बारहवीं की परीक्षा के नतीजों की घोषणा होने में मात्र चंद दिनों का ही इंतजार रह गया है। प्रोफेशनल कोर्सेज में एडमिशन के लिए चयन परीक्षाओं का दौर देश भर में जारी है। युवाओं के अलावा अभिभावकों में भी फिलहाल अनिश्चितता की स्थिति सहज ही देखी जा सकती है। असमंजस कोर्सेज के चयन से लेकर संस्थानों के विकल्प तक में झलकता है। क्या विषय या कोर्स के महत्व और रोजगार बाजार में उनकी वस्तुस्थिति को आधार बनाकर अंतिम निर्णय करना चाहिए अथवा संस्थान के नाम की ब्रांड इमेंज को देखना उचित होगा। कोर्स के खर्चे को नजअंदाज करना कितना उचित होगा इस प्रकार के फैसले में, इस प्रकार के मामलों में तमाम ऐसी उलझनें आती हैं जिनका समाधान सीधा सपाट नहीं होता है। यह स्थिति उस वक्त और विकट हो जाती है जबकि सही मार्गदर्शन का अभाव हो।
इस लेख में हम बात करेंगे कुछ ऐसे ही कारकों पर जिनकी कसौटियों के बूत उपयुक्त निर्णय करने में आसानी हो। स्कूली शिक्षा की समाप्ति के बाद किस क्षेत्र को बतौर कॅरिअर चुनकर भविष्य की दिशा तय करें यह प्रश्न खासतौर पर जिंदगी के इस मोड़ पर काफी अहमियत रखता है। आइए चर्चा करते हैं इससे जुड़ें विभिन्न पहलुओं की -
कोर्सः- हमेशा ऐसे कोर्सेज के पीछे नहीं दौड़ना चाहिए जिनके प्रोफेशनल की वर्तमान में मांग हो। कोर्स करने से पहले हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि आगामी तीन वर्षों के बाद रोजगार बाजार में इस प्रकार की नौकरियां घटेंगी या बढ़ेंगी। ऐसी अध्ययन रिपोर्ट नामी कंसलटेंसी एजेंसियों द्वारा समय-समय पर जारी की जाती है।एक वक्त कंप्यूटर ट्रेनिंग का क्रेज था और लोग बिना सोचे समझें इस प्रकार के कोर्सेज कर रहे थे। नतीजन मांग की तुलना में आपूर्ति इतनी अधिक बढ़ गई कि कंप्यूटर प्रोफेशनलों को बड़ी संख्या में बेरोजगारी या कम वेतन पर नौकरी करनी पड़ गई।
संस्थानः- संस्थान की प्रतिष्ठा और इनके द्वारा प्रदत्त डिग्रियों की कभी-कभी इतनी अधिक ब्रांड वैल्यू बन जाती है कि नौकरी बाजार में हाथोहाथ इन्हें लिया जाता है। उदाहरण के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी से जुड़े सेंट स्टीफंस, हिंदू, श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स इत्यादि का उल्लेख किया जा सकता है। इनमें पारंपरिक कोर्स करने वाले युवाओं को भी अमूमन रोजगार पाने के लिए ज्यादा भटकने की जरूरत नहीं पड़ती है। ज्यादातर कैंपस प्लेसमेंट में ही नौकरियां पा जाते हैं। ध्यान रखने वाली बात सिर्फ इतनी है कि किसी ऐसे कोर्स का चयन न कर बैठें जिनमें रोजगार की उपलब्धता निरंतर कम हा रही हो।
एप्टीट्यूडः- कोर्स का चयन करते समय हमेशा अपनी काबिलियत, क्षमताओं और रुचि का अवश्य खयाल रखना चाहिए। अभिभावकों, सहपाठियों या टीचर्स के कहने पर ही अपनी काबिलियत को नजरअंदाज करते हुए इस प्रकार का फैसला करना किसी भी कीमत पर उचित नहीं कहा जा सकता है। हर संभव प्रयास यही करना चाहिए कि यह निर्णय आप स्वयं इमानदारी से करें। और के कहने या दबाव में आकर प्रोफेशनल कोर्स/कोर्स का चुनाव करना अमूमन बाद में गलत ही साबित होता है।
आर्थिक संसाधनः- कई ऐसे ग्लैमर्स प्रोफेशन हैं जिनके प्रति युवा अकसर के्रजी होते हैं। इनमें पायलट, फैशन डिजाइनिग के अलावा विदेश में पढ़ाई आदि का जिक्र किया जा सकता है। इसमें कोई शक नहीं इस प्रकार की जॉब्स में वेतन और अन्य परिलब्धिया काफी ज्यादा होती हैं। लेकिन इन पाठ्यक्रमों की फीस और ट्रेनिंग पर होने वाला खर्च बहुत ज्यादा होता है जो आमतौर से एक मध्यवर्गीय परिवार के बूते के बाहर की बात होती है। ऐसे में इतने मंहगे कोर्सेज के बारे में सोचना कतई व्यावहारिक नहीं कहा जा सकता है। अगर समस्त कारकों का सार निकाला जाए तो बस इतना ही कहा जा सकता है कि हमेश अपनी काबिलियत क्षमता और दिलचस्पियों के आधार पर स्वयं इस प्रकार का फैसला ईमानदारी से करना चाहिए और सहपाठियो से विमर्श अवश्य करें। अंतिम बात यह कि चाहे जो कोर्स चयन करें, पूरी मेहनत और निष्ठा के साथ पढ़ाई करें। यह न भूलें कि मेहनत और ज्ञान कभी व्यर्थ नहीं होते।
(अशोक सिंह,नई दुनिया,दिल्ली,17.5.2010)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी के बगैर भी इस ब्लॉग पर सृजन जारी रहेगा। फिर भी,सुझाव और आलोचनाएं आमंत्रित हैं।