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24 जनवरी 2011

यूपीःटूट रहे हैं होम्योपैथी में एम.डी. के ख़्वाब

प्रदेश में होम्योपैथ को उच्च स्तर पर ले जाने के दावे तीन साल के इंतजार के बाद भी आज तक पूरे नहीं हो सके। इस सस्ती चिकित्सा पद्धति की राजकीय होम्योपैथिक कॉलेजों में पढ़ाई को उच्च स्तरीय बनाने की योजना जहां की तहां पड़ी है। हालत यह है कि एक तरफ जहां एलोपैथी के मेडिकल कालेजों में पीजी सीटों की संख्या बढ़ाए जाने की कवायद हो रही है, वहीं राजकीय होम्योपैथ कॉलेजों में छात्रों का भविष्य बस केवल स्नातक (बीएचएमएस) तक ही सिमट गया है। परास्नातक (एमडी) की पढ़ाई गुरुओं के इंतजार में अटकी पड़ी है। प्रदेश में एमडी की पढ़ाई शुरू करने के लिए शासन ने मई 2007 में ही योजना तैयार की थी। लखनऊ, इलाहाबाद और कानपुर के कालेजों में तीन विषयों आर्गेनन आफ मेडिसिन, रिपार्टरी व मटेरिया मेडिका में एमडी की पढ़ाई शुरू करने के लिए छह-छह पदों को भी स्वीकृत कर दिया। प्रादेशिक होम्योपैथ शिक्षक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. एके मिश्रा के मुताबिक इनमें तीन रीडर और तीन प्रोफेसर की नियुक्ति होनी थी, पर आज तक ये पद खाली ही पड़े हैं। इन पदों को भरे जाने के बाद ही केंद्रीय होम्योपैथिक चिकित्सा परिषद एमडी के लिए पढ़ाई की मंजूरी देगा। पूरे प्रदेश में होम्योपैथ कालेज प्रोफेसरों से विहीन हैं। केवल लखनऊ के ही कालेज में महज दो प्रोफेसर हैं। प्रदेश के कई कॉलेजों में रीडरों का भी जबरदस्त टोटा पड़ा हुआ है। हाल में डीपीसी देकर रीडरों के कुछ पद भरे गए हैं। डॉ. एके मिश्रा के मुताबिक इस मामले को लेकर संघ की शासन से बात भी हुई है। शासन ने साक्षात्कार के जरिए नियुक्ति से पहले डीपीसी से पदों को भरने की बात कही, लेकिन आज तक इसका भी कोई अता-पता नहीं है। प्रदेश में एमडी की पढ़ाई केवल निजी कालेजों में संभव है। इलाहाबाद और गाजियाबाद में ही दो निजी संस्थानों में एमडी की पढ़ाई चल रही है, लेकिन इनमें भी बस बीस सीटें ही हैं। ऐसे में छात्रों को भटकने के सिवा कोई चारा नहीं(दैनिक जागरण,इलाहाबाद,24.1.11)।

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