सीबीएसई की 10वीं क्लास के रिजल्ट में इस बार ग्रेडिंग सिस्टम दिखाई देगा। स्टूडेंट्स को हर सब्जेक्ट में ग्रेड और ग्रेड पॉइंट मिलेंगे। बोर्ड ने स्टूडेंट्स को ग्रेडिंग का फंडा समझाने और 11वीं क्लास में एडमिशन का क्राइटेरिया बनाने के लिए एक फॉर्म्युला तय किया है। ग्रेड, ग्रेड पॉइंट और कमुलेटिव ग्रेड पॉइंट ऐवरेज (सीजीपीए) के हिसाब से स्टूडेंट्स को अपने मार्क्स का अंदाजा हो जाएगा। हालांकि यह पता नहीं चल पाएगा कि स्टूडेंट्स को कितने मार्क्स मिले हैं। फॉर्म्युले से मार्क्स के आसपास जरूर पहुंचा जा सकता है। बोर्ड ने नौ पॉइंट वाले ग्रेडिंग सिस्टम को तीन भागों में बांटा है - मार्क्स रेंज, ग्रेड और ग्रेड पॉइंट। ए1, ए2, बी1, बी2, सी1, सी2, डी, ई1 और ई2 नौ ग्रेड होंगे।
ई और ई2 लाने वाले स्टूडेंट को उस सब्जेक्ट के एग्जाम में फिर से बैठना होगा और उसे पांच मौके मिलेंगे। डी ग्रेड तक लाने वाले स्टूडेंट्स अगली क्लास में प्रमोट हो जाएंगे। बोर्ड के फॉर्म्युले में ग्रेड पॉइंट का रोल बहुत अहम है। ए1 ग्रेड लाने वाले को पूरे 10 ग्रेड पॉइंट मिलेंगे। ए2 वाले को 9, बी1 ग्रेड वाले को 8, इसी तरह से डी ग्रेड वाले को कम से कम 4 ग्रेड पॉइंट मिलेंगे। ई1 और ई2 को कोई ग्रेड पॉइंट नहीं मिलेगा।
सीबीएसई के फॉर्म्युले से सब्जेक्ट हर सब्जेक्ट और ओवरऑल मार्क्स का अंदाजा लगाया जा सकता है। अगर इंडिकेटिव फीसदी निकालना है तो उस सब्जेक्ट का ग्रेड पॉइंट देखना होगा। मसलन अगर स्टूडेंट का मैथ्स में ए1 ग्रेड है तो उसको 10 ग्रेड पॉइंट मिलेंगे। इस 10 ग्रेड पॉइंट को 9.5 से गुणा करना होगा तो रिजल्ट 95 आएगा, यानी स्टूडेंट के मार्क्स 95 के आसपास हैं। सीबीएसई के कंट्रोलर ऑफ एग्जामिनेशन एम. सी. शर्मा का कहना है कि ग्रेडिंग का मकसद यही है कि एक-एक नंबर को लेकर होने वाली टेंशन को कम किया जाए। इस फॉर्म्युले से स्टूडेंट्स को यह तो अंदाजा लग जाएगा कि उसके मार्क्स की रेंज क्या है लेकिन असल में कितने मार्क्स हैं, यह नहीं पता लगेगा। इसी तरह से हर सब्जेक्ट की मार्क्स रेंज पता लगाई जा सकती है। उसके बाद सीजीपीए पता लगाया जा सकता है। सीजीपीए पांच सब्जेक्ट का ऐवरेज ग्रेड पॉइंट होगा। मसलन अगर किसी स्टूडेंट के पांचों सब्जेक्ट में ए1 ग्रेड है तो उसके ग्रेड पॉइंट 50 होते हैं और इस 50 पॉइंट को 5 से डिवाइड करें तो सीजीपीए 10 आ जाता है। इसी तरह से अगर किसी स्टूडेंट के तीन सब्जेक्ट में ए1 है तो इन तीन सब्जेक्ट का ग्रेड पॉइंट 30 होगा और दो सब्जेक्ट में अगर ए2 है तो इन दो सब्जेक्ट का ग्रेड पॉइंट 18 हो जाएगा। कुल मिलाकर 48 ग्रेड पॉइंट हो गए और 48 को पांच से डिवाइड करने पर 9.6 आ जाता है।
सीजीपीए के आधार पर ओवरऑल इंडिकेटिव फीसदी का पता चल जाएगा यानी स्टूडेंट को अंदाजा हो जाएगा कि उसे कितने पसेर्ंट मार्क्स मिले हैं। अगर सीजीपीए 10 है तो इसे 9.5 से गुना करना होगा। 9.5 को 10 से गुना करने पर 95 की कैलक्युलेशन आती है यानी स्टूडेंट्स के 95 फीसदी के आसपास मार्क्स हैं। छठे सब्जेक्ट को इस फॉर्म्युले में शामिल नहीं किया जाएगा। सिर्फ पांच सब्जेक्ट के आधार पर ही कैलक्युलेशन होगी।
अगर किसी स्टूडेंट को ई1 या ई2 ग्रेड मिलता है तो उसे रिजल्ट सुधारने के पांच मौके दिए जाएंगे। मसलन मार्च 2010 में हुए बोर्ड एग्जाम में अगर किसी स्टूडेंट के किसी सब्जेक्ट में ई1 या ई2 ग्रेड आते हैं तो उसे जुलाई 2010, मार्च 2011, जुलाई 2011, मार्च 2012 और जुलाई 2012 के बोर्ड एग्जाम में फिर से मौका मिलेगा ताकि वह ई ग्रेड वाले उस सब्जेक्ट को क्लियर कर सके। क्वॉलिफाइंग सटिर्फिकेट हासिल करने के लिए स्टूडेंट को सभी सब्जेक्ट (अडिशनल को छोड़कर) में डी या इससे ऊपर का ग्रेड लाना होगा। अगर किसी स्टूडेंट के पास हिंदी और इंग्लिश दोनों लैंग्वेज है तो उसे इन दोनों लैंग्वेज के अलावा मैथ्स, सोशल साइंस और साइंस सब्जेक्ट को क्लियर करना होगा(नवभारत टाइम्स,दिल्ली,25.5.2010 में भूपेंद्र की रिपोर्ट)
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