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05 जुलाई 2010

मौसम विज्ञान में कॅरिअर

मौसम के पूर्वानुमानों का उपयोग वायु प्रदूषण नियंत्रण, कृषि, वानिकी, वायु एवं समुद्री परिवहन व्यवस्था, रक्षा सेवाओं में किया जाता है। प्रशिक्षित कर्मियों का मुख्य काम मौसम उपग्रहों, रडार सिस्टम, सेंसर्स, डेटा संग्रहण, आंकड़ों का विश्लेषण कर निष्कर्ष मौसम के रूप में जारी करना है। मौसम विज्ञान को तेजी से उभरते एक महत्वपूर्ण कॅरिअर के रूप में विश्व व्यापी स्तर पर देखा जा सकता है। हालांकि कई अन्य पर्यायवाची शब्दों का भी इस कार्यक्षेत्र हेतु अकसर प्रयोग किया जाता है जिसके कारण उलझन की स्थिति भी पैदा हो जाती है, इनमें जलवायु विज्ञान मैटिरोलॉजी साइंस और एटमॉस्फेयर साइंस का नाम खासतौर से सामने आता है लेकिन कार्यकलापों के आधार पर देखें तो इनमें ज्यादा अंतर नजर नहीं आएगा। इनमें से प्रत्येक में पृथ्वी के चारों ओर स्थित वायुमंडल का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अध्ययन कर आगामी मौसम, जलवायु रुझान, पूर्व के मौसम की व्याख्या इत्यादि पर काम किया जाता है।

इस प्रकार के पूर्वानुमानों का उपयोग वायु प्रदूषण नियंत्रण, कृषि, वानिकी, वायु एवं समुद्री परिवहन व्यवस्था, रक्षा सेवाओं इत्यादि में दुनिया भर में किया जाता है। इन प्रशिक्षित कर्मियों का मुख्य काम मौसम उपग्रहों, रडार सिस्टम, सेंसर्स और विभिन्न हिस्सों में स्थित डेटा संग्रहण, केंद्रों से प्राप्त आंकड़ों का विभिन्न उद्देश्यों के लिए विश्लेषण कर उपयोगी निष्कर्ष मौसम के रूप में जारी करना है।

इनके काम में अद्यतन सॉफ्टवेयरों और कंप्यूटरों का प्रयोग किया जाना सही पूर्वानुमानों के लिए अत्यंत आवश्यक है। ये मौसमी गुब्बारों, डॉप्लर रडार तथा अन्य सॉफिस्टिकेटेड मॉनीटरिंग उपकरणों का प्रयोग कर अत्यधिक सटीक फोरकास्ट करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार के मौसम विज्ञानियों को ऑपरेशन मैटिरोलॉजिस्ट भी कहा जाता है। दूसरी ओर प्रयोगशालाओं में इस कार्यक्षेत्र से संबंधित शोध एवं अनुसंधान कार्यों में संलग्न एटमॉस्फेरिक साइंस्टिटों का भी वर्ग होता है जो भौतिकीय एवं रासायनिक गुणों का अध्ययन करते हैं और विभिन्न सिद्धांतों का प्रतिपादन करते हैं। इनमें रोशनी, ध्वनि और रेडियो तरंगों का विभिन्न उद्देश्यों के लिए वातावरण में प्रसारण तथा ऊर्जा संचार का काम लिया जा सकता है। इनका काम बादलों, वर्षा और हिमपात के लिए जिम्मेदार कारकों पर ध्यान रखना, शहरी क्षेत्रों पर आधारित होने वाली प्रदूषण की चादर के बारे में अग्रिम सूचना देना तथा मौसम पूर्वानुमान के लिए अधिक उपयुक्त प्रणालियों का विकास करना भी है।

इनके अध्ययनों के माध्यम से उपलब्ध आंकड़ों एवं निष्कर्षों का उपयोग किसी विशिष्ट क्षेत्र के लिए उपयोगी कृषि मॉडल का विकास करने, बिल्ंिडगों की डिजाइनिंग, हीटिंग एवं कूलिंग प्रणालियों को आवश्यकता अनुरूप ढालने आदि में भी किया जाता है। इतना ही नहीं, आधुनिक मानव जीवन के समक्ष पेयजल की दिन प्रतिदिन गहराती समस्या एवं प्रदूषण के बढ़ते कहर पर नियंत्रण में इन विशिष्टकर्मियों की अहम भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

इस प्रोफेशन में विज्ञान खासतौर से फिजिक्स और मैटिरोलॉजी की संबद्ध शाखाओं की पृष्ठभूमि वाले युवाओं के लिए खासे अवसर हो सकते हैं। देश के अधिकांश संस्थानों में पोस्ट गे्रजुएशन के स्तर पर इस प्रकार के कोर्सेज हैं। चुनींदा विश्वविद्यालयों में बैचलर्स स्तर पर भी यह विशिष्ट कोर्स संचालित किया जाता है। सांख्यिकी, फिजिक्स, मैथ्स आर कैमिस्ट्री का ज्ञान आगे बढ़ने में मददगार सिद्ध होता है। इसके अतिरिक्त कंप्यूटर एवं इस विधा से जुड़े आवश्यक सॉफ्टवेयरों का इस्तेमाल करना तो खैर आना ही चाहिए तभी सटीक पूर्वानुमान संभव हो सकता है।

अमूमन सरकारी एजेंसियां ही इस प्रकार के ट्रेंड लेगों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराती हैं। इनमें मौसम विज्ञान विभाग एयरपोर्ट उड्डयन विभाग, कृषि विभाग, रक्षा विभाग एवं जलमार्ग परिवहन से संबंधित सरकारी विभागों का उल्लेख किया जा सकता है। निजी कंपनियों द्वारा बड़े सीमित तौर पर ऐसे विशेषज्ञों की सेवाएं ली जाती हैं। रिसर्च एवं अध्ययन भी हुए चुनींदा क्षेत्र हैं जहां इनके लिए एंपलायमेंट के मौके हो सकते हैं। ग्लोबल वार्मिंग ग्रीन हाउस इफैक्टस और समुद्री तूफानों के बढ़ते कहर के मद्देनजर आने वाले समय में इस प्रकार के लोगों की जरूरतें देश एवं विदेश में काफी तेजी से बढ़ने की संभावनाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।

देश में मैटिरोलॉजी कोर्स संचालित करने वाले प्रमुख संस्थान

आईआईटी, खड़कपुर

आंध्र यूनिवर्सिटी, विशाखापत्तनम

कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, कोच्चि

महाराज सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा, बडोदरा

शिवाजी यूनिवर्सिटी, कोल्हापुर
(अशोक सिंह,नई दुनिया,दिल्ली,5.7.2010)

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