मुख्य समाचारः

सम्पर्कःeduployment@gmail.com

02 नवंबर 2011

राजस्थान विश्वविद्यालयःप्रोफेसर्स ने किया ओवरटाइम लेकिन छात्रों के साथ हो गया अन्याय

छात्र-छात्राओं के लिए राजस्थान विश्वविद्यालय की सेंट्रल लाइब्रेरी को पुस्तक खरीदने के लिए यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) नई दिल्ली ने जो राशि आवंटित की थी, उस मद में से ही ओवरटाइम काम के नाम पर प्रोफेसर एवं कर्मचारियों को नकद राशि बांट दी गई।

जबकि यह राशि पुस्तकों की खरीद के लिए आवंटित की गई थी। पुस्तकों की प्रदर्शनी के दौरान अतिरिक्त काम करना बताकर 78 अधिकारी-कर्मचारियों को 7200- 7200 का भुगतान किया गया है। यह भी दिलचस्प है कि पुस्तकालय की निदेशक ने जो ओवर टाइम काम के नाम पर राशि उठाई थी, वो राशि विवाद गहराता देखकर चुपचाप वापस जमा करा दी है। इस पूरे मामले का खुलासा आरटीआई के तहत राजस्थान विश्वविद्यालय से निकलवाए गए दस्तावेजों से हुआ है।

राज्य सूचना आयोग की फटकार के बाद राजस्थान विश्वविद्यालय ने आरटीआई लगाने वाले न्यू सांगानेर रोड निवासी डॉ.यदुनाथ दशानन को यह जानकारी उपलब्ध कराई है। लिखित जवाब में विश्वविद्यालय ने माना कि यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन से पुस्तकों की खरीद के लिए जो राशि आवंटित की गई थी, उस मद से 4 लाख 95 हजार रुपए का भुगतान ओवर टाइम के रूप में अधिकारी-कर्मचारियों को किया गया है।

ओवर टाइम उठाने वालों की सूची में पुस्तकालय के प्रोफेसर-निदेशक से लेकर बाबू, चपरासी एवं रिटायर्ड हो चुके कर्मचारी तक शामिल हैं। हालांकि विश्वविद्यालय की ओर से दी गई अधिकृत सूचना में कहा कि सेंट्रल लाइब्रेरी की निदेशक ने अन्य व्यक्ति के लिए अपना भुगतान वापस जमा करा दिया था।


ये भी दिलचस्प है कि ओवर टाइम काम के नाम पर सिर्फ लाइब्रेरी से जुड़े अधिकारी-कर्मचारी ही नहीं वरन ओवर टाइम के ये बिल बनाने एवं अन्य उपयोगिता प्रमाण पत्र बनाने वाले एकाउंट एवं फाइनेंस के कर्मचारियों को भी उस काम के लिए ओवरटाइम राशि का भुगतान किया गया है।

सेंट्रल लाइब्रेरी की निदेशक रीना माथुर की ओर से 24 अगस्त 2009 को जारी आदेश के मुताबिक बुक- एक्जीबिशन मार्च2009 में हार्ड एवं अतिरिक्त काम करने वाले अधिकारी- कर्मचारियों को बराबर ओवर टाइम का भुगतान किया गया है।

दस्तावेजों के मुताबिक राजस्थान विश्वविद्यालय को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन की ओर से 11वीं पंचवर्षीय योजना के तहत पुस्तकों की खरीद के लिए एक करोड़ की राशि आवंटित की गई थी। इस संबंध में डायरेक्टर सेंट्रल लाइब्रेरी ने बॉटनी, एंथ्रोपोलॉजी, सेंट्रल लाइब्रेरी, हिंदी, इतिहास, लॉ, पॉलिटिकल साइंस, समाजशास्त्र, संस्कृत, महिला अध्ययन, जूलॉजी, कम्प्यूटर साइंस, अर्थशास्त्र, नाट्य, जियोलॉजी, होम साइंस, म्यूजिक समेत कुल 43 विभागों में एक करोड़ रुपए की पुस्तकों की आवश्यकता बताई थी।

बाद में इसी राशि में से कर्मचारियों को ओवर टाइम के नाम पर भुगतान कर दिया। ये भी दिलचस्प है कि ओवरटाइम राशि का भुगतान राजस्थान विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति के अनुमोदन के बाद किया गया।

इन्होंने उठाया भुगतान

विश्वविद्यालय की ओर से कुल 78 अधिकारी-कर्मचारियों को ओवर टाइम भुगतान किया गया है। जिसमें प्रोफेसर रीना माथुर निदेशक सेंट्रल लाइब्रेरी को 7200, डिप्टी रजिस्ट्रार डॉ. पी.एल रैगर, डिप्टी लाइब्रेरियन डॉ. पवन कुमार गुप्ता, डॉ.एम.के. श्रीवास्तव, डॉ.अनिल गौतम, डॉ.प्रभा शर्मा, असिस्टेंट लाइब्रेरियन डॉ. नंदिनी खट्टर, सीनियर पी.ए. सतीश जान यानी, सीनियर तकनीकी असिस्टेंट सी.एम पारीक, ताराचंद, जूनियर तकनीकी असिस्टेंट बी.एल वर्मा, हनुमान सिंह राजपूत, पदम शर्मा, एस.एन मारोठिया, सुनयना भटनागर, अकाउंटेंट भंवरलाल सैनी, यूडीसी बशीरुद्दीन खान, मीना श्रीवास्तव आदि 7200 रुपए प्रति व्यक्तिके हिसाब से ओवरटाइम का भुगतान किया गया।

मुश्किल से दी सूचना

जब आरटीआई के तहत इस बारे में जानकारी मांगी गई तो विश्वविद्यालय ने उपलब्ध नहीं कराई। इतना ही नहीं राज्य सूचना आयोग के निर्णय के बाद भी विश्वविद्यालय यह सूचना दबाकर बैठा रहा। बाद में डॉ. यदुनाथ दशानन की ओर से राज्य सूचना आयोग में निर्णय की पालना नहीं होने को लेकर परिवाद दायर कराया गया। इसके बाद जब राज्य सूचना आयोग ने कार्रवाई के बाबत कड़ी फटकार लगाई तब जाकर विश्वविद्यालय की ओर से सूचना उपलब्ध कराई गई है(श्रवणसिंह राठौड़,दैनिक भास्कर,जयपुर,2.11.11)।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।