मप्र सरकार तमाम कोशिशों के बावजूद ग्रामीण इलाकों में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने में कामयाब नहीं हो पा रही है। पहले डॉक्टर गांव-देहात में जाने से कतराते थे, अब पैरामेडिकल स्टाफ भी शहरों में ही अपनी पोस्टिंग कराने में रुचि लेता है। लिहाजा सरकार ने डॉक्टरों की तरह पैरामेडिकल स्टाफ को भी बांड से जोड़ने का रास्ता निकाला है।
नई व्यवस्था के तहत अब जूनियर डॉक्टरों की तर्ज पर पैरामेडिकल स्टाफ को भी ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में कम से कम दो साल तक अपनी सेवाएं देना पड़ेंगी। पहले चरण में सरकार 212 रेडियोग्राफर और लैब टेक्नीशियनों को गाव के अस्पतालों में नियुक्ति देने जा रही है।
राज्य के स्वास्थ विभाग ने नई व्यवस्था ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पतालों में रेडियोग्राफर और लैब टेक्नीशियन के रिक्त पदों को भरने के लिए की है। इसके तहत पैरामेडिकल स्टाफ से न्यूनतम दो साल की नौकरी ग्रामीण क्षेत्र के अस्पताल में करने का बाड भरवाया जाएगा।
सूत्रों का कहना है कि जूनियर डॉक्टरों की तरह पैरामेडिकल स्टाफ भी गावों के अस्पतालों में नौकरी करने नहीं जा रहा है। इसके चलते प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में इलाज कराने जाने वाले मरीजों को चिकित्सा जाच के लिए निजी पैथॉलाजी लैब में जाना पड़ता है। निजी लैब में प्रशिक्षण प्राप्त अमला है या नहीं, यह देखने वाला भी कोई नहीं है। जाहिर है, ऐसे में हर तरह की मेडिकल जांच के लिए ग्रामीणों को शहरों की तरफ भागना पड़ता है। आपात स्थिति में कई बार ग्रामीणों की तकलीफ और बढ़ जाती है।
इसलिए सभी पर लागू होगी योजना
सूत्रों का कहना है कि पहले चरण में सरकार जिन 212 लैब टेक्निशियनों और रेडियोग्राफर की भर्ती करने जा रही है, दरअसल ये सभी अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के हैं और सरकार ने अपने खर्च पर इनको पढ़ाया है। बताते हैं कि इन उम्मीदवारों ने गाव में नौकरी का आश्वासन दिया है। जानकारों का कहना है कि जो अपने पैसे से पैरामेडिकल का कोर्स करते हैं, वे ग्रामीण क्षेत्रों में जाना पसंद नहीं करते। हालांकि सरकार अब सभी उम्मीदवारों के लिए यह योजना शुरू करने जा रही है। मगर देखने वाली बात यही होगी कि आगे आने वाले समय में कितने उम्मीदवार बांड भरकर गांव में नौकरी करने में रुचि दिखाते हैं।
मप्र में पैरामेडिकल स्टाफ के लगभग तीन हजार पद खाली हैं और इनमें से ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों के हैं। सरकार के सामने इनकी तैनाती ही सबसे बड़ी चिंता का विषय है(दैनिक जागरण,भोपाल,24.1.11)।
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