छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल के साथ गुरुवार को नईदिल्ली में हुई बैठक में बताया कि नक्सली हिंसा की वजह से नक्सल प्रभावित जिले में बच्चों की पढ़ाई बुरी तरह प्रभावित हो रही है।
उन्होंने नक्सल प्रभावित जिले बस्तर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, कांकेर और राजनांदगांव में शिक्षा के प्रसार के लिए केंद्र से विशेष पैकेज की मांग की। श्री सिब्बल ने केंद्र सरकार के अफसरों को इस दिशा में तत्काल आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश दिए।
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री ने छत्तीसगढ़ में शिक्षा के अधिकार कानून के क्रियान्वयन के लिए राज्य में की गई तैयारियों की जानकारी ली। श्री अग्रवाल ने उन्हें बताया कि शिक्षा के प्रसार के लिए राज्य में किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
श्री अग्रवाल ने केंद्रीय मंत्री को लिखे पत्र में बताया कि नक्सल प्रभावित जिलों में नक्सली हिंसा की वजह से वहां की शिक्षा व्यवस्था गंभीर रूप से बाधित हुई है। बड़ी संख्या में शाला भवन ध्वस्त कर दिए गए हैं। प्रभावित क्षेत्र के बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई दूसरी जगह नहीं है।
शिक्षक भी डर के मारे स्कूल जाने से कतराते हैं। नक्सली गतिविधियों के कारण नए स्वीकृत शाला भवनों के निर्माण में भी कइिनाई हो रही है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को विशेष क्षेत्र मानकर शिक्षा के प्रसार के लिए नीतिगत निर्णय लिए जाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि प्रभावित क्षेत्रों में विकासखंड मुख्यालयों, पुलिस थाना मुख्यालयों और मुख्य सड़कों से लगे गांवों में 500-500 सीटर विशेष स्कूल संचालित किए जाएं ताकि आसपास के गांवों के बच्चे इन स्कूलों में अध्ययन कर सकें।
ऐसे स्कूलों में बच्चों के लिए सालभर आवासीय सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। स्कूल संचालन और भवन निर्माण के लिए स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप कार्ययोजना बनाई जाए।
नक्सल प्रभावित जिलों के लिए शिक्षा के प्रसार की हर गतिविधि की अलग से इकाई लागत निर्धारित की जाए। शिक्षकों को वेतन के अलावा अलग से प्रोत्साहन राशि दी जाए और उनको विशेष बीमा सुरक्षा के दायरे में भी लाया जाए।
बैठक में बताया गया कि छत्तीसगढ़ में स्कूली बच्चों की संख्या करीब 56 लाख है। सभी विद्यार्थियों को शिक्षा देने के लिए बनाए गए सेटअप के अनुसार प्रत्येक 40 बच्चों पर एक शिक्षक है। प्रत्येक प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक विद्यालय के लिए प्रधान अध्यापक का पद स्वीकृत है।
श्री सिब्बल ने कहा कि शिक्षा के प्रसार के लिए राज्य सरकार की ओर से पर्याप्त उपाय किए जा रहे हैं। शैक्षणिक मापदंडों के मामले में छत्तीसगढ़ की स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर है। श्री अग्रवाल ने बताया कि वर्तमान में 2.47 प्रतिशत की दर से शिक्षक सेवानिवृत्त हो रहे हैं। वर्तमान में राज्य में शिक्षकों के 30 हजार पद रिक्त हैं।
इन पदों को भरने की प्रक्रिया चल रही है।28 हजार शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाना है। श्री अग्रवाल ने बताया कि निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के तहत राज्य में बच्चों की परीक्षाएं नहीं ली जानी हैं। उनके स्थान पर सतत मूल्यांकन किया जाना है। नई परिस्थितियों में बच्चों के शैक्षिक स्तर पर प्रभाव पड़ने की संभावना प्रबल दिखाई पड़ती है।
अत: केंद्र और राज्य स्तर पर एक ऐसी प्रणाली विकसित की जाए जिससे राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों की शैक्षणिक गुणवत्ता अप्रभावित रहे। इसके लिए शिक्षकों और प्रशासकों को प्रशिक्षित किए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए अतिरिक्त राशि की जरूरत पड़ेगी(Dainik Bhaskar,Raipur,11.6.2010)।
उन्होंने नक्सल प्रभावित जिले बस्तर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर, कांकेर और राजनांदगांव में शिक्षा के प्रसार के लिए केंद्र से विशेष पैकेज की मांग की। श्री सिब्बल ने केंद्र सरकार के अफसरों को इस दिशा में तत्काल आवश्यक कार्रवाई करने के निर्देश दिए।
केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री ने छत्तीसगढ़ में शिक्षा के अधिकार कानून के क्रियान्वयन के लिए राज्य में की गई तैयारियों की जानकारी ली। श्री अग्रवाल ने उन्हें बताया कि शिक्षा के प्रसार के लिए राज्य में किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
श्री अग्रवाल ने केंद्रीय मंत्री को लिखे पत्र में बताया कि नक्सल प्रभावित जिलों में नक्सली हिंसा की वजह से वहां की शिक्षा व्यवस्था गंभीर रूप से बाधित हुई है। बड़ी संख्या में शाला भवन ध्वस्त कर दिए गए हैं। प्रभावित क्षेत्र के बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई दूसरी जगह नहीं है।
शिक्षक भी डर के मारे स्कूल जाने से कतराते हैं। नक्सली गतिविधियों के कारण नए स्वीकृत शाला भवनों के निर्माण में भी कइिनाई हो रही है। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को विशेष क्षेत्र मानकर शिक्षा के प्रसार के लिए नीतिगत निर्णय लिए जाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि प्रभावित क्षेत्रों में विकासखंड मुख्यालयों, पुलिस थाना मुख्यालयों और मुख्य सड़कों से लगे गांवों में 500-500 सीटर विशेष स्कूल संचालित किए जाएं ताकि आसपास के गांवों के बच्चे इन स्कूलों में अध्ययन कर सकें।
ऐसे स्कूलों में बच्चों के लिए सालभर आवासीय सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। स्कूल संचालन और भवन निर्माण के लिए स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप कार्ययोजना बनाई जाए।
नक्सल प्रभावित जिलों के लिए शिक्षा के प्रसार की हर गतिविधि की अलग से इकाई लागत निर्धारित की जाए। शिक्षकों को वेतन के अलावा अलग से प्रोत्साहन राशि दी जाए और उनको विशेष बीमा सुरक्षा के दायरे में भी लाया जाए।
बैठक में बताया गया कि छत्तीसगढ़ में स्कूली बच्चों की संख्या करीब 56 लाख है। सभी विद्यार्थियों को शिक्षा देने के लिए बनाए गए सेटअप के अनुसार प्रत्येक 40 बच्चों पर एक शिक्षक है। प्रत्येक प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक विद्यालय के लिए प्रधान अध्यापक का पद स्वीकृत है।
श्री सिब्बल ने कहा कि शिक्षा के प्रसार के लिए राज्य सरकार की ओर से पर्याप्त उपाय किए जा रहे हैं। शैक्षणिक मापदंडों के मामले में छत्तीसगढ़ की स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर है। श्री अग्रवाल ने बताया कि वर्तमान में 2.47 प्रतिशत की दर से शिक्षक सेवानिवृत्त हो रहे हैं। वर्तमान में राज्य में शिक्षकों के 30 हजार पद रिक्त हैं।
इन पदों को भरने की प्रक्रिया चल रही है।28 हजार शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाना है। श्री अग्रवाल ने बताया कि निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार के तहत राज्य में बच्चों की परीक्षाएं नहीं ली जानी हैं। उनके स्थान पर सतत मूल्यांकन किया जाना है। नई परिस्थितियों में बच्चों के शैक्षिक स्तर पर प्रभाव पड़ने की संभावना प्रबल दिखाई पड़ती है।
अत: केंद्र और राज्य स्तर पर एक ऐसी प्रणाली विकसित की जाए जिससे राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर बच्चों की शैक्षणिक गुणवत्ता अप्रभावित रहे। इसके लिए शिक्षकों और प्रशासकों को प्रशिक्षित किए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए अतिरिक्त राशि की जरूरत पड़ेगी(Dainik Bhaskar,Raipur,11.6.2010)।
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