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05 जुलाई 2010

ग्रेडिंग से खतरे में संस्कृत का अस्तित्व

सीबीएसई १०वीं की परीक्षा में ग्रेडिंग सिस्टम से देवभाषा संस्कृत का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। पहले अंग्रेजी विषय में ३५ प्रतिशत से कम अंक लाने वाले विद्यार्थियों को संस्कृत पढ़ना पड़ता था, लेकिन इस बार फैसला विद्यार्थियों की मर्जी पर छोड़ दिया गया है। नतीजा देवभाषा पढ़ने की इच्छा रखने वाले विद्यार्थियों की संख्या लगभग शून्य होती जा रही है। इससे संस्कृत के शिक्षक भी अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं।

पहले से ही सरकारी उपेक्षा की शिकार संस्कृत को अब समाज से भी उपेक्षित किया जा रहा है। इसके लिए भी सरकार ही जिम्मेदार है। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार दिल्ली शिक्षा निदेशालय से दिल्ली सरकार के स्कूलों को एक लेटर भेजा गया है। जिसमें स्कूल को साफ तौर से कहा गया है कि किसी भी बच्चे पर संस्कृत पढ़ने के लिए दवाब न दिया जाए। शिक्षा निदेशक के आदेश की अवहेलना करना किसी भी स्कूल के लिए संभव नहीं है। इधर छात्रों पर अंग्रेजी की खूमारी इस कदर छाई है कि वे भी संस्कृत से तौबा करने में नहीं हिचक रहे हैं। किसी स्कूल में एक-दो छात्र संस्कृत पढ़ना भी चाहते हैं तो स्कूल प्रशासन द्वारा उन्हें मना कर दिया जाता है। स्कूल प्रधानाचार्यों का कहना है कि किसी विषय के एक बैच को चलाने के लिए कम से कम २० विद्यार्थियों की जरूरत होती है। लेकिन नई शिक्षा नीति के बाद संस्कृत पढ़ने वालों की संख्या पूरी कक्षा में एक-दो है। जिन्हें पढ़ाने के लिए हम अलग से संस्कृत शिक्षकों की व्यवस्था नहीं कर सकते हैं। वहीं शिक्षकों का कहना है कि ग्रेडिंग सिस्टम में इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है कि किस विषय में कितने अंक आए हैं(धनंजय कुमार,नई दुनिया,दिल्ली,5.7.2010)।

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