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16 नवंबर 2011

अपनी भाषा में इंटरनेट

भारत के आम लोगों और इंटरनेट के बीच की गहरी खाई अब पट सकती है। छह महीने बाद यानी मई 2012 से वेबसाइट के लिए डोमेन नाम हिंदी में भी लिए जा सकेंगे। कुछ समय बाद अन्य भारतीय भाषाओं में भी यह शुरुआत हो जाएगी। इसके लिए डॉट-भारत और अन्य कई दूसरे डोमेन नाम रजिस्टर करने की अनुमति भारत सरकार संबंधित एजेंसी इंटरनेट कॉपरेरेशन फॉर असाइंड नेम्स एंड नंबर्स से हासिल कर चुकी है।

इंटरनेट जब दुनिया में संवाद एवं संचार का सबसे ताकतवर माध्यम बनता जा रहा है, भारत में भाषा की बाधा सबको इस माध्यम से जोड़ने की राह में एक बड़ी रुकावट बनी हुई है। देश में आज भी अंग्रेजी समझने वाले लोगों की संख्या 11 प्रतिशत से ज्यादा नहीं है, जबकि बाकी लोग अपना सारा कामकाज देशी भाषाओं में ही करते हैं।

इसलिए इसमें कोई अचरज नहीं कि अभी एक अरब 20 करोड़ आबादी वाले इस देश में इंटरनेट का उपयोग करने वाले लोगों की संख्या दस करोड़ से ज्यादा नहीं है। इसलिए संचार जगत से जुड़े लोगों का यह अनुमान सही है कि भारतीय भाषाओं में डोमेन नाम की शुरुआत होने के साथ इंटरनेट यूजर्स की संख्या तेजी से बढ़ेगी। हालांकि इस रास्ते में कुछ रुकावटें अभी भी बाकी रहेंगी।

जैसाकि कई जानकारों ने ध्यान दिलाया है कि इंटरनेट सचमुच आमजन का माध्यम बन सके, इसके लिए यह जरूरी होगा कि सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और कंटेंट को सम्मिलित करते हुए इस तकनीक का पूरा इकोसिस्टम देशी भाषाओं में उपलब्ध कराया जाए।


जापान, दक्षिण कोरिया और चीन जैसे देशों के अनुभव को देखते हुए यह तो पूरे भरोसे के साथ कहा जा सकता है कि यह काम नामुमकिन नहीं है। हिंदी समेत भारतीय भाषाओं में काम करने वाले जनसमूहों की बढ़ती आर्थिक हैसियत से पैदा हो रही बाजार की नई जरूरतें इंटरनेट के इस विकासक्रम को सशक्त आधार दे रही हैं। संभवत: इसीलिए देश डिजिटल खाई पाटने की दिशा में यह प्रभावी कदम उठा सका है(संपादकीय,दैनिक भास्कर,05.11.11)।

2 टिप्‍पणियां:

  1. चीन वालों ने तो यह कुछ साल पहले ही करवा लिया था। लेकिन हम अपनी आदत से लाचार देर से कर रहे हैं। वैसे यह बढ़िया होगा यह, साथ ही अन्तरराष्ट्रीय नाम भारत रहे तो और अच्छा। …वैसे सिर्फ़ ऐसा होने से इस्तेमाल करने वाले बढ़ जाएंगे, यह बात मानने लायक नहीं है। क्योंकि कम्प्यूटर शिक्षा जहाँ भी दी जा रही है, वहाँ अंग्रेजी का बोलबाला पहले से है या यों कहें कि अंग्रेजी ही चलती है। बिजली, आर्थिक हैसियत आदि भी कई कारक हैं इस्तेमाल कतने वालों की संख्या बढ़ने के। …हर बार नकल और पिछलग्गूपन…क्या बात है……हिन्दी वाले कितने लोग हिन्दी में कम्प्यूटर इस्तेमाल कर रहे हैं…अंग्रेजी को यहाँ से हटाए बिना, कोई समाधान नहीं है…

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