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23 जुलाई 2010

मुंडारी भाषा में नाटक की विधा लाना स्वागत योग्य : केसरी

लोक संस्कृति के उन्नायक विशु लकड़ा के मुंडारी नाटक संग्रह लेल रिक ईनुं का लोकार्पण गुरुवार को रांची के जनजातीय भाषा विभाग में डा. बीपी केशरी ने किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि मुंडारी में नाटक की परंपरा नहीं रही है, लेकिन लेखक ने अच्छा प्रयास किया है। नाट्य लेखन में विषयों की कमी नहीं है। झारखंड में गरीबी, पलायन, भुखमरी, शोषण, विस्थापन जैसे सैकड़ों विषय हैं। इन्हें केंद्र में रखकर भी नाटक लिखे जाने चाहिए। अध्यक्षता करते हुए डा. गिरिधारी राम गौंझू ने कहा कि मुंडारी का यह पहला नाटक है। मुंडा समाज में नाटक नहीं, नृत्य-गीत की परंपरा रही है। विशु जी ने जोखिम लेते हुए नाटक लिखा है। चूंकि यह पहला नाटक है, इसलिए इसमें शास्त्रीय विधान अनुपस्थित है। आशा की जानी चाहिए कि आगे वह इसका निर्वाह करेंगे। नाटक की समीक्षा करते हुए बताया यह वार्तालाप शैली में है और भाव शून्य है(दैनिक जागरण,रांची,23.7.2010)।

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