हिमाचलप्रदेश के सरकारी स्कूलों में बच्चों की पढ़ने में दिलचस्पी कम होती जा रही है। एक साल में प्रदेश के विभिन्न स्कूलों में मिडिल स्तर पर 6 से 14 वर्ष आयु के 1424 बच्चों ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी है। स्कूलों में हो रहे ड्रॉप आउट के पीछे शिक्षा विभाग लोगों को समझाने में कामयाब नहीं हुआ है। यह खुलासा राज्य आर्थिकी एवं सांख्यिकी विभाग की ओर से कराए गए एक सर्वेक्षण में हुआ है।
पढ़ाई छोड़ने के मुख्य कारणों में अभिभावकों की कम रुचि, घर का कामकाज व नौकरी की उपलब्धता न होना है। ड्रॉप आउट की दर गरीब परिवारों में ज्यादा है। यहां रोजीरोटी के इंतजाम के लिए लोग बच्चों को स्कूल नहीं भेजते। मिडिल स्तर पर स्कूल छोड़ने वाले बच्चों के आंकड़े तो महकमे के पास मौजूद हैं, लेकिन मैट्रिक और इससे आगे ड्रॉप आउट का पता नहीं है।
चंबा जिले में 319 बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं और इस जिले के भटियात में 83 और तीसा ब्लॉक में 70 बच्चों ने स्कूल छोड़ा है। कु ल्लू जिले के आनी ब्लॉक में 126 बच्चों के साथ 241 का ड्रॉप आउट हुआ है। सिरमौर जिले के पच्छाद में 46 बच्चों सहित कुल 199 बच्चे नहीं जा रहे हैं। लगभग सभी जिलों के सरकारी स्कूलों से बच्चे पढ़ाई छोड़ रहे हैं। बिलासपुर में 66 बच्चों के अलावा हमीरपुर में 46, कांगड़ा में 171, किन्नौर में 24, कुल्लू में 241, लाहौल स्पीति में 11, मंडी में 91, शिमला में 97, सिरमौर में 199, सोलन में 86 और ऊना जिले में 73 बच्चों का स्कूलों से ड्रॉप आउट हुआ है।
चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम का सहारा
विभाग स्कूलों में शिक्षा के लचर स्तर को छिपाने के लिए चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम का सहारा ले रहा है। स्कूलों से बच्चों के ड्रॉप आउट को लेकर एसएसए राज्य परियोजना अधिकारी राजेश शर्मा का कहना है कि चंबा के गुज्जर समुदाय में लड़कियों को पढ़ाने के मामले में लोग उदासीन हैं और चौपाल में लोग पढ़ाई को जरूरी नहीं मानते। उनका कहना है कि पिछड़े क्षेत्रों के गरीब लोगों में शिक्षा को लेकर जागरूकता नहीं है। प्रधान सचिव शिक्षा श्रीकांत बाल्दी का कहना है कि प्रदेश में बच्चों का ड्रॉप आउट देश के दूसरे राज्यों से सबसे कम है।
(दैनिक भास्कर,शिमला,24.5.2010)
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