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03 सितंबर 2010

'नई दुनिया' की "भाषा नीति" श्रृंखला-2

बिन्दी में है दम

जब शब्द किसी अन्य भाषा से लिए जाते हैं तो व्याकरण के संस्कार शब्द को प्राप्त करने वाली भाषा में तय करने होते हैं। "नर्स" शब्द अँगरेजी से लिया तो हिन्दी में उसका बहुवचन हिन्दी व्याकरण के अनुसार नर्सें या नर्सों (जैसा उपयोग आवश्यक हो) होता है, "नर्सेज" नहीं। उर्दू के भी अनेक शब्दों को हिन्दी में अपनाया गया है। एक उदाहरण बहुत दिलचस्प है। बिन्दी बड़े अर्थों वाली होती है। संस्कृति में भी, भाषा में भी। उर्दू में अक्षर के नीचे लगने वाली बिन्दी को नुक्ता कहते हैं। जब शब्द उर्दू से हिन्दी में आए तो उसकी बिन्दी यानी नुक्ते को भी साथ लाना कितना आवश्यक होता है, यह इस उदाहरण से स्पष्ट होता है। उर्दू का एक शब्द है "ज़लील" ऐसे और भी शब्द हैं- ज़ंग, ज़माना, ज़ाया, ज़ीना, नाज़ आदि। "ज़लील" का अर्थ है- तिरस्कृत, नीच, बेइज्जत, अधम, अपमानित आदि। नुक्ता हटा दीजिए- यानी "जलील"। अर्थ होगा- तेज, महत्ता, गौरवशाली, पूज्य, प्रतिष्ठित आदि। एक बिन्दी के फासले पर दो धुर विरोधी अर्थ खड़े हैं। बिना नुक्ते का जंग अर्थ में "युद्ध" होता है, नुक्ते वाला "धातु का मैल" होता है। नुक्ते वाला "ज़माना" युग के अर्थ में है जबकि दूसरे का, बिना नुक्ते वाले का मतलब होता है ठोस बनाना जैसे "दही जमाना", कुल्फी जमाना। "जाया" का अर्थ है जो बच्चे को जन्म देती है यानी पत्नी जबकि नुक्ता "जाया" को "ज़ाया" में बदलकर अर्थ कर देता "बरबाद"। "ज़ीना" यानी सीढ़ी और बिना नुक्ते के जीना यानी जीवन जीना। बिन्दी केवल नुक्ते में ही दम नहीं रखती है। उसका दम अनुस्वार और चंद्रबिन्दु में भी दिखता है। "हंस" (एक प्राणी) और "हंस" (एक भावपूर्ण क्रिया) के बीच जो अंतर है वह बिन्दी के दम का प्रमाण है। है न बिन्दी में दम! (दिल्ली संस्करण,3.9.2010)

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा लगा बिंदी की चर्चा पढकर।

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  2. उर्दू की बिंदी (नुक़ता) हिन्दी में आकर बेमानी हो चुकी है. प्रचलन में जमाना ही है ज़माना नहीं | ज़ंग को जंग ही बोला जाता है - जंगबहादुर | स्वयं हिन्दी में ही अनुस्वार और चंद्रबिंदु अनेक स्थान पर एक ही हो गए हैं | आपके लेख में भी ट्रांसलिटरेशन ने हँस को हंस लिखा है |

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