दोष स्कूल का दें कि सरकार का, चाहे किसी का हो। पर, फिलहाल सूबे के 473 स्थापना अनुमति प्राप्त उच्च विद्यालयों के एक लाख से भी ज्यादा विद्यार्थियों के भविष्य पर सवाल खड़ा हो गया है। उनके मैट्रिक परीक्षा में शामिल होने पर रोक लग गई है। हालांकि, स्कूलों को दो वर्ष का एक्सटेंशन देने की बात कही जा रही, पर अभी तक यह यह दिया नहीं गया है। दरअसल,ये विद्यालय नियमावली की शर्तो में उलझ गए हैं। पूर्व शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की के समय में बनाई गई प्रस्वीकृति नियमावली 2008 के तहत इन स्कूलों को 11 जुलाई 2010 तक नियमावली की शर्त पूरी करने को कहा गया था। विद्यालयों ने शर्त पूरी नहीं की। दो साल गुजर गए, काम जैसे-तैसे चलता रहा। अब मौजूदा छात्र क्या करें? नियमावली में कहा गया है कि शर्त पूरी नहीं करने पर इन विद्यालयों के विद्यार्थी मैट्रिक परीक्षा में शामिल नहीं हो सकेंगे। स्कूलों को मिलने वाला अनुदान भी रोक दिया जाएगा। अगले माह में मैट्रिक का पंजीयन होना है। जाहिर तौर पर नियमावली के हिसाब से इन स्कूलों के छात्रों का पंजीयन नही हो सकेगा। इन स्कूलों में से अधिकांश को 1972 से स्थापना अनुमति प्राप्त है। राज्य में शिक्षा माफिया के बढ़ते दबदबा व प्राइवेट विद्यार्थियों के नाम पर होने वाले खेल को रोकने के लिए झारखंड सरकार ने वर्ष 2003 से इन स्कूलों को अपने विद्यार्थियों को मैट्रिक परीक्षा में शामिल कराने की अनुमति दी थी। जब बंधु तिर्की के समय में नियमावली बनी तो स्कूलों ने इसका विरोध शुरू कर दिया था। कहना था कि यह स्कूल बंद करने की साजिश है(सुनील कुमार झा,दैनिक जागरण,रांची,23.7.2010)।
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