महाराष्ट्र में मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना अगले सेशन से खर्चीला साबित होने वाला है। स्टूडेंट्स के अभिभावकों की जेबों को और हल्का करने वाला फैसला लेते हुए फीस निर्धारण पैनल ने आगामी शैक्षणिक वर्ष के लिए इंजीनियरिंग और मेडिकल कोर्सों की फीस को बढ़ाने की मंजूरी दे दी है।
जानकारी के मुताबिक इंजीनियरिंग कोर्स की अंतरिम फीस को 7 फीसदी से बढ़ाकर 10 फीसदी तथा मेडिकल कोर्स की अंतरिम फीस को 5 फीसदी से बढ़ाकर 7 फीसदी कर दिया गया है।
पैनल के कार्यालय सचिव पी ई गायकवाड़ ने बताया कि यह बढ़ोतरी उन कॉलेजों तक ही सीमित रहेगी, जिन्होंने संशोधित अंतरिम फीस के लिए आवेदन किया है। आवेदन नहीं करने वाले कॉलेज पैनल द्वारा पिछली बार मंजूर की गई फीस ही वसूल सकेंगे।
अंतरिम फीस का अर्थ उस शुल्क से होता है, जिसे कॉलेज उस वक्त तक वसूल कर सकता है, जब तक कि कॉलेज द्वारा किसी शैक्षणिक सत्र के लिए दिया गया फीस समीक्षा के प्रस्ताव का निपटारा पैनल नहीं कर देता।
हर साल कॉलेजों को अपनी फीस पैनल से स्वीकृत करवानी होती है और यह प्रक्रिया दिसंबर से अप्रैल के बीच होती है। अंतिम निपटारा दिसंबर के अंत में या नए वर्ष की पहली तिमाही में हो जाता है। यदि फाइनल फीस, अंतरिम फीस से कम होती है तो कॉलेज को स्टूडेंट्स से वसूली गई अतिरिक्त राशि वापस करनी होती है। यदि फाइनल फीस ज्यादा होती है तो कॉलेज दोनों फीस के अंतर को स्टूडेंट्स से वसूल कर सकते हैं।
यह वृद्धि उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री राजेश टोपे, राज्य के प्रमुख सरकारी अधिकारियों तथा निजी पेशेवर कॉलेजों के प्रतिनिधियों के बीच हुई बैठक के बाद हुई है। बैठक में कॉलेजों ने फीस में वृद्धि करने की मांग की थी ताकि वे शिक्षा की बढ़ती लागत को समाहित कर सके। लागत बढ़ने के पीछे कॉलेजों ने प्रमुख कारण यह बताया था कि उन्हें छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को जल्द लागू करना है।
पैनल के प्रमुख जज (रिटायर्ड) पी एस रत्नाकर ने कहा कि इस बार हमने कॉलेजों को कहा है कि वे अंतरिम शुल्क के लिए अलग फंड बनाए ताकि फाइनल फीस अंतरिम शुल्क से अधिक होने पर वे स्टूडेंट्स को अतिरिक्त राशि वापस लौटा सके। (नवभारत टाइम्स,मुंबई,15.5.2010)
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