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25 जनवरी 2011

दिल्ली में देर रात तक बेघरों को गिनेंगी शिक्षिकाएं

महिलाओं के लिए क्राइम कैपिटल साबित हो रही दिल्ली में जनगणना विभाग ने महिला शिक्षकों को बेघरों की गणना करने का काम दिया है। इसे लेकर शिक्षिकाओं में डर है। एक शिक्षिका बताती हैं कि पिछली बार जनगणना के दौरान उन्हें वह रात अब भी याद है, जब वह पति के साथ जनगणना में व्यस्त थीं। रात के करीब 8 बज गए थे। सैनिक फार्म स्थित एक घर में डॉक्टर का ब्यौरा दर्ज करना था। घर में घुसते ही डॉक्टर ने उनका बैग और सामान एक ओर रखवा लिया। पालतू कुत्तों से डराने लगे। उसका दोस्त क्षेत्रीय एसडीएम था। इसलिए कई बार थाने के चक्कर भी लगाने पडे़। एक अन्य शिक्षिका बताती हैं कि रैन बसेरे व सुनसान जगहों पर ठिकाना बनाने वाले बेघर लोग अक्सर नशे में धुत रहते हैं। अगर अकेली शिक्षिका के साथ रात में कोई अनहोनी हो गई तो उसका जिम्मेदार कौन होगा? शिक्षिकाएं कहती हैं कि बेघर परिवारों की गणना पूरी करनी है, साथ ही उनके मुखिया का नाम भी दर्ज करना है। बेघरों का परिवार बहुत कम मिलता है। अधिकांश बेघर समूह बनाकर रहते हैं, जो सुरक्षा की दृष्टि से अपने साथ पत्थर व डंडे लेकर सोते हैं। ऐसे में उनके पास जाना खतरा मोल लेने जैसा है। उल्लेखनीय है कि दिल्ली के शिक्षा निदेशालय ने सभी सरकारी स्कूलों को पुस्तिका भेजी है। इसमें निर्देश दिए हैं कि दूसरे चरण की जनगणना के दौरान शिक्षकों को बेघर लोगों की गणना करनी है। बेघर लोगों की गणना का समय 28 फरवरी को रात 8 से 12 बजे रहेगा। सभी शिक्षक 9 से 28 फरवरी के बीच मकानों में रहने वाले परिवारों के सभी व्यक्तियों की गणना पूरी कर लें। सरकारी स्कूल टीचर्स एसोसिएशन के महासचिव मदन मोहन तिवारी ने कहा कि दिल्ली महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है। यह जनगणना शिक्षक वर्ग से न कराकर रैन बसेरे लगाने वाले एनजीओ से करानी चाहिए। दिन में अपराधियों पर लगाम लगाने में नाकाम रहने वाली पुलिस रात में तो अक्सर नदारद रहती है। ऐसे में रात में बेघरों की गणना करना शिक्षिकाओं के लिए चिंता का सबब है(दैनिक जागरण,दिल्ली,25.1.11)।

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