उत्तरप्रदेश के विश्वविद्यालयों के विभागों के लिए अब शोध और अनुसंधान की खातिर शासन से सेंटर आफ एक्सीलेंस के नाम पर अनुदान हासिल करना आसान नहीं होगा। सेंटर आफ एक्सीलेंस के नाम पर दिये गए धन का वाजिब इस्तेमाल हो रहा है या नहीं, इस पर शासन अब कड़ी निगाह रखेगा। शासन ने विभागों को सेंटर आफ एक्सीलेंस का दर्जा देने के लिए नयी नियमावली का प्रारूप तैयार कर लिया है। इस प्रारूप को जल्द ही शासन की अनुमति मिलने की संभावना है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) अध्ययन व शोध के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले विभागों को बढ़ावा देने के लिए सेंटर आफ एक्सीलेंस योजना के तहत उन्हें अनुदान देता है। सेंटर आफ एक्सीलेंस के दर्जे के ख्वाहिशमंद विभाग शासन से भी शोध और अध्ययन के लिए अनुदान हासिल करते हैं। अभी तक शासन ऐसे विभागों के प्रस्तावों का अपने विवेकानुसार परीक्षण कर उन्हें अनुदान दे देता था। कुछ महीने पहले वित्त विभाग ने इस पर आपत्ति जतायी थी। वित्त विभाग का कहना था कि शासन ऐसे विभागों को अनुदान देने और दी गई धनराशि के अनुश्रवण के लिए कोई नियमावली बनाये। इस पर शासन ने लखनऊ विश्वविद्यालय के तीन शिक्षकों की समिति को यह जिम्मेदारी सौंपी थी। समिति में लखनऊ विवि के अर्थशास्त्र विभाग के प्रो.हर्ष मोहन, प्राणिविज्ञान विभाग के प्रो.एके शर्मा और भौतिकी विभाग के रीडर डा.राजीव मनोहर शामिल थे। समिति ने नियमावली का जो प्रारूप तैयार किया है, उसके मुताबिक विभाग सेंटर आफ एक्सीलेंस के तहत अनुदान प्राप्त करने के लिए शासन को एक निर्धारित प्रारूप पर आवेदन करेंगे। शासन इन आवेदनों को एक स्क्रीनिंग कमेटी को भेजेगा। स्क्रीनिंग कमेटी आवेदनों का परीक्षण कर शासन को अपनी संस्तुति देगी। इन संस्तुतियों के आधार पर शासन विभागों के प्रस्ताव को अनुमोदित या खारिज करेगा। जिन विभागों के प्रस्ताव अनुमोदित होंगे, उन्हें अनुदान दिया जाएगा। वे इस अनुदान का सदुपयोग कर रहे हैं या नहीं, बीच सत्र में इसकी समीक्षा मिड टर्म इवैलुएशन कमेटी करेगी। इस कमेटी में शासन का एक प्रतिनिधि और अन्य सदस्य शिक्षा के क्षेत्र से होंगे। यह कमेटी इस बात पर गौर करेगी कि विभागों ने अनुदान राशि का कितना उपयोग किया और उन्हें कितने और पैसे की जरूरत होगी। यह कमेटी विभागों की समस्याओं को जानेगी और उनके निराकरण के लिए सुझाव भी देगी। साल के आखिर में फाइनल रिव्यू कमेटी विभागों के कामकाज की समीक्षा कर अपनी रिपोर्ट शासन को देगी। इस कमेटी में शासन का एक प्रतिनिधि और अन्य सदस्य शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े होंगे। फाइनल रिव्यू कमेटी यदि संतुष्ट नहीं हुई तो वह किसी भी विभाग को आगामी वर्षों में सेंटर आफ एक्सीलेंस का दर्जा न देने की संस्तुति कर सकती है(राजीव दीक्षित,दैनिक जागरण,लखनऊ,22.7.2010)।
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