मंडल कमीशन की संस्तुतियां लागू होने के बीस साल आज पूरे हो रहे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री स्व.वीपी सिंह ने तमाम विरोधों को दरकिनार कर सात अगस्त 1990 को यह ऐतिहासिक फैसला लिया था। बदले में उन्हें अपनी सरकार भी गवांनी पड़ी। जनता दल टूटा और भाजपा ने भी राम मंदिर निर्माण का बिगुल फूंक दिया। मंडल कमीशन का गठन दिसम्बर 78 में हुआ, लेकिन रिपोर्ट लागू करने में 12 वर्ष इंतजार करना पड़ा। आयोग की संस्तुतियां सार्वजनिक हुईं तो उस पर जबरदस्त प्रतिक्रियाएं हुई। खासकर उत्तर भारत के अधिकांश प्रदेशों में आंदोलनों का सिलसिला कई महीने चला। धरना-प्रदर्शन व रास्ता जाम आदि से जनजीवन अस्त-व्यस्त रहा। कमीशन की संस्तुतियों का विरोध कर रहे युवाओं का गुस्सा सरकारी सम्पत्तियों पर भी उतरा। तोड़फोड़ व आगजनी में करोड़ों की क्षति सरकार को झेलनी पड़ी। कई युवाओं ने खुद को आग के हवाले तक कर दिया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि मंडल रिपोर्ट लागू होने के बीस साल बाद पिछड़े वर्ग की जातियों को मिले 27 प्रतिशत आरक्षण से राजनीतिक व सामाजिक तस्वीर बदली। यह भी सच है कि सरकारी नौकरियों में इसका लाभ भले ही कम मिला हो, लेकिन शैक्षिक संस्थानों में पिछड़े वर्ग को आरक्षित कोटे का भरपूर लाभ मिला। मंडल आंदोलन में शिद्दत से जुड़े छात्र नेता डा. ज्ञानेन्द्र शर्मा का कहना है कि मंडल आयोग के बाद देश का पूरा सामाजिक व राजनीतिक ढांचा बदला है। वंचित कहे जाने वाले वर्ग में लाभ क्रीमीलेयर वालों को ही मिला है। डा. प्रदीप अरोड़ा भी कहते हैं कि बदले हालात में अबसम्पूर्ण आरक्षण नीति की समीक्षा करने की जरूरत हैं। सियासी बदलाव पंचायत व स्थानीय निकाय चुनाव में पिछड़े वर्ग को मिले आरक्षण ने देश की सियासी तस्वीर में भारी बदलाव किया है। ग्राम, क्षेत्र व जिला पंचायतों में मिले आरक्षण के जरिए राजनेताओं की नई जमात तैयार हुई है। इसका असर सूबे से लेकर देश तक दिख रहा है। जातीय गणित को देखें तो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, गुजरात, हरियाणा व महाराष्ट्र जैसे राज्यों की कमान आरक्षित कहे जाने वाले वर्ग के हाथ में हैं। हालात कहते हैं कि इन परिस्थितियों में जल्द बदलाव की आस नहीं है। पैदा हुए नये सवाल मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के बीस साल बाद कुछ नये सवाल भी पनपे हैं। आरक्षण की सुविधा ले रहे अनुसूचित वर्ग की तरह पिछड़ा वर्ग में वंचित व पात्र लोगों तक लाभ नहीं पहुंच रहा है। केवल क्रीमीलेयर में शामिल लोग ही आरक्षण की लाभ ले रहे हंै। इससे पिछड़ों में दो वर्ग तैयार हो चुके हैं। रिपोर्ट लागू कराने में अहम रोल निभाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री सोमपाल शास्त्री भी मानते हैं कि आरक्षण का फायदा ऊपर की सतह तक सिमट रहा है जबकि कमीशन की रिपोर्ट लागू करते समय भावना थी कि जरूरतमंद लोगों को ही आरक्षण का लाभ मिले(दैनिक जागरण,मेरठ,7.8.2010)।
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