मुख्य समाचारः

सम्पर्कःeduployment@gmail.com

12 दिसंबर 2011

दिल्ली में सरकारी स्कूलों की कमी

दिल्ली में नर्सरी दाखिले की प्रक्रिया शुरू होने वाली है लेकिन सरकारी स्कूलों में सीटों की कमी होना निश्चित ही चिंताजनक है। इन स्कूलों में सीटों की कमी के कारण जहां कई बच्चे दाखिला हासिल नहीं कर पाएंगे, वहीं कई अन्य के अभिभावकों को मजबूरीवश महंगे निजी स्कूलों का रुख करना पड़ेगा। विगत दस वर्षो में राजधानी में नर्सरी दाखिला बड़ी चुनौती बन गई है। हर साल बच्चों की संख्या में 30 से 40 हजार की बढ़ोतरी हो जाती है लेकिन सरकारी स्कूलों में नर्सरी के लिए मात्र 17 हजार सीटें ही हैं। सरकारी स्कूलों में सीटें कम होने का परिणाम यह है कि वर्ष 2009 में निजी स्कूलों की करीब दो लाख सीटों के लिए साढ़े चार लाख बच्चों ने आवेदन किया था, जबकि 2010 में इतनी सीटों के लिए पांच लाख आवेदन आए। पिछले एक दशक में निजी स्कूलों की संख्या में सौ फीसदी इजाफा हुआ है लेकिन सरकारी स्कूलों की संख्या दस फीसदी भी नहीं बढ़ी। मौजूदा समय में दिल्ली में सरकारी स्कूलों की संख्या 637 है, जिनमें सुबह और शाम की पालियों को मिलाकर कुल 925 स्कूल चलते हैं। पाली बढ़ाकर कक्षाओं की संख्या तो बढ़ा दी गई, लेकिन इमारतें सिर्फ 637 ही हैं। विगत दस वर्षो में दिल्ली में सिर्फ 50 सरकारी स्कूल बने हैं, जबकि वर्ष 2000 और 2001 में राजधानी में छोटे-बड़े मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों की संख्या हजार से ग्यारह सौ थी जो अब बढ़कर 1950 हो गई है। राजधानी में गैर मान्यता प्राप्त स्कूलों की संख्या करीब 1591 है। सरकारी स्कूलों में दो पालियां शुरू करने से कुछ राहत अवश्य मिली है, लेकिन इससे समस्या पूरी तरह हल नहीं हो सकी है। दिल्ली में हर साल नर्सरी दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या को देखते हुए सरकार व दिल्ली नगर निगम को विशेष योजना बनाकर प्राथमिकता के आधार पर नए स्कूल बनाने की दिशा में कार्य करना चाहिए ताकि अभिभावकों को अपने बच्चों के दाखिले के लिए निजी स्कूलों की ओर न देखना पड़े। स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देने के साथ ही बच्चों को शिक्षा के लिए उचित माहौल मुहैया कराना भी आवश्यक है। इसके मद्देनजर सरकारी स्कूलों में बिजली, पानी, शौचालय इत्यादि की भी उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। स्थिति यह होनी चाहिए कि दिल्लीवासी निजी स्कूलों को विकल्प के तौर पर लें, उनमें बच्चों का दाखिला कराना उनकी मजबूरी न बने(संपादकीय,दैनिक जागरण,दिल्ली,12.12.11)।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।