आयुर्वेद शिक्षकों के लिए भले ही यह खुशी की बात हो, लेकिन आयुर्वेद शिक्षा के लिए यह खतरे की घंटी है। देश-दुनिया में आयुर्वेद का महत्व बढ़ते ही आयुर्वेद चिकित्सकों के दिन भी फिर गए हैं। आयुर्वेद चिकित्सक अब न केवल सरकारी नौकरी छोड़ने लगे हैं, बल्कि सिलेक्ट होने के बाद पद ठुकरा भी रहे हैं। आलम यह है कि एक ही साल में दस से अधिक आयुर्वेद शिक्षक सरकारी कालेजों को बाय-बाय कर चुके हैं। आयुर्वेद डिग्रीधारियों को अब न तो कालेजों में पढ़ाना रास आ रहा है और न अस्पतालों में मरीजों की नब्ज टटोलने में ही दिलचस्पी बची है। अब सभी की पहली पसंद हो गए हैं बड़े पैकेज पर मिल रहे पद। इसके चलते प्रदेश में पलायन की स्थिति बन गई है। आयुर्वेद शिक्षकों में बढ़ी पलायन की स्थिति से सरकार की चिंता बढ़ गई है, लेकिन इसे रोकने सरकार के प्रयास अभी भी नाकाफी हैं। कुछ सालों पहले जब प्राइवेट मेडिकल कालेज खुले तो सरकारी मेडिकल कालेज के शिक्षकों ने नौकरी छोड़ना शुरू कर दिया। हालात यह हो गए कि कई कालेजों में विभाग ही खाली हो गए। सबसे ज्यादा दिक्कत नान क्लीनिकल विभाग में आ गई है। उसके बाद सरकार ने उनकी रिटायरमेंट उम्र बढ़ाकर 65 साल कर दिया। अब यही हालात आयुर्वेदकालेजों में बनने जा रहे हैं। लेक्चरर, रीडर, प्रोफेसर व प्राचार्य मिलाकर प्रदेश के सभी सातों आयुर्वेद कालेजों में शिक्षकों के 311 पद हैं। इनमें लगभग दस शिक्षक हर साल रिटायर हो रहे हैं। चयन होने के बाद भी नए शिक्षक ज्वाइन नहीं कर रहे हैं। बाकी नौकरी छोड़कर जा रहे हैं। अलग-अलग संवर्ग के दस से भी अधिक शिक्षक इस साल नौकरी छोड़कर दूसरे प्रदेशों में चले गए। इनमें कुछ तो ऐसे थे जो अपने विभाग में इकलौते थे। अगर इसी तरह से शिक्षक कालेज छोड़कर जाते रहें तो पांच साल के भीतर आयुर्वेद कालेजों में कई विभाग बंद हो जाएंगे। क्या है वजह : सरकारी आयुर्वेद कालेजों में लेक्चरर से लेकर प्राचार्य तक का वेतन अन्य प्रदेशों की तुलना में बहुत कम है। उन्हें न तो यूजीसी वेतनमान दिया जा रहा और न ही प्रदेश के डिग्री कालेजों में शिक्षकों को मिलने वाला वेतन ही उन्हें मिल रहा है। यहां तक सभी संवर्ग में वेतन भी लगभग बराबर है। उधर दिल्ली, हरियाणा व उत्तर प्रदेश में सरकारी व निजी आयुर्वेद कालेजों में वेतनमान काफी ऊंचे होने कारण शिक्षकों का पलायन शुरू हो गया है(शशिकान्त तिवारी,दैनिक जागरण,भोपाल,9.1.11)।
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