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03 सितंबर 2010

डूसू चुनाव में जारी है मतदान। कॉलेज तय करेंगे वोटिंग पर्सेंटेज

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) चुनाव के लिए आज विद्यार्थी मतदान कर रहे हैं। इस बार डूसू के चार पदों के लिए कुल 41 प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। मतदान सुबह साढ़े आठ बजे शुरू हुआ और शाम सात बजे तक चलेगा। इसके लिए डूसू चुनाव कमेटी एवं पुलिस ने पूरी तैयारी की है। चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से हों, इसके लिए 12 नियंत्रण कक्ष बनाए गए है। हर कॉलेज में थाना स्तर पर पुलिसकर्मी तैनात किए गए है। मतदान 51 कॉलेजों व विभागों में होगा और इसके लिए 875 ईवीएम लगाई गई है। इस साल करीब 1.5 लाख स्टूडेंट्स अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। मतगणना शनिवार सुबह होगी। डूसू अध्यक्ष पद के लिए एनएसयूआई के हरीश चौधरी, एबीवीपी के जितेन्द्र चौधरी, इनसो के सचिन कुमार, आईसा की श्वेता राज और एसएफआई के सुनंद चुनाव मैदान में है। इसी प्रकार उपाध्यक्ष पद के लिए एनएसयूआई के एए वर्धन चौधरी, एबीवीपी की प्रिया डबास, आईसा के अकरम अख्तर के चुनाव लड़ रहे है।

डीयू स्टूडेंट यूनियन (डूसू) चुनाव में कितने वोट पड़ेंगे, यह बहुत कुछ कॉलेज यूनियन के लिए होने वाली वोटिंग पर निर्भर होने लगा है। कॉलेजों की यूनियन और डूसू के लिए एक साथ वोटिंग होती है लेकिन जिन कॉलेजों में पैनल बिना किसी विरोध के चुन लिया जाता है, वहां के स्टूडेंट्स डूसू के लिए वोट करने में दिलचस्पी नहीं लेते। दरअसल स्टूडेंट्स कॉलेज यूनियन के चुनाव में तो बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं लेकिन डूसू के लिए वे बहुत उत्साहित नहीं होते। यह बात डीयू प्रशासन और छात्र संगठन भी मानते हैं। पिछले साल डूसू के लिए 47 पर्सेंट वोटिंग हुई थी।

चीफ रिटर्निंग ऑफिसर प्रो. जे. एम. खुराना के मुताबिक किसी कॉलेज में तो 20 पर्सेंट वोटिंग होती है तो किसी में 70 पर्सेंट तक स्टूडेंट्स वोट डालते हैं। वह कहते
हैं कि कॉलेजों में अपने चुनाव का असर डूसू की वोटिंग पर साफ नजर आता है। पिछले साल बहुत से कॉलेजों में कैंडिडेट को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था या फिर बिना विरोध चुनाव हो गए थे। सत्यवती कॉलेज में इंटरनल और डूसू के लिए भारी मतदान होता है लेकिन पिछले साल जिन कैंडिडेट ने प्रमुख पोस्ट के लिए नॉमिनेशन किया था, उन सभी की उम्मीदवारी कैंसल कर दी गई। दो सेंट्रल
काउंसलर का चुनाव पहले ही निर्विरोध हो गया था। इसके चलते डूसू पैनल के लिए बहुत ही कम वोटिंग हुई।

छात्र संगठनों को यह भी डर है कि कहीं खाली हॉस्टल का असर वोटिंग पर न पड़ जाए। नॉर्थ कैंपस के कॉलेजों में वोटिंग पर्सेंट बेहतर होता है क्योंकि यहां के कॉलेजों में हॉस्टल भी हैं और हॉस्टल के स्टूडेंट्स वोटिंग में बढ़-चढ़
कर हिस्सा लेते हैं। लेकिन इस बार कॉमनवेल्थ गेम्स के कारण हॉस्टलों में स्टूडेंट्स नहीं हैं। एबीवीपी के प्रदेश मंत्री आशुतोष श्रीवास्तव का कहना है कि नॉर्थ व साउथ कैंपस में वोटिंग अच्छी होती है लेकिन इस बार हॉस्टल में स्टूडेंट्स नहीं हैं और उन्हें वोटिंग के लिए प्रेरित करना चैलेंज है। उन्होंने बताया कि इस बार श्यामलाल ईवनिंग कॉलेज में सभी पोस्ट के लिए निर्विरोध चुनाव हो गया है, ऐसा कई कॉलेजों में हो रहा है और इन कॉलेजों में
स्टूडेंट्स डूसू पैनल के लिए वोट करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेंगे।

चुनाव अधिकारियों का कहना है कि डूसू चुनाव को लेकर स्टूडेंट्स का नजरिया अब पूरी तरह से बदल चुका
है। पार्टी पॉलिटिक्स इतनी हावी हो चुकी है कि आम छात्रों की भलाई के मुद्दे उठते ही नहीं है। दरअसल छात्र संगठनों के पास कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो चुनाव के समय ही सामने आते हैं और फिर बंद डिब्बे में चले जाते हैं। यू-स्पेशल बसों की कमी को हर बार बड़े स्तर पर उठाया जाता है लेकिन आजतक बसों की कमी दूर नहीं हो पाई। यही कारण है कि स्टूडेंट्स कॉलेज यूनियन के पदाधिकारियों पर अधिक विश्वास करते हैं।

बहुद बदलाव दिख रहा है इस बार
डूसू चुनाव प्रचार में इस बार बड़ा बदलाव देखने को मिला है। न तो कैंपस में रैली निकाली गई और न ही कोई
पोस्टर नजर आया। छात्र संगठन बेहद डरे हुए थे कि अगर इस बार पोस्टरबाजी की तो चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। छात्र संगठनों का कहना है कि इस तरह के नियम - कायदों ने डूसू चुनाव को बिल्कुल फीका कर दिया है। वहीं डीयू का कहना है कि चुनाव साफ - सुथरे तरीके से हो रहे हैं और यह सकारात्मक संकेत हैं। छात्र संगठनों ने इस बार ई - चुनाव प्रचार का सहारा लिया है। एसएमएस और फेसबुक के जरिए स्टूडेंट्स तक अपनी बात पहुंचाई गई है(भूपेंद्र,नवभारत टाइम्स,दिल्ली,3.9.2010)।

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