई है।

शुरुआती पड़ताल में पता चला है कि पंकज को फस्र्ट सेमेस्टर की परीक्षा में कम नंबर मिले थे। इस वजह से उसे पेपर में बैक कर दिया गया। पंकज को बैक होने का गहरा सदमा लगा। वह रिजल्ट आने के बाद से ही गुमसुम रहने लगा था। उसे कंपीटिशन में पिछड़ने की चिंता सता रही थी। इसका जिक्र उसने अपने कुछ साथियों के सामने किया था। वह कहता था कि सबने उससे बड़ी उम्मीदें लगा रखी हैं। अगर वह कामयाब नहीं हुआ तो क्या होगा। अनुमान लगाया जा रहा है कि इसी डिप्रेशन में उसने जान दे दी। एनआईटी में इससे पहले भी दो छात्राओं ने खुदकुशी की है।

ऑल इज नॉट वेल
अलग-अलग इंजीनियरिंग कॉलेज के दर्जन भर छात्रों से चर्चा के दौरान यह सामने आया कि पढ़ाई के दबाव और नौकरी पाने की स्पर्धा से सब परेशान हैं। पढ़ाई के दौरान उन्हें अच्छे मार्क्‍स का टेंशन है। इसी दौरान कैंपस सलेक्शन या किसी अच्छी नौकरी के लिए भी वह ख्वाब देखते हैं। घर वाले भी उनसे एडमिशन के बाद से उम्मीद लगाए बैठे हैं। यह एक ऐसा प्रेशर है, जिसे झेलना हर छात्र के बस की बात नहीं।

अधिकतर ने लगाई फांसी
* 14 अक्टूबर 2011 को एनआईटी हॉस्टल में रात पंकज सिंह ने लगा ली फांसी। * 13 अक्टूबर 2011 को जीईसी रायपुर में छात्र अल्पेश सिंह ने कॉलेज हॉस्टल में लगाई फांसी। * 12 सितंबर 2011 को एनआईटी की छात्रा परीक्षा के अगले ही दिन घर में फांसी पर झूल गई। * जनवरी 2011 में भिलाई देव संस्कृति इंजीनियरिंग कॉलेज के दो छात्रों दीपक व सौरभ ने भी फांसी लगाई। * छह महीने पहले सरस्वतीनगर रेलवे स्टेशन पर एक इंजीनियरिंग छात्रा ने ट्रेन के आगे कूदकर जान दे दी। * डेढ़ महीने पहले उरकुरा के आगे रावतपुरा सरकार इंजीनियरिंग कॉलेज की छात्रा ने ट्रेन के आगे कूदकर जान दे दी। * तीन महीने पहले भिलाई रूंगटा इंजीनियरिंग कॉलेज का एक छात्र फांसी पर झूल गया। * चार महीने पहले रूंगटा इंजीनियरिंग कॉलेज की एक छात्रा ने भी आत्महत्या कर ली। * सालभर पहले भिलाई एमपी क्रिश्चियन कॉलेज की एक छात्रा ने ट्रेन के आगे कूदकर जान दे दी।

एक्सपर्ट व्यू
काउंसिलिंग की जरूरत
छात्र कैरियर, एडमिशन पढ़ाई और नौकरी की स्पर्धा के बेहद कठिन दौर से गुजर रहे हैं। इस प्रेशर के साथ उन्हें घर वालों की उम्मीदों का भी बोझ झेलना पड़ रहा है, जो सबके लिए आसान नहीं है। एडमिशन के बाद कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उन्हें बेहद मानसिक परेशानियां हो रही हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर के अभाव और भारी प्रतिस्पर्धा के बीच उन्हें पढ़ाई का वह माहौल नहीं मिलता। डिग्री मिल भी जाए, तो अच्छी नौकरी का टेंशन बना रहता है। अगर स्टूडेंट्स का यह प्रेशर कम नहीं हुआ तो आगे इंजीनियरिंग की पढ़ाई जानलेवा साबित होगी। उन्हें काउंसिलिंग के जरिए हेल्प की जरूरत है। 
डॉ. डीएस बल, पूर्व डायरेक्टर तकनीकी शिक्षा एवं एनआईटी

दोस्तों से शेयर करें - डॉ. मलिक
मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. नितिन मलिक का कहना है कि छात्रों को किसी भी बात का तनाव हो, उसे छिपाना नहीं चाहिए। अपनी परेशानी दोस्तों के साथ शेयर करनी चाहिए। इससे मन का बोझ हल्का होता है। यह प्रवृत्ति डिप्रेशन को दूर करती है(सुदीप त्रिपाठी,रायपुर,21.10.11)।

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