पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर हिंदी विश्वविद्यालय खोलने जा रही राज्य सरकार राष्ट्रभाषा को ज्यादा महत्व देने के लिए प्रदेश में सभी तरह के साइन बोर्ड हिंदी में भी लिखना अनिवार्य करने की तैयारी कर रही है।
इसके लिए ऑफिशियल लैंग्वेज एक्ट में संशोधन किया जाएगा। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक हिंदी के अलावा अन्य भाषाओं के साइन बोर्ड के साथ उनकी इबारत का हिंदी में अनुवाद भी लिखना अनिवार्य किया जाएगा। केंद्रीय आधिकारिक भाषा कानून में सभी राज्यों को अपनी आधिकारिक भाषा चुनने का अधिकार है।
मप्र के गठन के बाद 1956 हिंदी को प्रदेश की आधिकारिक भाषा घोषित किया गया था। तब केंद्र की ही तरह प्रदेश में भी राजभाषा विभाग बना था। जिसे बाद में संस्कृति विभाग में शामिल कर दिया गया।
अभी आधिकारिक भाषा है हिंदी
मप्र में अभी सरकार की आधिकारिक भाषा हिंदी है। सभी तरह के सरकारी कामकाज हिंदी में अनिवार्य हैं। जो काम अंग्रेजी में होते हैं उनका हिंदी में अनुवाद किया जाता है। साइन बोर्ड, नेमप्लेट भी हिंदी में लिखना अनिवार्य है। लेकिन प्रदेश में गैर सरकारी कामकाज में यह अनिवार्यता नहीं है।
संशोधन की मंशा के पीछे क्या?
सूत्रों के मुताबिक अटल बिहारी हिंदी विश्वविद्यालय की स्थापना के फैसले को पर्याप्त तारीफ नहीं मिल पाने के बाद सरकार हिंदी के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करना चाहती है। विवि खोलने के निर्णय को लेकर 26 दिसंबर को ग्वालियर में मुख्यमंत्री का सम्मान भी होने जा रहा है।
पार्टी हिंदी को बढ़ावा देने को एक मुहिम के तौर पर चलाना चाहती है। मध्यप्रदेश गान और आओ बनाएं अपना मध्यप्रदेश अभियान की अगली कड़ी में हिंदी की अनिवार्यता को लाया जाएगा। इस मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभात झा में चर्चा हो चुकी है।
गौरतलब है कि बीते सत्र में इस विवि का विधेयक सर्वसम्मति से पारित हुआ था और विपक्ष ने भी सरकार की मंशा की तारीफ की थी(सतीश एलिया,दैनिक भास्कर,भोपाल,14.12.11)।
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