पिछड़ा वर्ग आयोग ने दस साल पहले राज्य सरकार को दी अपनी रिपोर्ट में गुर्जरों को जाट, बिश्नोई, सुनार, यादव, चारण, धाकड़ आदि 15 जातियों की श्रेणी में रखा था और इनके लिए छह प्रतिशत नौकरियां आरक्षित की थीं।
आयोग ने वर्ष 2001 में सरकार को भेजे इस प्रतिवेदन में ओबीसी की 79 जातियों को पिछड़ेपन के आधार पर तीन श्रेणियों में बांटा था। उस समय गुर्जरों को पिछड़ा वर्ग की ए श्रेणी में रखा गया था, हालांकि बाद में चौपड़ा आयोग की रिपोर्ट में गुर्जरों को अति पिछड़ा हालात वाली जातियों की श्रेणी में रखा गया। भास्कर को मिले जुलाई 2001 के नवें प्रतिवेदन के अनुसार रैबारी, कुम्हार, बढ़ई आदि 26 जातियों को अति पिछड़ा वर्ग में 7 फीसदी आरक्षण का सुझाव दिया गया।
आयोग ने बंजारा, गाड़िया लोहार और गड़रिया आदि 38 जातियों को ओबीसी की सबसे ज्यादा पिछड़ी जातियां मानते हुए 8 फीसदी आरक्षण देने की सिफारिश की थी। गुर्जर आंदोलन और जस्टिस जसराज चोपड़ा आयोग की रिपोर्ट के बाद हालात कुछ ऐसे बदले कि सबसे कम पिछड़े वर्ग के गुर्जर और सबसे ज्यादा पिछड़े वर्ग के गाड़िया-लोहार और बंजारा को एक साथ रखकर विशेष पिछड़ा वर्ग बनाया गया।
आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष रणवीर सहाय वर्मा बताते हैं, उस समय सरकार ने न तो ओबीसी वर्गीकरण का सुझाव माना और न ही ओबीसी जातियों के अध्ययन के लिए चाहा गया फंड दिया। अगर दस साल पहले जातियों का अध्ययन होता तो आज सरकार के पास सभी जातियों के पिछड़ेपन के आंकड़े मौजूद होते और गुर्जरों के आंदोलन का समय रहते समाधान भी करना आसान होता।
विधि सम्मत नहीं था वर्गीकरण
: हालांकि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व सदस्य सचिव सत्यनारायण सिंह ने कहा है कि आयोग के नौवे प्रतिवेदन में ओबीसी विभाजन की सिफारिश विधि सम्मत नहीं थी। आयोग का काम ओबीसी सूची में जातियों को जोड़ने या हटाने के बारे में सरकार को सुझाव देना है। आयोग ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर बिना किसी वैज्ञानिक आधार के ओबीसी का वर्गीकरण किया था, लेकिन वर्मा आयोग के इस काम को सही बताते हैं।
खर्चा डेढ़ करोड़, नतीजा शून्य:
फिलहाल राज्य में जो पिछड़ा वर्ग आयोग काम कर रहा है, उसका गठन जुलाई 2007 में हुआ था। पिछले तीन साल में आयोग ने क्या किया इस सवाल पर वर्तमान अध्यक्ष पीके तिवाड़ी कहते हैं कि आयोग की रिपोर्ट गोपनीय होती है, पब्लिक नहीं कर सकते। हम जो भी करते हैं सिर्फ सरकार को बताएंगे। सूत्रों का कहना है कि पिछले तीन साल में करीब डेढ़ करोड़ का बजट मिला है। यहां अध्यक्ष और सदस्य समेत कुल 19 पद स्वीकृत हैं।
यह था फार्मूला
अत्यधिक पिछड़ा वर्ग: 38 जातियां: 8% आरक्षण: बागरिया-बंजारा-बालदिया-लबाना, भड़भूजा, डाकोत-देशान्तरी-रंगासामी (अड़भोपा), नगारची-दमामी-राणा-बायती (बारोठ), दरोगा—रावणा राजपूत—हजूरी—वजीर, गडरिया (गाडरी, गायरी)—घोसी (ग्वाला), गाड़िया लोहार—गाडोलिया, गिरी—गोसाई(गुशांई), हेला, जुलाहा, जोगी—नाथ— सिद्ध, काछी (कुशवाहा, शाक्य), कण्डेरा—पिंजारा, खारोल (खारवाल), किरार (किराड़), महा ब्राह्मण(अचारज), फकीर (कब्रिस्तान में कार्य करने वाले), मिरासी—ढाडी—लंग—मंगनियार, मोगिया—मोग्या, न्यारिया (नयारगर), साद—स्वामी—बैरागी—जंगम, सिकलीगर—बंदूकसाज (उस्ता), सिरकीवाल, जागरी, हलाली—कसाई, फारूकी भटियारा, खेरवा, धोबी (मुस्लिम), कुंजड़ा—राइन, सपेरा (गैर हिंदू जाति), मदारी—बाजीगर (गैर हिंदू जाति), नट (गैर हिंदू जाति), मुल्तानीज, अनाथ बच्चे, मोची (गैर हिंदू जाति), राठ, सिंधी मुसलमान, खेलदार।
अति पिछड़ा वर्ग:
26 जातियां: 7% आरक्षण: बढ़वा-जाचक-भाट-जागा-राव, बढ़ई, जांगिड़, खाती-सुथार-तरखान, छीपा (छीपी)-भावसार-नामा-खट्टी छीपा-रंगरेज—नीलगर, धीवर—कहार—भोई—सगरवंशी माली—कीर—मेहरा—मल्लाह (निषाद)—बारी—भिश्ती—मछुआरा, दर्जी, घांची, तेली, कुम्हार (प्रजापति)—कुमावत—सुआरा, लखेरा (लखारा)—कचेरा—मनिहार, लोधी (लोधा), लोहार—पांचाल, मेर (मेहरात काठासत, मेहरात घोडात, चीता), नाई, ओड, पटवा (फदाल), राईका—रैबारी (देवासी), रावत, सतिया सिंधी, ठठेरा—कन्सारा (भरावा), चूनगर, तमोली (तम्बोली), राय सिख, दांगी, लोढे तंवर, सिलावट (सोमपुरा, मूर्तिकार के अतिरिक्त), चेजारा, गाडीत नागौरी
पिछड़ा वर्ग:
15 जातियां: 6% आरक्षण: अहीर (यादव), चारण, धाकड़, गूजर-गुर्जर, कलाल (टाक), कनबी-कलबी-पटेल-पाटीदार, आंजणा-डांगी पटेल-कुलमी, माली—सैनी—बागवान, स्वर्णकार—सुनार—सोनी—जड़िया, जाट, सोंधिया, कायमखानी, मेव, विश्नोई, जणवा—खारडीया (सीरवी), गद्दी(अजीत सिंह,दैनिक भास्कर,जयपुर,2.1.11)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।