सूबे के लगभग पांच लाख बेरोजगार इंजीनियरों को रोटी के लाले पड़ गये हैं। काम की तलाश में ये इंजीनियर दर ब दर भटक रहे हैं। इनमें बरेली मंडल के भी दो दर्जन से अधिक कालेजों से निकले इंजीनियर शामिल हैं। बेरोजगार इंजीनियरों की इस आर्मी ने उच्च प्राविधिक शिक्षा की डिग्रियों को मखौल बनाकर रख दिया है। बेकारी की दशा में फुटबाल बने इंजीनियर तो अपनी पीड़ा भी बताने से कतराते हैं।कहते हैं-ऐसा करने से सामाजिक ही नहीं बल्कि सामाजिक साख भी मैली होती है। पास होने के बाद 80 फीसदी इंजीनियरों को नौकरी नहीं मिल सकी है। कानपुर की एक संस्था ने इसका रिकार्ड संग्रह किया है। इस संस्था से जुड़े एक इंजीनियर ने अपना नाम न उजागर करने की शर्त पर जागरण को फोन पर बताया कि 20 हजार जॉबलेस इंजीनियर तो अकेले कानपुर में हैं। बरेली मंडल के भी दो दर्जन से अधिक कालेजों में इनकी संख्या 10 हजार के आसपास बतायी जा रही है। गणना का आधार यूपीटीयू से संबद्ध 638 कालेजों और उनकी औसत छात्र संख्या को बनाया गया है। उनके मुताबिक प्रत्येक कालेज में हर साल 600 से 1000 तक इंजीनियर तैयार हो रहे हैं। इनमें से केवल 20 फीसदी को रोजगार मिल रहा है जबकि बाकी बेकार बैठे हुए हैं।
इंजीनियर से बेहतर मजदूर :
बेरोजगार इंजीनियरों का दावा है कि उनकी स्थिति खेतिहर मजदूर से भी बदतर है। तर्क है कि मजदूर को कम से कम 100 रुपये रोज की सुनिश्चित मजदूरी मिल रही है जबकि तमाम इंजीनियरों को दो से तीन हजार रुपये में नौकरी पर रखा जा रहा है। लखनऊ में लगभग 350 सॉफ्टवेयर कम्पनियों के ब्रोकर्स यही कर रहे हैं। एमटेक और एमबीए पास को भी नौकरियां नहीं मिल रहीं हैं। सॉफ्टवेयर सेक्टर भी बदतर : रोजगार के मामले में इस समय उसी सॉफ्टवेयर सेक्टर की हालत सबसे खस्ता है, जिसका कभी सूरज नहीं डूबता था। इसके इंजीनियर मंुहमांगा वेतन पाते थे। इसके मुकाबले सिविल, मकैनिकल और इलेक्टि्रकल इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग थोड़ी बेहतर हालत में है क्योंकि इनके डिग्रीधारियों को सार्वजनिक क्षेत्र में मौका मिल जा रहा है।
ऐसे कालेज रहेंगे तो हालात बेहतर नहीं :
बेरोजगारों की पलटन सजाने की करतूत राज्य सरकार और यूपीटीयू की है। कालेजों की सम्बद्धता में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। तीन-तीन कमरों और बाउंडरी के बूते यूपीटीयू से सम्बद्धता लेकर कालेज बना लिये गये हैं। ये छात्रों को खुला प्रवेश दे रहे हैं। प्रवेश के समय गिफ्ट और शुल्क में 30 से 40 प्रतिशत तक की छूट दे रहे हैं। अधिकांश कालेज 6 से 10 हजार के मासिक वेतन पर शिक्षक रखे हुए हैं(आर.एस.सोलंकी,दैनिक जागरण,बरेली,4.9.2010)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।