अवध की शान-उर्दू जुबान पर आयोजित गोष्ठी में अरबी-फारसी विश्र्वविद्यालय के कुलपति अनीस अंसारी ने कहा कि उर्दू और अवध का रिश्ता सदियों पुराना है। इस जुबान ने लोगों को एक धागे में पिरोने का काम किया है। श्री अंसारी राय उमानाथ बली के जयशंकर प्रसाद सभागार में रहबर चैरिटेबिल एंड वेलफेयर सोसाइटी द्वारा आयोजित अवध की शान उर्दू जुबान विषयक गोष्ठी में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि उर्दू हमारी सांझा संस्कृति को बढ़ाने में हमेशा आगे रही। अब उर्दू को आगे बढ़ाना हमारी जिम्मेदारी है। इरफान अहमद सचिव आल इंडिया अल्पसंख्यक फोरम फार डेमोक्रेसी ने कहा कि उर्दू कई जगहों का सफर तय करती हुई अवध पहुंची और यहां की शान बनी। अवध के नवाबों ने इसको काफी बढ़ावा दिया। नयी पीढ़ी को उर्दू से जोड़ने के लिए जरूरी है कि नयी तकनीकी का सहारा लिया जाए। अध्यक्ष माइनारिटी मानीटरिंग एजूकेशन कमेटी डा. साबिरा हबीब ने कहा कि इस जुबान की मिठास हमारे दिलों और दिमाग को ताजा कर देती है।
अवधी संस्कृति का सबसे अच्छा संग्रह आकाशवाणी के पास मौजूद है। चाहे वो पारम्परिक बंदिशें हो रीति रिवाजों से जुड़ी हुई बुर्जुगों की बातें। लखनऊ आकाशवाणी की स्थापना 1938 में हुई। अवधी भाषा को केन्द्र में रखकर ज्यादातर कार्यक्रम ग्रामीण अंचलों के लिए बनाये गए। आकाशवाणी ने अवधी के ठेठ अंदाज में ही कई कार्यक्रमों को बनाकर न सिर्फ गांव के बल्कि शहर के निवासियों को भी दीवाना बना दिया। आकाशवाणी की बताशा बुआ, बहरे बाबा, भानमती का पिटारा, घर आंगन, जगराना लौटीं, किसानों के लिए, लोकायतन ऐसे कार्यक्रम हैं जिनमें अवधी मिट्टी की सोंधी खुशबू साफ झलकती है। आकाशवाणी पर सुबह सात बजकर पांच मिनट पर आने वाली रामचरित मानस की धुन आज तक लोंगों के जहन में रची बसी है। आकाशवाणी ने विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से खेती से संबधित कटाई गीत, बुआई गीत, खेत खलिहान में फसलों के मड़ाई के समय गाये जाने वाले गीत, चक्की पिसाई के समय गाये जाने वाले गीतों को संरक्षित कर रखा है। संस्कार गीतों के अंतर्गत जन्म से लेकर मृत्यु तक होने वाले सभी संस्कारों जैसे सोहर, मुण्डन संस्कार, जनेऊ, द्वारचार संस्कार, कन्यादान, विदाई, गीतों समेत कई संस्कारों के अवसर पर अवसरों पर गाये जाने वालीं दुर्लभ बंदिशे मौजूद हैं जो अवधी क्षेत्रों से लगभग खत्म सी हो गई हैं। अवध की खास विधा है नकटा, जिसमें होने वाली छेड़छाड़, टिप्पणी, मजाक के तरीकों में हास्य भी है साथ ही युवतियों के लिए शिक्षा भी। त्यौहारों की बात करें तो अवध की कजरी, ठुमरी, धमार होली, फाग, चैती के अलावा अवध का बारहमासा, चौमासा का भी उम्दा संग्रह है। केन्द्र निदेशक एआर बनर्जी बताते हैं कि अवधी के संरक्षण के लिए आकाशवाणी हमेशा से प्रयत्न शील रहा है। आज भी यहां से अवधी पर कई कार्यक्रमों का प्रसारण हो रहा है। यह प्रयास आगे भी जारी रहेगा, बशर्ते सभी का साथ मिले(दैनिक जागरण,लखनऊ,29.5.2010)।
सुन्दर प्रयास है अवधी के कार्यक्रमों के प्रसारण का।
जवाब देंहटाएंक्या इन कार्यक्रमों को सुनने के लिए mp3 डाउनलोड किया जा सकता है?
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