चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में कभी एक साल में डेढ़ हजार पीएचडी तक होती थी। उसी जगह पर पिछले एक साल से शोध प्रक्रिया ठप है। नतीजतन शोध छात्र चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से दूर हो रहे हैं। शोध योग्यता परीक्षा (आरईटी) होने के बाद भी न कोई नया पंजीकरण हुआ है और न ही आरडीसी हो पाई है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने ११ जुलाई २००९ को बिना प्रवेश परीक्षा शोध पर रोक लगा दी थी। इसके दो माह बाद विश्वविद्यालय ने भी नए पीएचडी पंजीकरण पर रोक लगा दी। साथ ही ग्यारह जुलाई २००९ के बाद हुई आरडीसी को भी निरस्त करने का निर्णय लिया। करीब नौ माह बाद १५ अप्रैल को विश्वविद्यालय ने शोध योग्यता परीक्षा संपन्न कराई। उसका परिणाम भी निकाल दिया। गिने चुने विषयों में ही छात्र उत्तीर्ण हो पाए, लेकिन इसके बाद भी कोई नया पंजीकरण नहीं हो रहा है। कई विषयों में तो एक भी छात्र उत्तीर्ण नहीं हो पाए हैं। इन विषयों में विश्वविद्यालय की क्या रणनीति है, इसका भी खुलासा नहीं हो रहा है। न ही इंटरडिसिप्लिनरी सब्जेक्ट पर कोई निर्णय लिया गया है। इसका असर विश्वविद्यालय की शोध गुणवत्ता पर भी पड़ रहा है। शोध छात्र दूसरे विश्वविद्यालय की तरफ रुख कर रहे हैं। इस संबंध में कुलपति प्रोफेसर एसके काक का कहना है कि कालेजों से आंकड़ा प्राप्त होते ही प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।
साल में होनी थी दो परीक्षा
विश्वविद्यालय ने हरेक साल दो बार शोध योग्यता परीक्षा कराने का निर्णय लिया था। यानी सेमेस्टर एग्जाम की तरह शोध योग्यता परीक्षा होनी थी। जुलाई २००९ में रोक के बाद परीक्षा नौ माह बाद हो पाई। अब शोध प्रक्रिया की धीमी गति को देखते हुए अगली परीक्षा कब होगी कह पाना मुश्किल है।
गाइड का पता नहीं
किस गाइड के पास कितनी सीट है। इसका सही अंदाज विश्वविद्यालय को नहीं है। इसी कारण विश्वविद्यालय ने सभी कालेजों से गाइड और उनके पास शोध कर रहे छात्रों की संख्या मांगी है।
समय विस्तार के इंतजार में सैकड़ों फाइलें
शोध प्रक्रिया ठप होने का असर समय विस्तार का इंतजार कर रहे शोधार्थियों पर भी पड़ा है। हाल यह है कि पीएचडी सेक्शन और कुलपति कार्यालय में सैकड़ों फाइलें समय विस्तार का इंतजार कर रही हैं(अमर उजाला,मेरठ,24.7.2010)।
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