यदि केंद्र सरकार ने उत्तरप्रदेश सरकार की मांग मान ली तो भविष्य में बीटीसी न होने पर भी स्नातक और परास्नातक उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक बनने का मौका मिल सकता है। राज्य में शिक्षा के अधिकार अधिनियम को अमली जामा पहनाने के लिए जितनी बड़ी संख्या में शिक्षकों की जरूरत है, उसकी तुलना में बीटीसी धारक उपलब्ध नहीं हो पा रहे। ऐसे में राज्य सरकार ने केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से अनुरोध किया है कि स्नातक और परास्नातक उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को भी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक नियुक्त करने की अनुमति दी जाये। शिक्षा के अधिकार अधिनियम के सिलसिले में 28 मई को नई दिल्ली में मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के साथ हुई बैठक में यह मांग की गई। राज्य सरकार की ओर से मांग कहा गया कि शिक्षा अधिकार अधिनियम के क्रियान्वयन के लिए राज्य में तीन वर्षों के दौरान 3.25 लाख प्रशिक्षित शिक्षकों की जरूरत होगी। राज्य में परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापकों की नियुक्ति के लिए शैक्षिक अर्हता बीटीसी है। प्रदेश में बीटीसी प्रशिक्षित अभ्यर्थियों की काफी कमी है। इसलिए शिक्षा के अधिकार अधिनियम के मुताबिक टीचरों की तैनाती के लिए राज्य को स्नातक और परास्नातक उत्तीर्ण अभ्यर्थियों को भी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक नियुक्त करने की अनुमति दी जाए। यह अनुमति देने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय से इस आशय की अधिसूचना जारी करने की अपेक्षा की गई। सूत्रों के मुताबिक राज्य की इस मांग पर केंद्रीय मंत्रालय ने सकारात्मक रुख दिखाया है। ऐसे शिक्षकों को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) द्वारा दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से प्रशिक्षण दिये जाने की भी मांग की गई। प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में तैनात अप्रशिक्षित शिक्षकों (पैरा टीचर सहित) को प्रशिक्षण दिलाने के लिए इग्नू और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के सहयोग की अपेक्षा भी जतायी गई। अप्रशिक्षित शिक्षकों को पहली अगस्त से दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से ट्रेनिंग दिलाने की मांग भी की गई है(दैनिक जागरण,31.5.2010 में लखनऊ से राजीव दीक्षित की रिपोर्ट)।
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