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13 दिसंबर 2011

बरकतउल्ला विविःयूनिवर्सिटी के अंगने में नेताओं का क्या काम

यूनिवर्सिटी की कार्यपरिषद में राजनीतिज्ञों की नियुक्ति क्या जायज है? यह सवाल खड़ा हुआ है बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी की कार्यपरिषद की सदस्य और नूतन कॉलेज की प्राचार्य शोभना वाजपेयी मारु द्वारा नेताओं की नियुक्ति का विरोध करने के बाद।

उनका कहना है कि कार्यपरिषद में प्रबुद्धजनों की नियुक्ति होनी चाहिए जो शिक्षा के उत्थान में अपना योगदान दे सकें, न कि ऐसे नेताओं की जो बैठक का माहौल खराब करें। जबकि नेताओं का कहना है कि प्रशासनिक अधिकारियों पर नियंत्रण के लिए उनकी नियुक्ति आवश्यक है।

तीन पद हैं खाली


बीयू की कार्यपरिषद में फिलहाल 14 सदस्य हैं जबकि तीन पद खाली पड़े हैं। कुलपति इस परिषद का अध्यक्ष होता है। सदस्यों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। राज्यपाल द्वारा बीयू की वर्तमान कार्यपरिषद में अलग अलग क्षेत्र से छह लोगों को नियुक्त किया गया है। 

यह कहता है यूनिवर्सिटी एक्ट 

वर्ष 1973 में यूनिवर्सिटी एक्ट बनाया गया था। इसी एक्ट के अनुसार यूनिवर्सिटी का संचालन किया जाता है। एक्ट में यूनिवर्सिटी की कार्यपरिषद के सदस्य को लेकर प्रावधान है कि प्रबुद्धजनों को सदस्य बनाया जा सकता है, जो शिक्षा के उत्थान में अपना सहयोग प्रदान कर सकता हो। साथ ही अपने सुझावों के जरिए यूनिवर्सिटी को आगे ले जा सकता हो। 

सदस्य की नियुक्ति राज्यपाल करते हैं और सदस्य का कार्यकाल चार साल का होता है। यूनिवर्सिटी की नीति निर्धारण जैसे कॉलेजों की संबद्धता, नए विकास कार्यो की अनुमति सहित हर छोटे बड़े काम के लिए इनकी मंजूरी अहम होती है। हालांकि सुविधा के नाम पर इन्हें बैठक के लिए भत्ते के पांच सौ सहित यात्रा भत्ता मिलता है। 

यह कहते हैं सदस्य

कार्यपरिषद में राजनीतिज्ञों की नियुक्ति होनी ही नहीं चाहिए इससे विकास कार्य प्रभावित होते हैं। बैठक होती ही है अपना पक्ष रखने के लिए लेकिन उसका भी एक तरीका होता है। मैं राज्यपाल से मिलकर शिकायत करूंगी की कि कार्यपरिषद से राजनीतिज्ञों को हटाकर बुद्धिजीवियों की नियुक्ति की जाए। यदि ऐसा नहीं होता है तो मैं इस्तीफा दे दूंगी लेकिन अपमान सहन नहीं करूंगी। 

- डॉ. शोभना वाजपेयी मारु, प्राचार्य नूतन कॉलेज

बैठक में अपना पक्ष रखना कोई गलत बात नहीं है। हर सदस्य को अपने पक्ष रखने का अधिकार होता है। यदि कोई सदस्य उससे सहमत नहीं है तो उसे भी अपना पक्ष रखना चाहिए। बैठक छोड़कर जाना गलत है। वैसे भी मेरी नियुक्त राजनीतिक तौर पर नहीं प्रबुद्धजन के तौर पर हुई है। 

- अमित शर्मा, पूर्व पार्षद

राजनीतिक हस्तक्षेप होने से प्रशासनिक अधिकारी नियंत्रण में रहते हैं। इन अधिकारियों को कोई जानकारी तो होती नहीं है, बस कुछ भी फैसला लेना जानते हैं। हम राजनीतिक लोग कोई भी फैसला लेने से पहले पूरी पड़ताल करते हैं। प्रशासनिक अधिकारी स्टैंडिंग कमेटी में जो फैसला लेते हैं, उसकी छानबीन करके हम अपना अनुमोदन देते हैं। 

- गोपाल सिंह, सदस्य बीयू ईसी

केवल शिक्षाविद् नियुक्त हों

कार्यपरिषद में राजनीतिज्ञों की नियुक्तिनहीं होनी चाहिए। ये लोग कुलपति पर अवैध काम कराने के लिए दबाव बनाते हैं। कुलपति उनके गलत काम नहीं करता है तो झूठी शिकायत करते हैं। नियुक्ति के बाद सुविधाएं मांगना शुरू कर देते हैं। सदस्य के तौर पर केवल शिक्षाविदों की नियुक्ति ही होना चाहिए।

- संतोष श्रीवास्तव, पूर्व कुलपति बीयू(दैनिक भास्कर,भोपाल,13.12.11)

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