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28 अक्तूबर 2011

शिक्षा क्षेत्र में गिरावट, जिम्मेदार कौन?

"शिक्षा मानव को बंधनों से मुक्त करती है और आज के युग में तो यह लोकतांत्रिक चेतना का आधार भी है। जन्म तथा अन्य कारणों से उत्पन्ना जाति एवं वर्गगत विषमताओं को दूर करते हुए मनुष्य को इनसे ऊपर उठाती है।" पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की ये पंक्तियाँ वर्तमान में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। परंतु सवाल तो यह है कि वह शिक्षा कैसी हो? विद्वानों द्वारा वर्तमान शिक्षा-व्यवस्था पर प्रश्न उठाए जाते रहे हैं। हाल में इंफोसिस से सेवानिवृत्त हुए नारायण मूर्ति ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों की शिक्षा-व्यवस्था पर प्रश्न उठाया जिसने इस मुद्दे को बहस की तरफ गति दी है। आज उच्च शिक्षण संस्थाओं में भी कई तरह की समस्याएँ पैदा हो रही हैं।


भारतीय शिक्षा-व्यवस्था में कई तरह की खामियाँ हैं। कई राज्यों में तो पुराने पड़ चुके पाठ्यक्रमों को चलाया जाता है। इससे हमें आधुनिक समस्याओं से लड़ने की सीख दी जाती है। कोई भी आसानी से समझ सकता है कि आधुनिक समस्या का सामना इन पुराने पाठ्यक्रमों से नहीं होने वाला है। देश के नीति-नियंता इस बात से भलीभाँति अवगत हैं कि शिक्षा का स्तर ऊँचा बनाकर ही हम एक स्वस्थ लोकतांत्रिक देश के रूप में प्रतिष्ठित हो सकते हैं। परंतु ठोस इच्छाशक्ति का अभाव व कुछ राजनीतिक स्वार्थ के वशीभूत इसमें सुधार के प्रति इच्छाओं का अभाव दिखता है। 
शिक्षा-व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए कई सरकारी और गैर-सरकारी समितियों का गठन हुआ लेकिन कोई बेहतर परिणाम नहीं निकला। इसके लिए सरकार को ही दोष नहीं दिया जा सकता, बहुत हद तक आम नागरिक भी इसके लिए जिम्मेदार हैं। हम अपने बच्चों को जैसी प्रारंभिक शिक्षा देते हैं, उसके भविष्य का निर्धारण भी उसी से होता है। जिस प्रकार की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की हम आशा करते हैं, क्या उसी प्रकार की गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा हम अपने बच्चों को देते हैं? हमें सोचना चाहिए। साथ ही सरकार को अपने राजनीतिक स्वार्थों से कि ऐसी चूक हमसे क्यों होती है। इसके लिए हमें अपने निहित स्वार्थों से ऊपर उठकर देश हित के मुद्दे को प्राथमिकता देनी होगी, तभी हम वैश्विक स्तर पर प्रतियोगिता का सामना कर पाएँगे। बिहार का उदाहरण यहाँ लिया जा सकता है जिसकी कई योजनाओं ने शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। अभी बिहार सरकार की एक योजना "समझें-सीखें" अस्तित्व में आई है, जिसमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को प्राथमिकता दी गई है। 

यह एक अनुकरणीय पहल है जिसका स्वागत किया जाना चहिए। शिक्षा पर हम जितना खर्च कर रहे हैं यदि उसकी गुणवत्ता पर भी उतना ही ध्यान दिया जाए तो हम अपने उद्देश्य में सफल हो सकते हैं और भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। अतः शिक्षा को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ना जरूरी है(गौरव कुमार,नई दुनिया,दिल्ली,26.10.11)।

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