तमाम मतभेदों और विवादों के बाद आखिरकार उच्च शिक्षा में सुधार के लिए सबसे अहम् कदम के रूप में प्रस्तावित राष्ट्रीय उच्च शिक्षा एवं शोध आयोग (एनसीएचईआर) के मसौदे में बदलाव करना ही पड़ गया। अब उसके गठन में राज्यों व विभिन्न शोध संस्थानों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे और फैसलों में उनकी भी चलेगी। राज्यों के सामने नेशनल रजिस्ट्री से ही कुलपतियों के चयन की बाध्यता नहीं होगी। इतना ही नहीं, इस मसले पर मंत्रालयों के बीच मची खींचतान के बाद इस पर अंतिम फैसला केंद्र सरकार पर छोड़ दिया गया है। एनसीएचईआर के गठन के लिए तैयार विधेयक के संशोधित मसौदे पर शनिवार को यहां सभी पक्षकारों के साथ हुई बैठक के बाद मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने पत्रकारों से यहां पहली बार कहा कि इस पर अंतिम फैसला केंद्र सरकार करेगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि विधेयक का यह मसौदा उनके या किसी एक मंत्रालय का नहीं, बल्कि उसके लिए गठित टास्क फोर्स का दस्तावेज है। उच्च शिक्षा से जुड़े सभी पक्षकारों ने उस पर तमाम जरूरी सुझाव दिए हैं। उन सुझावों को शामिल करके टास्क फोर्स नया मसौदा बनाएगा। उसके बाद उस पर आगामी 19 जून को केंद्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद (केब) और फिर केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी ली जाएगी। प्रस्तावित आयोग किसी एक मंत्रालय का नहीं, बल्कि केंद्र सरकार का होगा। गौरतलब है कि इस आयोग के गठन की बात शुरू होने के बाद से ही उच्च शिक्षा के मेडिकल कौंसिल आफ इंडिया (एमसीआई), डेंटल कौंसिल आफ इंडिया, बार कौंसिल आफ इंडिया समेत उच्च शिक्षा के दूसरे नियामक निकायों को उसके दायरे में लाने को लेकर विरोध शुरू हो गया था। दरअसल मानव संसाधन विकास मंत्रालय पूर्व में उसे ऐसा पेश कर रहा था, जैसे एनसीएचईआर सिर्फ उसका अपना निकाय हो और उच्च शिक्षा के बाकी नियामक निकायों को उसके अधीन आना होगा। इस बीच, सूत्रों ने बताया कि विधेयक के संशोधित मसौदे में अब एनसीएचईआर के भीतर ही एक जनरल कौंसिल (आम सभा) का गठन किया जाएगा। उसमें सभी राज्यों व सभी शोध संस्थानों के प्रतिनिधि रखे जाएंगे। आम सभा को अपने दो तिहाई बहुमत से एनसीएचईआर के किसी फैसले को बदलने का अधिकार होगा(दैनिक जागरण,30.5.2010)
अच्छी जानकारी!
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