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19 नवंबर 2011

ज्यादातर लॉ कॉलेजों में लीगल सर्विस क्लिनिकों की दशा खराब

देश के विधि महाविद्यालयों में लीगल सर्विस क्लिनिकों की दशा बेहद शोचनीय है और ज्यादातर क्लिनिकों के पास उचित कार्यकारी संरचना, स्थान या सेवा उपलब्ध कराने संबंधी नीति का अभाव है। इस बात का खुलासा भारत सरकार और संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा संयुक्त रूप से सात राज्यों में चलाए जा रहे ‘एक्सेस टू जस्टिस फॉर मार्जिनलाइज्ड पीपुल’ कार्यक्र म के तहत डा. एमआरके प्रसाद और डा. पिन्हीरो द्वारा ‘स्टडी ऑफ लॉ स्कूल बेस्ड लीगल सर्विस क्लिनिक्स’ अध्ययन में किया गया है। यह अध्ययन उड़ीसा, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में किया गया। प्राथमिक आंकड़ों के संग्रह के लिए इन राज्यों के 427 विधि महाविद्यालयों में से 134 से संपर्क किया गया। इनमें से 95 महाविद्यालयों में लीगल सर्विस क्लिनिक थे जबकि 39 में नहीं थे।अध्ययन में पाया गया है कि ज्यादातर लॉ स्कूलों में लीगल सर्विस क्लिनिकों की शुरुआत महज अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए की गई है। अध्ययन में पाया गया है कि संकाय सदस्यों को काम का या छात्रों को कोई शैक्षणिक श्रेय नहीं दिया जाता। अध्ययन दल का कहना है कि इन प्रकोष्ठों की ज्यादातर गतिविधियां महज कुछ कानूनी साक्षरता शिविर चलाने तक सीमित है। सात राज्यों में स्थित छह नेशनल लॉ स्कूल में तो कानूनी सहायता (लीगल एड) की घोर उपेक्षा पाई गई। वहां कौशल का अभाव, बार और बेंच को शामिल न किया जाना और विधिक सेवा प्राधिकार (एलएसए) के साथ सहयोग का साफ तौर पर अभाव देखा गया। अध्ययन में जो कमियां पाई गईं उनमें वित्तीय समर्थन का अभाव शीर्ष स्थान पर है। संकाय सदस्यों के वकालत करने पर पाबंदी, छात्रों को अकादमिक श्रेय का अभाव, विधिक सेवा का संकाय के काम का हिस्सा न होना, बार को शामिल नहीं किया जाना, आधारभूत संरचना का अभाव आदि प्रमुख हैं।अध्ययन में बार काउंसिल ऑफ इंडिया से क्लिनिकल टीचर को अनिवार्य आवश्यकता बनाने, इन क्लिनिकों को धन मुहैया कराने, पांच क्षेत्रों में प्रशिक्षण केंद्रों की शुरुआत करने और शोध को प्रोत्साहन देने की अनुशंसा की गई है(राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,19.11.11)।

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