चिकित्सा विश्वविद्यालय में पीएचडी कराने वाले डाक्टरों को पहले अपनी ‘योग्यता’ का परिचय देना होगा। इसके बाद ही वे पीएचडी कराने के हकदार होंगे। इसके साथ ही विविद्यालय के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के छात्र- छात्राओं को लिखित परीक्षा पास करनी अनिवार्य होगी। चिकित्सा विविद्यालय में शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार के लिए महत्व पूर्ण कदम उठाये गये हैं। इसके तहत पीएचडी के लिए गाइड बनने के मानक तय किए जाएंगे। इन मानकों के लिए गठित कमेटी ने इसके नियम तय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। सूत्रों के अनुसार गाइड का प्रोफेसर होने के साथ ही दस साल का शिक्षण अनुभव होना जरूरी है। साथ ही गाइड बनने के लिए सम्बन्धित शिक्षक के कम से कम पांच पेपर अन्तरराष्ट्रीय स्तर के जरनल में प्रकाशित होने जरूरी हैं। इसके लिए गठित कमेटी यह भी तय करेगी कि एक समय में एक गाइड के साथ कितने छात्र शोध के लिए पंजीकृत होंगे। वरिष्ठ शिक्षकों का कहना है कि चिकित्सा वि विद्यालय में अब तक शोध कराने के लिए मानक तय नहीं हैं। ऐसे में समयबद्ध प्रोन्नति से शिक्षक प्रोफेसर तो बन गये हैं पर उनके पास अनुभव कम है। इससे शोध की गुणवत्ता पर प्रश्नचिह्न लगने लगा है। इसके साथ ही एमडी, एमएस व एडीएस की परीक्षा प्रणाली में बदलाव की तैयारी की गयी है। स्नातकोत्तर परीक्षा में अब तक थ्योरी के स्थान पर प्रैक्टिकल को ज्यादा महत्व दिया जाता है। चिकित्सा विविद्यालय में पीजी की लिखित परीक्षा में ग्रेड दिये जाते हैं। प्रैक्टिकल में मिले अंकों के आधार व ग्रेड मिला कर छात्र को पास किया जाता है। नयी व्यवस्था में लिखित परीक्षा में पास होने पर ही छात्र को पास किया जाएगा। मेडिकल फैकेल्टी व डेंटल फैकेल्टी के डाक्टरों की कमेटी को इसका प्रारूप तय करने की जिम्मेदारी सौंपी गयी है(राष्ट्रीय सहारा,लखनऊ,14.12.11)।
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