झारखंड लोक सेवा आयोग की तृतीय सिविल सेवा परीक्षा में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषाओं (ट्राइबल एंड रीजनल लैंग्वेज, टीआरएल)का जलवा रहा। सोमवार को जारी परीक्षा परिणाम में इस बार बड़ी संख्या में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा से मुख्य परीक्षा में शामिल होने वाले छात्र चयनित हुए। इससे रांची विवि के जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा विभाग में हर्ष का माहौल है। विभाग के शिक्षक डा. हरि उरांव कहते हैं कि जनजातीय व क्षेत्रीय भाषाओं में काफी संभावना है। राज्य की बड़ी आबादी की मातृभाषा होने के कारण छात्र इन विषयों के साहित्य को अच्छी तरह समझते हैं और सरलता से अभिव्यक्त कर पाते हैं। उन्होंने कहा कि यही कारण है कि जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा के छात्र जेपीएससी की विभिन्न परीक्षाओं व नेट में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। वहीं झारखंडी भाषा संस्थान के डा. सुधीर कुमार राय कहते हैं कि टीआरएल के कारण ही जेपीएससी की परीक्षाओं में अधिकतर गरीब व बेहद सामान्य परिवार के छात्र-छात्राएं सफल हो रही हैं। उन्होंने कहा कि इसमें रांची विवि के साथ ही कई संस्थानों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। सफलता से बदली छात्रों की राय जेपीएससी द्वारा आयोजित प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षक परीक्षा के साथ ही सिविल सेवा में टीआरएल के छात्रों की अच्छी सफलता से प्रेरित हो बड़ी संख्या में छात्र इन भाषाओं की ओर आकृष्ट हुए। गैर जनजातीय पृष्ठभूमि के छात्रों ने बड़ी संख्या में मुख्य परीक्षा के लिए इस भाषा का चयन किया। टीआरएल की सफलता दर देख अन्य भाषा के छात्र स्केलिंग व्यवस्था अपनाने की मांग कर रहे हैं। 40 प्रतिशत छात्र टीआरएल के तृतीय सिविल सेवा में सफल छात्रों में करीब चालीस प्रतिशत छात्रों ने मुख्य परीक्षा में टीआरएल लिए। वैसे तो इस संदर्भ में आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता, फिर भी टीआरएल से सफल होने वाले पचास छात्रों की जानकारी मिली है। इसमें झारखंडी भाषा संस्थान के ही 29 छात्र हैं। भेदभाव का भी आरोप वहीं कई छात्र आरोप लगा रहे हैं कि टीआरएल से परीक्षा देने वाले छात्रों को काफी ज्यादा अंक दिए गए हैं। उनका कहना है कि इस भाषा से जुड़े शिक्षक काफी कम हैं, वही प्रश्नपत्र तैयार करते हैं और वही शिक्षक मूल्यांकन में भी शामिल होते हैं। कई शिक्षक तो कोचिंग भी कराते हैं, ऐसे में उनसे जुड़े छात्रों को लाभ होने की संभावना बनी रहती है। इस आशंका को लेकर कई छात्र शुक्रवार को राज्यपाल के मुख्य सलाहकार से मिलेंगे(दैनिक जागरण,रांची,22.7.2010)।
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