अब इंजीनियरिंग व मेडिकल में दाखिले के लिए छात्रों को अलग-अलग नहीं भटकना होगा। आल इंडिया इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा (एआईईईई) और अखिल भारतीय प्रि-मेडिकल टेस्ट (एआईपीएमटी) के लिए अब एक ही प्रवेश परीक्षा होगी। इतना ही नहीं, सरकार केंद्रीय विश्वविद्यालयों में भी दाखिले के लिए एक ही प्रवेश परीक्षा कराने का मन बना रही है। राज्यों के शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन और राष्ट्रीय शिक्षक कल्याण प्रतिष्ठान की बैठक के बाद मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने पत्रकारों को भविष्य की इन तैयारियों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि केंद्र की मंशा बच्चों पर परीक्षा के दबाव को कम से कम करना है। लिहाजा सरकार ने इंजीनियरिंग व मेडिकल में दाखिले के लिए एआईईईई और एआईपीएमटी की एक ही परीक्षा कराने का फैसला किया है। सिब्बल ने कहा कि सरकार इस साल इस पर काम करेगी, जबकि अगले शैक्षिक सत्र से इस पर अमल का इरादा है। उन्होंने बताया कि उच्च शिक्षा के व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में दाखिले में कक्षा-12 में मिले अंकों को ज्यादा तवज्जो दी जाएगी। ताकि बच्चे सिर्फ कोचिंग की तैयारी के बल पर उन पाठ्यक्रमों में दाखिला न ले सकें। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा में कम से कम परीक्षा के मद्देनजर इंटरमीडिएट के बाद विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए भी एक ही प्रवेश परीक्षा होनी चाहिए। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि सरकार इसे केंद्रीय विश्वविद्यालयों के मामले में तो लागू ही कर सकती है। हालांकि उनके मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि यह अभी महज विचार के स्तर पर है। इससे पहले सम्मेलन में उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों ने केंद्र सरकार के उस प्रस्ताव का विरोध किया, जिसमें शिक्षकों के सेवानिवृत्त की उम्र को 62 से बढ़ाकर 65 साल करने का प्रस्ताव है। सिब्बल ने भी माना कि इस पर सभी राज्य सहमत नहीं हैं। सिब्बल ने कहा कि सरकार ने इस साल जून से अगले एक साल के लिए फिर से एजेंडा बनाया है, उसके तहत सभी 60 लाख शिक्षकों के लिए आवासीय व स्वास्थ्य बीमा की योजना शुरू की जाएगी। राज्यों ने भी इस पर सहमत जतायी है। हालांकि सम्मेलन में ज्यादातर राज्यों ने बीमा के प्रीमियम को लेकर आने वाले खर्च पर हाथ खड़े कर दिए। कई राज्यों ने इस पर अपने यहां के वित्त मंत्रियों व मुख्यमंत्रियों से मशविरे के बाद ही अपना फैसला बताने की बात कही है। मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि इसके अलावा स्कूली शिक्षा बोर्डों के कामकाज के मूल्यांकन के मद्देनजर एक राष्ट्रीय आकलन एवं मूल्याकंन संस्थान की स्थापना की जाएगी। साथ ही राज्यों के पाठ्यक्रमों को तय करने के अधिकार में दखल दिए बिना ही विज्ञान एवं गणित का एक समान पाठ्यक्रम (कैरीकुलम) तैयार किया जाएगा। इसी तरह समग्र एवं सतत मूल्याकंन को बढ़ाकर दसवीं कक्षा तक किया जाएगा। जबकि एक राष्ट्रीय व्यावसायिक योग्यता का फ्रेमवर्क बनेगा। ऐसा फ्रेमवर्क हर देश में है, जबकि अपने यहां नहीं है। इतना ही नहीं, नैतिकता एवं मूल्यों पर आधारित शिक्षा के मद्देनजर एक अलग कैरीकुलम फ्रेमवर्क तैयार किया जाएगा। जबकि इंटरमीडिएट तक की स्कूलों में शारीरिक शिक्षा को अनिवार्य बनाया जाएगा। इसके लिए एक अलग नियमित क्लास होगी। यह पूछे जाने पर कि यह सब कब तक होगा? उन्होंने कहा कि सालभर में इस पर काम होगा, जैसे-जैसे स्थितियां बनेगी, वैसे-वैसे उस पर अमल होगा(Dainik Jagran,19.6.2010)।
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