देशभर में शिक्षक संघ इस बात को समझ रहे हैं कि वे शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने के लिए कोई योगदान दे सकते हैं या फिर स्वयं पर ही किसी तरह का सुधार कार्यक्रम लागू कर सकते हैं। ताजातरीन उदाहरण वॉशिंगटन का है, जहां शिक्षक संघ ने समझबूझ का परिचय देते हुए एक अनुबंध को मंजूरी दी है। इसके बाद अब शिक्षकों को उनके प्रदर्शन के आधार पर भुगतान करने, पदोन्नत किए जाने या दंड देने के लिए बेहतर परिप्रेक्ष्य मुहैया हो सकेगा।
नए अनुबंध के चलते आगामी पांच सालों में बोर्ड के शिक्षकों की तनख्वाह में २क् फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकेगी। हालांकि यह चयन की स्वतंत्रता शिक्षकों के ही हाथ में होगी कि वे मूल्यांकन की परंपरागत पद्धति अपनाते हुए धीमे विकास करना चाहते हैं या नई पद्धति के मार्फत तेजी से आगे बढ़ना चाहते हैं। वॉशिंगटन में शिक्षकों के मूल्यांकन की प्रणाली वैसे भी काफी कठोर है।
अभी तक मूल्यांकन के मापदंडों का दायरा ज्यादा बड़ा नहीं था, लेकिन नए अनुबंध के तहत शिक्षकों का मूल्यांकन विभिन्न स्तरों पर किया जा सकेगा। अनुबंध प्रणाली पूरी तरह गुणवत्ता के मानकों पर आधारित होगी, इसलिए जो शिक्षक अपना काम प्रभावी रूप से नहीं कर पाएंगे, उनकी छुट्टी तय होगी। बोनस पद्धति होने से बेहतर गुणवत्ता के शिक्षक भी वॉशिंगटन की ओर आकर्षित हो सकेंगे। नए अनुबंध ने एक ऐसी मूल्य प्रणाली पर अपना ध्यान केंद्रित किया है, जिसकी अब तक उपेक्षा ही की जाती रही थी(‘द न्यूयॉर्क टाइम्स/Dainik Bhaskar,15.6.2010)।
नए अनुबंध के चलते आगामी पांच सालों में बोर्ड के शिक्षकों की तनख्वाह में २क् फीसदी तक की बढ़ोतरी हो सकेगी। हालांकि यह चयन की स्वतंत्रता शिक्षकों के ही हाथ में होगी कि वे मूल्यांकन की परंपरागत पद्धति अपनाते हुए धीमे विकास करना चाहते हैं या नई पद्धति के मार्फत तेजी से आगे बढ़ना चाहते हैं। वॉशिंगटन में शिक्षकों के मूल्यांकन की प्रणाली वैसे भी काफी कठोर है।
अभी तक मूल्यांकन के मापदंडों का दायरा ज्यादा बड़ा नहीं था, लेकिन नए अनुबंध के तहत शिक्षकों का मूल्यांकन विभिन्न स्तरों पर किया जा सकेगा। अनुबंध प्रणाली पूरी तरह गुणवत्ता के मानकों पर आधारित होगी, इसलिए जो शिक्षक अपना काम प्रभावी रूप से नहीं कर पाएंगे, उनकी छुट्टी तय होगी। बोनस पद्धति होने से बेहतर गुणवत्ता के शिक्षक भी वॉशिंगटन की ओर आकर्षित हो सकेंगे। नए अनुबंध ने एक ऐसी मूल्य प्रणाली पर अपना ध्यान केंद्रित किया है, जिसकी अब तक उपेक्षा ही की जाती रही थी(‘द न्यूयॉर्क टाइम्स/Dainik Bhaskar,15.6.2010)।
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